मुहम्मद जाहिद यह सच है कि "पहला प्यार और किसी से लिया हुआ उधार" कोई भी कभी नहीं भूलता। दरअसल "पहले प्यार" से मतलब...
मुहम्मद जाहिद
यह सच है कि "पहला प्यार और किसी से लिया हुआ उधार" कोई भी कभी नहीं भूलता।
दरअसल "पहले प्यार" से मतलब ही यही है कि वह प्यार पाया नहीं जा सका और किसी दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ रहा हो।
हकीक़त यह भी है कि "प्यार" में पाने की कोई शर्त नहीं होती , हाँ पवित्रता और त्याग की अवश्य होती है।
प्यार की पूरी परिकल्पना में यदि किसी से किया गया प्यार इस उद्देश्य से हो कि वह उसे जीवन भर के लिए पा ले तो यह कहीं ना कहीं स्वार्थ के आधार पर किया प्यार होता है।
प्यार की कोई शर्त नहीं होती , ना ही यह पुर्व नियोजित होती है ना किसी उद्देश्य से होती है ना किसी स्वार्थ के कारण होती है। और यदि वह प्यार इन सब कारणों के कारण हुआ तो निश्चित रूप से वह प्यार नहीं , एक साजिश है।
प्यार तो स्वतःस्फूर्त एक भाव है जो किसी के प्रति बिना कुछ भी सोचे मन में पैदा हो जाता है , ऐसा प्यार सोचने समझने का अवसर भी नहीं देता।
"पहला प्यार" सभी का बहुत त्याग-तपस्या भरा होता ही है और यह "दो जीवन" किसी भी कारण मिलन को प्राप्त ना करके अलग हो जाते हैं , दरअसल जो प्यार जुदाई के साथ जीवन भर तड़प पैदा करे उस प्यार की पवित्रता अपने चरम पर होता है।
और वह पहला इसी लिए कहा ही जाता है कि कोई दूसरा उसके जीवन में आ चुका होता है।
पहला प्यार सदैव याद आता है , इसके बावजूद भी कि दूसरे प्यार के प्रति वह पूरी तरह ईमानदार हो , दूसरा प्यार कोई और या पति अथवा पत्नी भी हो सकते हैं।
सावन का महीना प्रेम का महीना होता ही है , ग्रामीण क्षेत्र में पेड़ो पर पड़े झूले और फिर बरसात में लगते मेले तो शहरों में मोटरसाइकिल और बरसात में एक लम्बी यात्रा अपने प्यार के साथ।
इलाहाबाद की बात करूँ तो ऐसी ही लगभग 3 बरसातें हर बरसात में क्लास छोड़कर या घर से बाहर भारद्वाज पार्क , सरस्वती घाट में तेज़ हवाओं का झोका और फिर बरसते आसमान के नीचे संगम की गहरी यमुना के बीचो-बीच एक झोपड़ी नुमा नाँव , बारिश और मैं और तुम।
भीगता नाविक और आधे भीगे दो प्रेम करने वाले , अपने भविष्य , अपने मिलन से बेखबर , एक पवित्र संबंधों की मर्यादा समेटे , आधे भीगे कई घंटों संगम की उन लहरों को अपने हाथों में समेटे जिन पर बारिश की मोटी मोटी बूँदें गिरतीं और उनके हाथों और कपड़ों को भिगो जातीं।
आगे बढ़ती नाव और पास आती गंगा , गंगा का पानी हाथों से लेकर सर पर और ज़हन में सवाल कि गंगा पवित्र है या यह प्यार ? तुलना निर्रथक नहीं , गंगा बहुत दूर से चलकर गंदे सीवर नालों को समेटे अपने पवित्र होने की गारंटी देती है तो यह प्यार भी , जिसकी दूरी किलोमीटर में नहीं नापी जा सकती। दो धर्मों की दूरी को नापना कैसे संभव है ? गंगा से पूछना कि तू तो जमुना और सरस्वती से मिल गयी पर इस मिलन का क्या ?
लहरें ऐसे सवालों के जवाब कहाँ देती हैं?
सावन की झटा के ऐसे लम्हे किसी को भी अपना पहला प्यार याद दिला ही देते हैं और फिर दिल से दुआ निकलती है कि ऐ मेरे दिल तुम जहाँ भी रहो खुश रहो , तुम्हें हमारे हिस्से की खुशियाँ भी मिल जाएँ।
ये बारिश और मैं और तुम और वो दिन बहुत याद आते हैं ।