वसीम अकरम त्यागी पश्चिम बंगाल के बशीरहट मे फेसबुक पोस्ट को लेकर हुई हिंसा पर लगातार लोगो की प्रतिक्रिया आ रही हैं। अब इसी कड़ी मे क्रिके...
वसीम अकरम त्यागी
पश्चिम बंगाल के बशीरहट मे फेसबुक पोस्ट को लेकर हुई हिंसा पर लगातार लोगो की प्रतिक्रिया आ रही हैं। अब इसी कड़ी मे क्रिकेटर मोहम्मद कैफ का नाम भी जुड़ गया है। उन्होंने इस हिंसा की निंदा करते हुऐ लिखा कि संपत्ती को फूंक देना घर जलाना हिंसा करना ये इस्लाम नही है।
कैफ ने कहा कि पैगंबर ऐ इस्लाम का किरदार किसी ऊल जलूल टिप्पणी से मैला नही हो सकता। कैफ ने एक सच्चे भारतीय होने का परिचय दिया है। अगर कोई समाज हिंसा करता है तो सबसे पहले उस समाज के लोगो की जिम्मेदारी बनती है कि वे इन घटनाओ की निंदा करें और ऐसे लोगो का बहिष्कार करें जो हिसा फैलाते हैं। क्रिकेटर कैफ से लेकर मुस्लिम बुद्धीजीवियो ने भी बंगाल की हिंसा की निंदा की है। अब सवाल पैदा होता है कि हिन्दू समाज का प्रबुद्ध तबका हिंसक घटनाओ पर खामोश क्यो रहता है ?
जब गाय के नाम पर एक एक कर 28 लोगो के 'विकेट' गिरा दिये जाते हैं तब कैफ की तरह कोई भी सेलेब्रेटी इन घटनाओ पर जुबान क्यों नही खोलता ? ध्यान रहे गौआतंकियो द्वारा की गई हत्याओ पर कैफ ने कोई बयान नही दिया था, कोई ट्वीट नही किया था। अगर वे ऐसा करते तो हो सकता है कि सोशल मीडिया ट्रोलिंग के ठेकेदार उन्हें ट्रोल करते। जिन लोगो ने Not In My Name का आयोजन करके गौआतंकियो के विरोध मे आवाज उठाई थी।
उनका मखौल परेश रावल जैसे सांसद और अभिनेता ने उड़ाया था। सोशल मीडिया पर उन लोगो पर ताने कसे गये जिन्होने गौआतंकियो द्वारा की जाने वाली हत्याओ का विरोध किया है। यही फर्क होता है आदमी और इंसान में। मोहम्मद कैफ के समाज ने धर्म के नाम पर हिंसा की तो उन्होने 24 घंटे के अंदर ही इसका विरोध दर्ज करा दिया। मगर परेश रावल के समाज ने धर्म का नाम लेकर हत्याऐं की तो उन्होने इन हत्याओ का विरोध करना तो दूर उल्टे विरोध करने वालो का मजाक उड़ाया। हिन्दू समाज के प्रबुद्ध तबके को आगे आना होगा उन्हें तय करना होगा कि उन्हें गौआतंकियो और उनका समर्थन करने वाले लोगों की दीमक चाहिये या फिर वे लोग चाहिये जिनके नजदीक किसी भी इंसान की हत्या का मतलब 'पाप' के अलावा और कुछ नही है।
पश्चिम बंगाल के बशीरहट मे फेसबुक पोस्ट को लेकर हुई हिंसा पर लगातार लोगो की प्रतिक्रिया आ रही हैं। अब इसी कड़ी मे क्रिकेटर मोहम्मद कैफ का नाम भी जुड़ गया है। उन्होंने इस हिंसा की निंदा करते हुऐ लिखा कि संपत्ती को फूंक देना घर जलाना हिंसा करना ये इस्लाम नही है।
कैफ ने कहा कि पैगंबर ऐ इस्लाम का किरदार किसी ऊल जलूल टिप्पणी से मैला नही हो सकता। कैफ ने एक सच्चे भारतीय होने का परिचय दिया है। अगर कोई समाज हिंसा करता है तो सबसे पहले उस समाज के लोगो की जिम्मेदारी बनती है कि वे इन घटनाओ की निंदा करें और ऐसे लोगो का बहिष्कार करें जो हिसा फैलाते हैं। क्रिकेटर कैफ से लेकर मुस्लिम बुद्धीजीवियो ने भी बंगाल की हिंसा की निंदा की है। अब सवाल पैदा होता है कि हिन्दू समाज का प्रबुद्ध तबका हिंसक घटनाओ पर खामोश क्यो रहता है ?
![]() |
वसीम अकरम त्यागी |
उनका मखौल परेश रावल जैसे सांसद और अभिनेता ने उड़ाया था। सोशल मीडिया पर उन लोगो पर ताने कसे गये जिन्होने गौआतंकियो द्वारा की जाने वाली हत्याओ का विरोध किया है। यही फर्क होता है आदमी और इंसान में। मोहम्मद कैफ के समाज ने धर्म के नाम पर हिंसा की तो उन्होने 24 घंटे के अंदर ही इसका विरोध दर्ज करा दिया। मगर परेश रावल के समाज ने धर्म का नाम लेकर हत्याऐं की तो उन्होने इन हत्याओ का विरोध करना तो दूर उल्टे विरोध करने वालो का मजाक उड़ाया। हिन्दू समाज के प्रबुद्ध तबके को आगे आना होगा उन्हें तय करना होगा कि उन्हें गौआतंकियो और उनका समर्थन करने वाले लोगों की दीमक चाहिये या फिर वे लोग चाहिये जिनके नजदीक किसी भी इंसान की हत्या का मतलब 'पाप' के अलावा और कुछ नही है।