कुमार सौवीर लखनऊ : पत्रकारिता का लबादा ओढ़े बस्ती के एक ब्लैकमेलर को शिकायत है कि आजकल की पत्रकारिता में सच नहीं, बल्कि झूठ का छौंका ...
कुमार सौवीर
लखनऊ : पत्रकारिता का लबादा ओढ़े बस्ती के एक ब्लैकमेलर को शिकायत है कि आजकल की पत्रकारिता में सच नहीं, बल्कि झूठ का छौंका लगा दिया जाता है। इस खेमे के धंधेबाजों का कहना है कि पत्रकारिता में सच को तोड़-मरोड़ कर पेश करने से सच के चेहरे पर कालिख पुत जाती है और आम आदमी तक सच नहीं पहुंच पाता है। यह हालत बेहद शर्मनाक है और इसका एक बहुत बुरा अंजाम लोकतंत्र, अभिव्यक्ति और समाज के सच्चे पत्रकारों के साथ ही साथ आम आदमी को भी भुगतना होगा, जो बेहद घातक होगा।
जी हां, यह शिकायत की है बस्ती के उस शख्स ने, जिसके चेहरे पर पत्रकारिता के मुखौटे को नोंच कर उसकी असलियत सामने रखी जा चुकी है। अब आप शायद समझ चुके होंगे कि हम किस शख्स के बारे में बात कर रहे हैं। जी हां, आपने ठीक समझा। इस शख्स का नाम है विवेक गुप्ता। वर्ल्ड न्यूज नामक किसी एक न्यूज चैनल की आईडी लेकर घूमते इस शख्स का मूल धंधा ब्लैकमेलिंग करना और धोखाबाजी करना ही है।
अभी चंद पहले ही प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस शख्स की पूरी असलियत पूरी तरह जगजाहिर कर दी थी। उस वक्त यह शख्स पहले तो बहुत तिलमिलाया, मीलों कूदा-उछला, कि अभी ऐसी की तैसी कर दी जाएगी कुमार सौवीर की, मुकदमा दर्ज किया जाएगा पुलिस में, कुमार सौवीर को जेल में बंद कर दिया जाएगा। ऐसी कार्रवाई की जाएगी कि कुमार सौवीर की पुश्तें तक कराहती घूमेंगी।
आपको बता दें कि विवेक गुप्ता पर आरोप थे कि एक सरकारी विभाग में अफसरों की मिली-भगत से विवेक ने एक संविदा कर्मचारी के बारे में आरटीआई लगायी थी। उसके बाद से ही अफसरों के सहयोग से इस मामले पर डील की तैयारियां चलीं। चूंकि इस मामले में कुछ पत्रकार भी उस संविदा कर्मचारी के रिश्तेदार थे, इसलिए मामला निपटाने के लिए 20 हजार रूपयों का सौदा तय हो गया। एक न्यूज चैनल के स्थानीय रिपोर्टर ने विवेक गुप्ता के लिए यह रकम हासिल की थी। लेकिन विवेक गुप्ता तक यह रकम केवल 15 हजार रूपया ही पहुंच पायी। जाहिर है कि इस रिपोर्टर ने पांच हजार रूपया अपनी जेब में रख लिया, जिसका जिक्र विवेक गुप्ता को भी नहीं था।
लेकिन इसी बीच एक अन्य डील के बारे में बस्ती के कुछ पत्रकारों ने जब अनेक वाट्सऐप ग्रुप्स में विवेक गुप्ता को घेरा और उसकी करतूतों का खुलासा वायरल हुआ, तो खिसियाये विवेक गुप्ता ने पुलिस पर दबाव बना कर एक एफआईआर दर्ज करा लिया। लेकिन इस मामले में पुलिस भी बहुत चालाक साबित हुई। पुलिस ने यह रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन यह एफआईआर सीआर के बजाय एनसीआर में दर्ज किया।
आपको बता दें कि मामलों को दबाने के लिए यह पुलिस यह दांव चलाती है। दरअसल, सीआर वह रिपोर्ट होती है, जिसे संज्ञेय अपराध में दर्ज किया जाता है। और एनसीआर में सूचना तो दर्ज कर ली जाती है, लेकिन उस पर पुलिस कोई भी कार्रवाई नहीं करती है। ऐसी रिपोर्ट को गैर-संज्ञेय अपराध की सूचना माना जाता है। जब पुलिस ने इस मामले में स्वाभाविक तौर पर जब कोई कार्रवाई नहीं की, तो विवेक गुप्ता ने एक उलटा दांव चलाया और ऐलान किया कि चूंकि यह मामला पत्रकारों की एकजुटता का था, इसलिए उन पत्रकारों को क्षमा करते हुए मामला बंद कर रहे हैं।
लेकिन जब मेरी बिटिया डॉट कॉम ने विवेक गुप्ता की असलियत को लेकर जब खुलासों की झड़ी लगा दी, तो आखिरकार यह ब्लैकमेलर खामोश रह गया। लेकिन उसके बाद एक होटल में खाद्य विभाग की छापेमारी को लेकर हुए हंगामे पर एक अन्य पत्रकार के मामले में विवेक गुप्ता ने फिर अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। उस मामले में डीएम से मिलने गये थे चंद पत्रकार। लेकिन इस मामले को अपने हिस्से में जोड़ने के लिए इंडियन जर्नलिस्ट एसोसियेशन नामक एक अनाम-अनजाने संगठन का खुद को उपाध्यक्ष कहलाने वाले विवेक गुप्ता दावा किया इस प्रतिनिधिमंडल में 22 से अधिक पत्रकार शामिल थे। विवेक गुप्ता ने यहां इसलिए झूठ बोला, ताकि प्रशासन पर दबाव बनाया जा सके। लेकिन इसके पहले ही विवेक गुप्ता आदि उसके साथियों की करतूतों से बस्ती के पत्रकार खासे नाराज थे, इसलिए उन्होंने सिरे से ही इस बात से इनकार कर दिया कि उस प्रतिनिधिमंडल में वह लोग शामिल नहीं थे। इतना ही नहीं, मेरी बिटिया डॉट कॉम के संवाददाता से बातचीत में बस्ती प्रेस क्लब के महामंत्री ने भी इनकार कर दिया कि वह उस डेलीगेशन में शामिल थे।
यह खबर मेरी बिटिया डॉट कॉम में फिर छपी, तो विवेक फिर तिलमाया। उसने हमें उलाहना दी कि मुझे सच बोलना चाहिए। इसका जवाब मैंने जब तीखेपन से दिया तो विवेक के सहयोगी पत्रकार ने अपने ग्रुप से मुझे रिमूव कर दिया। साभार मेरी बिटिया डॉट कॉम