अमन पठान मुसलमानों की देश भक्ति साबित करने के लिए वीर अब्दुल हमीद का जिक्र करूँ या अशफाकउल्ला खाँ या फिर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की वफाद...
अमन पठान
मुसलमानों की देश भक्ति साबित करने के लिए वीर अब्दुल हमीद का जिक्र करूँ या अशफाकउल्ला खाँ या फिर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की वफादारी का तजकरा आम करूँ? जब भी कभी देश में आतंकी हमला होता है तो मुसलमानों देशद्रोही, गद्दार, आतंकी जैसे शब्दों से नवाजा जाता है। अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले में सलीम शेख ने देश भक्ति और वफादारी को साबित कर दिखाया, लेकिन हाफ पेंटियों ने उसकी वफादारी पर भी सवाल खड़े कर दिए।
हाफ पेंटियों ने पहले कहा कि बस हर्ष देसाई चला रहा था। जब हर्ष देसाई ने अपना बयान दिया कि बस सलीम शेख ही चला रहा था तो हाफ पेंटियों ने कहा कि सलीम शेख आतंकियों से मिला हुआ था। अगर सलीम शेख आतंकियों से मिला होता तो बस में सवार सभी अमरनाथ यात्री काल के गाल में समा जाते। दोष हाफ पेंटियों का नही है। दोष तो मुसलमानों की वफादारी का है, क्योंकि मुसलमानों और कुत्तों की वफादारी एक जैसी है। वफादार हैं लेकिन अपनी कौम के गद्दार हैं।
मुसलमान और कुत्ते कैसे अपनी कौम के गद्दार हैं ये जानना भी आपके लिए जरूरी है। अगर एक मौहल्ले का कुत्ता दूसरे मौहल्ले में पहुंच जाता है तो उस मौहल्ले के सारे कुत्ते एकजुट हो जाते हैं और दूसरे मौहल्ले से आये कुत्ते को जब तक अपनी सरहद से निकाल नही देते हैं तब तक चैन की सांस नही लेते हैं। इसी को लेकर एक कहावत भी है अगर कुत्तों में सलाह हो जाये तो वह गंगा नहा आएं। हालांकि कुत्ता बहुत वफादार जानवर है। अपने मालिक के साथ कभी गद्दारी नही करता है। उसके बाबजूद इस्लाम कुत्तों को घर में पालने का हुकुम नही देता है। क्योंकि कुत्ते अपनी कौम के गद्दार हैं और इस्लाम में गद्दारों के लिए कोई जगह नही है। गद्दार जानवर हो या इंसान? गद्दार गद्दार होता है।
अब बात करते हैं मुसलमानों की गद्दारी और वफादारी की? मुसलमानों की वफादारी बिल्कुल कुत्तों जैसी है। हिंदुस्तान की मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश में रहता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की रहनुमाई करने वाला कोई एक नेता नही है। दलितों की आवाज उठाने वाली मायावती ने मुसलमानों को पुचकार कर यूपी की सत्ता हासिल की।
मुलायम सिंह यादव ने खुद को मुस्लिम हितैषी बताकर खूब सत्ता का मजा लिया। जबकि यूपी में दलित और यादव समुदाय की जनसंख्या मुसलमानों की अपेक्षा बहुत कम है, लेकिन वह मुसलमानों की वफादारी की बदौलत सत्ता का सुख भोग चुके हैं।
इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में वही हुआ जो हमेशा से होता आया है। मुसलमानों की बदौलत सत्ता हासिल करने के लिए मायावती ने जरूरत से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार दिया। सपा भी कहाँ पीछे रहने वाली थी। सपा ने अपनी जरूरत के अनुसार मुसलमानों को टिकट दिए। कांग्रेस, पीस पार्टी, AIMIM ने भी मुस्लिम उम्मीदवारों से जोर आजमाइश कराई और निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवारों ने भी जिताऊ मुस्लिम उम्मीदवारों को हराने में कोई कसर बाकी नही छोड़ी। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर जरूरत से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार भाजपा की जीत का सबब बने।
मुसलमानों ने मायावती, अखिलेश, राहुल को अपनी वफादारी साबित कराने के लिए जिताऊ मुस्लिम उम्मीदवारों को हरा डाला। मैं ऐसा सिर्फ इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मुसलमान अभी तक अपनी रहनुमाई के लिए एक मुस्लिम नेता नही चुन पाए हैं। आप अपने मौहल्ले में ही सर्वे कर लेना कि यूपी में उनका पसंदीदा नेता कौन है तो 90 फीसदी जबाव मिलेगा अखिलेश और मायावती? 10 फीसदी में आजम खां, ओवैसी का नाम आएगा। इससे साफ जाहिर है कि मुसलमान गैर मुस्लिमों को अपना रहनुमा मानकर उनके प्रति वफादार है। फिर भी बेवजह गद्दार, देशद्रोही शब्दों से नवाजा जाता है क्योंकि मुसलमान अपनी कौम के गद्दार हैं और गद्दार गद्दार होता है। पहले मुसलमानों को अपनी कौम के प्रति वफादार बनना होगा तभी ये गद्दार का कलंक माथे से मिट सकेगा?
(लेखक केयर ऑफ मीडिया के संपादक हैं)