मुहम्मद जाहिद सोचिएगा ज़रा कि ज़हर कितना और कहाँ कहाँ भर दिया गया है और यह भी सोचिएगा कि भारतीय समाज के 25 करोड़ नागरिक इसी भारतीय समाज...
मुहम्मद जाहिद
सोचिएगा ज़रा कि ज़हर कितना और कहाँ कहाँ भर दिया गया है और यह भी सोचिएगा कि भारतीय समाज के 25 करोड़ नागरिक इसी भारतीय समाज में किस तरह दोगलेपन का शिकार होते हैं। हालाँकि यह घटना उसका एक छोटा सा उदाहरण है पर इससे आप अनुमान तो लगा ही सकते हैं कि जहाँ कहीं भी यह नफरती संघी बैठे हों वहाँ पर उन 25 करोड़ लोगों के साथ क्या दोगलापन होता होगा।
अमरनाथ यात्रियों को लेकर जम्मू आ रही जिस बस पर आतंकवादियों ने फायरिंग की और 7 तीर्थयात्रियों की हत्या की उसके ड्राइवर सलीम शेख की सूझ बूझ और बहादुरी की देश और विदेश में प्रशंसा संघियों द्वारा बर्दाश्त नहीं हुई और पहले तो आतंकवादियों के साथ मिलीभगत का उस पर आरोप लगाया , सुदर्शन न्यूज़ का मालिक चौहाणके ज़हर उगलता रहा और फिर जब यह आरोप नहीं टिका तो गुजरात के एक बड़े अखबार की वेबसाइट से यह झूठी खबर चला दी गयी कि बस सलीम नहीं बल्कि बस का मालिक हर्ष देसाई चला रहा था।
दैनिक भारत वेबसाइट ने प्रकाशित झूठी खबर, पढ़ने के लिए यहां किल्क करें
सोचिएगा कि नफरतें कहाँ आ गयीं और कहाँ कहाँ घर कर गयीं हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बहादुरी और सूझ बूझ से 49 अमरनाथ यात्रियों की जान बचाई वह केवल इसलिए आक्रमण के केन्द्र पर है क्युँकि वह "मुसलमान" है , और ऐसा धर्मांधता के वही ठेकेदार कर रहे हैं जो हिन्दू धर्म को अपने बाप की जागीर समझते हैं , उसी धर्म के 49 लोगों को बचाने वाला यदि सलीम है , यदि वह मुसलमान है तो वह प्रशंसा , मान सम्मान का हकदार नहीं है बल्कि शक , झूठे इल्जाम और झूठे प्रोपगंडे का हकदार है।
जानते हैं क्युँ ? क्युँकि "सलीम" ने हिन्दू-मुस्लिम की एकता और सद्भाव को मज़बूत करने वाला काम किया है और उसके इस काम से इन नफरती संतरों के ज़हर फैलाने की मुहिम को धक्का लगा है।
सलीम का नाम आते ही और उसके सोशलमीडिया पर छाते ही कुछ लोगों ने उसको बस के पंजीकरण से लेकर अन्य सभी कारणों का जिम्मेदार ठहराना शुरु कर दिया जबकि बस का मालिक बस में मौजूद था , यह झूठ पकड़ा गया तो अब ड्राइविंग सीट पर सलीम की जगह हर्ष देसाई को बैठा दिया गया।
ज़रा सोचिएगा इनके दावों पर कि बस को 20-25 आतंकवादियों ने घेर कर गोलीबारी शुरू कर दी। फिर ज़रा सोचिएगा कि भारतीय सुरक्षातंत्र और खूफिया एजेंसी किस तरह नाकारा हो सकती हैं कि अमरनाथ यात्रा जैसे बेहद संवेदनशील रास्ते में 25 आतंकवादी आ सकते हैं जो बस का इंतज़ार सड़क से 10-15 मीटर दूरी पर ही कर रहे होंगे और सुरक्षा बलों , ड्रोन कैमरे और 1 घंटे पहले उजाले में भी दिख ना सके और गुजरात के बड़े अखबार के अनुसार उन्होंने बस को घेरकर फायरिंग कर दी।
सोचिएगा कि 49 तीर्थ यात्रियों की जान बचाने वाला इसी धर्म के कुछ लोगों से गाली खा रहा है तो क्युँ खा रहा है ?
सिर्फ़ इसलिए कि वह "मुसलमान" है।
बस में सवार तीर्थयात्रियों यशवंत डोगरे और कैलाश प्रजापति के अनुसार बस पर फायरिंग कर रहे कुल आतंकवादी/लोग/ ?? 3 से 5 थे जो पुलिस या सेना की वर्दी में थे।
ध्यान दीजिए यहाँ , पुलिस या सेना की वर्दी।
उन नफरत के सौदागरों के लिए महत्वपूर्ण यहाँ यह नहीं कि वह सेना की वर्दी वाले कौन थे , यह भी महत्वपूर्ण नहीं कि उन 49 तीर्थयात्रियों की जान बची बल्कि उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि उन 49 तीर्थयात्रियों को बचाने वाले का धर्म क्या था।
देखिए इनके झूठ और नफरतों का खेल , जबकि बस का वही मालिक "हर्ष देसाई" और तमाम तीर्थयात्री खुद स्वीकार कर रहे हैं कि बस सलीम चला रहा था और गोलीबारी के समय वह सलीम के बगल में बैठा था।
यह यहाँ भी झूठे साबित हो गये।
दरअसल इनको 49 यात्रियों के जीवित बचने से मतलब ही नहीं बल्कि यह तो इससे दुःखी होंगे कि सभी 57 मरते तो गोधरा के कारसेवकों की लाशों की तरह लाशयात्रा निकाल कर राजनैतिक फसल निकट होने वाले गुजरात चुनाव में काटी जाती। जिसे सलीम ने विफल कर दिया।