मोहम्मद जाहिद अचानक , एक मुस्लिम नाम के मंत्री का कोटा पूरा करने के लिए किसी कूड़े के ढेर से निकाल कर मंत्री बना दिए गये प्रदेश के एक ...
मोहम्मद जाहिद
अचानक , एक मुस्लिम नाम के मंत्री का कोटा पूरा करने के लिए किसी कूड़े के ढेर से निकाल कर मंत्री बना दिए गये प्रदेश के एक मंत्री अब उसकी कीमत तोगड़िया , सिंहल , गिरिराज सिंह , साध्वी , साक्षी बनकर चुका रहे हैं और वफादारी में शहनवाज़ हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी से अधिक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
ये नये नये वाले हैं , तो अधिक मेहनत कर रहे हैं , अब इनका ताज़ा बयान आया है जो कि संघ और भाजपा का रटा रटाया झूठ है।
दरअसल , यह एक ऐसे तोते हैं जो खुराक के चक्कर में वही बयान दे रहे हैं जो संघ पहले अपनी ज़हरीली खेप से दिलवाता रहा है।
संघ की बिलकुल स्पष्ट नीति रही है , कि जिस वर्ग , समुदाय या विषय के विरुद्ध आक्रमण करना या बचाव करना है तो उसी वर्ग या समुदाय के अपने पालतू लोगों को सामने ला कर यह कराया जाए।
गौर गरिएगा कभी , दलित विरोधी उत्पीड़न पर राम विलास पासवान , उदित राज जैसे ब्राह्मणपत्नी युक्त लोग आगे आएँगे तो मुस्लिम उत्पीड़न पर जवाब देने भी ब्राह्मण पत्नी युक्त मुख्तार अब्बास नकवी या शहनवाज़ हुसैन आगे आएँगे।
अब नयी नस्ल के एक और साहब संघ के हत्थे लग गये हैं जो उत्तर प्रदेश चुनाव के पूर्व किसी कूड़ेखाने में पड़े थे। उनको योग्यता सिद्ध करने का अवसर मिला है।
दरअसल , संवैधानिक मजबूरियों की वजह से जो घृणित भाषण अब मुख्यमंत्री नहीं दे सकते और इशारों इशारों में दे रहे हैं , वैसे ही खुल कर योगीनुमा बयान अब उर्दू नाम के मंत्री जी से दिलवाया जा रहा है जिनका मंत्रीमंडल में चयन केवल उर्दू नाम के होने की योग्यता के कारण किया गया है।
अब उन्होंने बयान दिया है कि
"जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक होती है दंगे वहीं होते हैं"
इसी तरह योगी जी भी मुख्यमंत्री बनने के पहले बयान दे चुके हैं कि जहाँ भी 10% से अधिक मुस्लिम आबादी होती है दंगे वहीं होते हैं।
कल भी उन्होंने दंगों को लेकर इशारों में बयान दिया और दंगों का जिम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों को ठहराया।
शायद , दंगों या हिंसा का इतिहास बताने की आवश्यकता है।
दरअसल दंगा , प्रशासनिक विफलता का एक परिणाम होता है , खूफिया इनपुट और आईबी से लेकर एलआईयू तक के विफल होने का एक ऐसा परिणाम होता है जिसमें तमाम बेकसूर लोग मारे जाते हैं।
कभी-कभी खूफिया इनपुट और एलआईयू आईबी की सटीक इनपुट को दरकिनार करके भी सरकारें दंगा होने देती हैं जिससे ध्रुवीकरण हो ओर राजनैतिक फसल काटी जा सके।
भारत में दंगा , दो धार्मिक समुदाय के विरुद्ध सामूहिक हिंसा होने को कहते हैं , वह भी तब जब दो धर्म केवल और केवल हिन्दू और मुसलमान हों या एक पक्ष केवल मुसलमान हो।
यह भारतीय व्यवस्था का तय माइंडसेट है और इसी आधार पर खबरें छापी जाती है चलाई जाती हैं और सरकारें बयान देती हैं , पुलिस प्रशासन इसी माइंड सेट से काम करता है।
दरअसल आज़ादी के समय हुए हिन्दू-मुस्लिम-सिख समुदाय के दंगों से यह मानसिकता विकसित हुई और ऐसी हिंसक घटनाओं में केवल मुसलमान का शामिल होना दंगा मान लिया जाता है।
हकीक़त यह है कि इस देश में सबसे बड़ा और सबसे अधिक समय तक सांप्रदायिक दंगा हिन्दू-सिख का दंगा था , इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद और उसके पूर्व से भी पंजाब संप्रदायिक दंगो में लगातार 10 साल तक जलता रहा।
इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद इस देश के तथाकथित बहुसंख्यकों ने पूरे भारत में सिखों को जला डाला और तबाह और बर्बाद कर डाला , उनके व्यापारिक प्रतिस्ठान फूँक डाले , जहाँ पगड़ी वाले दिखे उनकी हत्या कर दी या ट्रकों के टायर में चार-चार को डाल कर आग लगा दी।
घोषित रूप से केवल दिल्ली में 2500 सिखों को कत्ल करने के आँकड़े सामने आए हैं , अघोषित और पूरे देश के आँकड़ो का अनुमान आप खुद लगा सकते हैं।
पूरे देश में पगड़ीधारी सिखों को मारे जाने के बदले में पंजाब में यह दंगा लगातार 10 साल चला , बसों से बिना पगड़ी वाले लोग उतारकर भून लिए गये और लगातार 10 वर्षों तक भूने गये।
इमानदारी से गणना कर लीजिये संख्या लाख के पार चली जाएगी परन्तु देश के इस सबसे बड़े दंगे को सांप्रदायिक दंगा नहीं कहा जाएगा।
ध्यान दीजिए यहाँ एक पक्ष तथाकथित बहुसंख्यक था। फिर भी सन् 1984 सिख विरोधी तो कहा जाता है पर हिन्दू-सिख दंगा नहीं कहा जाता।
गुजरात के अतिरिक्त सो काल्ड संप्रदायिक दंगे उत्तर प्रदेश और बिहार में देखने को मिलेंगे।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहते वीर बहादुर सिंह के समय मुरादाबाद के ईदगाह में ईद की नमाज़ पढ़ते समय जानबूझकर सुअर घुसाया गया और मुसलमानों के नाराज़गी व्यक्त करने पर ईदगाह में नमाज़ पढ़ते नमाज़ियों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी की गयी , 250 से अधिक नमाज़ी मारे गये।
मुरादाबाद में दंगे भड़के , मेरठ , मलियाना , हाशिमपुरा , मुजफ्फरनगर , वाराणसी , मुम्बई , भागलपुर इत्यादि जगहों पर फैले दंगे उसी समय के आसपास के थे।
दरअसल दंगे सरकारों की सुनियोजित साजिश होते हैं , दंगों की वजह , जाँच की खानापूरी करके अल्पसंख्यक वर्ग को बताया जाता है जबकि स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए उतारी गयी सांप्रदायिक फोर्स अल्पसंख्यकों पर ही टूट पड़ती है और तथाकथित बहुसंख्यक वर्ग की सुरक्षा करती है।
दंगों का इस्तेमाल अल्पसंख्यक वर्ग की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए किया जाता है इसलिए एक वर्ग जहाँ आर्थिक और जानमाल से बर्बाद कर दिया जाता है वहाँ दुबारा दंगा नहीं होता क्युँकि वह प्रतिक्रिया देने में अक्षम हो जाता है।
क्रिया की प्रतिक्रिया का उदाहरण गुजरात भी इसी सरकारी साजिश का उदाहरण है।
बाकी आप जाँच करके कुछ भी रिपोर्ट बनवा लें या अदालतों से कुछ भक निर्णय करवा लें , सरकार हाथ में हो तो सबकुछ कराया जा सकता है , लालूप्रसाद यादव और उनका परिवार इस बात का ताज़ा उदाहरण है।
यह सरकार का ही समर्थन होता है कि किसे दंगों का ज़िम्मेदार बना दिया जाए और जाँच करके किसे बेकसूर घोषित करा दिया जाए।
क्या यह देश यह भूल चुका है कि इसी देश में बाल ठाकरे छाती ठोक कर मुम्बई दंगों की जिम्मेदारी खुद लेता है और पुलिस प्रशासन तथा सरकारें कुछ नहीं करतीं , क्या यह देश भूल चुका है कि इसी देश के प्रधानमंत्री इशारों इशारों में कई बार गुजरात में एक वर्ग का जेनोसाइड करने पर अपना सीना ठोक चुके हैं ? क्या यह देश भूल चुका है कि नरोडा जेनुसाइड का मुख्य अपराधी बाबू बजरंगी कैमरे पर खुलेआम नरेंद्र मोदी के आदेश पर कत्ले-आम करने की बात स्वीकार करता है ?
क्या हुआ इन लोगों के इकबालिया बयान पर ? कुछ नहीं हुआ।
दरअसल , देश की पूरी व्यवस्था में जहां भी एक पक्ष मुसलमान हो , उसी को घटना का जिम्मेदार मान कर पूरे मुस्लिम समाज को इसका जिम्मेदार ठहराने की प्रोपगंडा चालू कर दिया जाता है।
हो सकता है कि पश्चिम बंगाल जैसी एक दो घटनाओं में मुसलामान भी जिम्मेदार हो तो यह इस देश में क्युँ समझा जाता है कि मुसलमान कुछ गलत नहीं कर सकता ? फिर कुछ लोगों के कुछ गलत करने को पूरे कौम की जिम्मेदारी क्युँ मान ली जाती है ?
1984 सिख विरोधी दंगे और पंजाब से लेकर ताज़ा ताज़ा दार्जिलिंग जैसे हिंसा के तमाम उदाहरण इस देश में हैं , वह क्युँ हैं ? यहाँ तो मुसलमान नहीं था ?
माफ कीजिएगा , दंगों में दूसरा पक्ष सिख , इसाई , मुसलमान में से कोई एक तो हो सकता है पर पहला पक्ष हर दंगों में एक "बहुसंख्यक" ही होता है फिर भी सरकारें उसे किसी भी हिंसा का जिम्मेदार नहीं मानतीं।
यह है दंगों के प्रति दोगलापन