नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिवसीय इजरायल यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक है. देश के 70 वर्षों के इतिहास में भारतीय प्रधान...
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिवसीय इजरायल यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक है. देश के 70 वर्षों के इतिहास में भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला इजरायल दौरा है, जिसमें दोनों देशों के बीच कृषि, विज्ञान, अंतरिक्ष और जल प्रबंधन जैसे अहम क्षेत्रों में कुल 7 समझौते हुए.
पीएम मोदी अपनी इस यात्रा के दौरान भारत की पूर्ववर्ती सरकारों की तरफ से बरती गई इजरायल से दूरी को रेखांकित करते हुए भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों को नई उंचाइयों तक ले जाने की बात कही.
यहां गौर करने वाली बात यह इस्राइल से राजनयिक संबंधों में गर्मजोशी पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के दौर में शुरू हुई. हालांकि तब भी दोनों देशों के बीच के संबंध दबे-छुपे ही रहे. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत इस पश्चिम एशियाई देश से खुले रिश्ते में यूं कतराता क्यों रहा..
इजरायल से मेल-मिलाप में इस संकोच के पीछे दो तर्क बताए जाते हैं. पहला यह कि इस यहूदी देश से करीबी अरब देशों से भारत के संबंधों में तनाव की आशंका, दूसरा देश की मुस्लिम आबादी की नाराजगी. दरअसल मुस्लिम राष्ट्रों से घिरे इजरायल से अरब देशों के रिश्ते हमेशा ही कटुता भरे रहे हैं. अरब जगत इजरायल की स्थापता का शुरू से ही विरोध करते रहे हैं और वर्ष 1948 में इजरायल की स्थापना के तुरंत बाद इस पर हमला कर दिया था. हालांकि अरब देशों का वह हमला नाकाम रहा, लेकिन उनके बीच की दुश्मनी खत्म नहीं हुई.