कुमार सौवीर पहले तो आपको यह खबर याद दिला दें कि सोमवार की शाम करीब पांच लोगों पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। दरअसल, डायनेमिक एक्शन ग्रुप...
कुमार सौवीर
पहले तो आपको यह खबर याद दिला दें कि सोमवार की शाम करीब पांच लोगों पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। दरअसल, डायनेमिक एक्शन ग्रुप एवं बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच की ओर से हो रही थी गोष्ठी, पुलिस को आशंका थी कि यह लोग शांति भंग करेंगे, इसलिए पुलिस ने इन आठ लोगों को दबोच लिया। इसके बाद अब यह जानकारी आपको बता दूं कि लखनऊ के अखबारों ने इस घटना को किस घटिया तरीके से पाठकों तक परोसा।
सच बात तो यही है कि अधिकांश अखबारों ने इस घटना को बेहद घटिया, गैरजिम्मेदारी पूर्ण और लापरवाही भरे अंदाज में पेश किया। कई अखबारों ने तो पकड़े गये इन लोगों को कुछ इस तरह पेश किया कि मानो वे कोई घटिया अपराधी हों। कई अखबारों ने तो तथ्य को तोड़-मरोड़ कर पेश कर दिया। दो-एक को छोड़ दिया जाए, तो सारे अखबारों ने तथ्यों के साथ बाकायदा बलात्कार कर डाला। कहने की जरूरत नहीं कि इन अखबारों ने तथ्य के बजाय खुद को केवल सरकारी और पुलिस के दलाल की भूमिका निभा दी। मौके पर पहुंचने की कोई जरूरत नहीं समझी, बल्कि पुलिस ने जो भी बताया, इन पत्रकारों ने वही छाप दिया।
कहने की भी यह जरूरत नहीं है कि आम पाठक ऐसे ही पत्रकारों को दलाल और गैर-जिम्मेदार अपराधी मानता है।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सारे अखबार एक ही सुर में थे। दैनिक जनसंदेश टाइम्स ने इस खबर को बेहद गम्भीर घटना की तरह पेश किया। पहले पन्ने पर छह कॉलम में बॉटम पेज खबर छापी है इस अखबार ने। इस अखबार ने साबित किया कि रमेश दीक्षित कोई अपराधी नहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर हैं, चिंतक हैं, और मानवाधिकार पर अथॉरिटी हैं। आरएस दारापुरी कोई गुंडा नहीं, यूपी पुलिस के आईपीएस होने के चलते आईजी रह चुके हैं। आशीष अवस्थी पत्रकार हैं। ठीक इसी तरह सभी पकड़े गये लोग किसी चोरी-उचक्की के लिए नहीं, बल्कि अपने कद से पहचाने जाते हैं।
नवभारत टाइम्स ने छापा है:- रिटायर्ड IPS समेत 8 अरेस्ट, शांति भंग के आरोप में प्रेस क्लब से गिरफ्तार करने बाद सभी को पुलिस लाइंस ले जाया गया। रिटायर्ड आईपीएस एसअर दारापुरी, एलयू के रिटायर्ड प्रफेसर रमेश दीक्षित सहित आठ लोगों को सोमवार को लखनऊ पुलिस ने प्रेस क्लब से शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। यह सभी 'दलित अत्याचार व निदान' विषय पर आयोजित गोष्ठी में शामिल होने प्रेस क्लब पहुंचे थे। पुलिस लाइंस में सभी का शांति भंग करने के आरोप में चालान किया गया। इसके बाद मैजिस्ट्रेट ने मुचलका भरवाकर सभी को छोड़ दिया।
लेकिन सबसे पहले तो उन खबरों को देख लीजिए जो हिन्दुस्तान और अमर उजाला ने छापी। सबसे शर्मनाक अंदाज तो पूरी दुनिया में लिंग-वर्द्धक यंत्रों के सर्वाधिक विज्ञापन छापने वाले विचित्र-यंत्र विज्ञापन-पत्र हिन्दुस्तान अखबार का था। हैरत की बात है कि यह खबर प्रमुख संवाददाता के नाम से छपी है। जरा देखिये तो उसने क्या छापा है:- रिटायर आईपीएस समेत आठ लोग गिरफ्तार। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को साबुन और शैम्पू देने के लिए गुपचुप जमा हुए आठ लोगों को कैसरबाग पुलिस ने सोमवार को गिरफ्तार कर लिया। ये लोग मीडिया संवाद के नाम पर प्रेस क्लब में इकट्ठा हुए थे। बाहरी राज्यों से आ रहे 31 लोगों को लखनऊ में अलग-अलग स्थानों से पकड़ा गया है। इन सभी को देर शाम कोर्ट से जमानत पर रिहा कर दिया गया।
खबर लिखी गयी है कि यह गिरफ्तारी प्रेस क्लब के बाहर हुई। जबकि साथ में लगी फोटो चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है कि यह लोग प्रेस क्लब के भीतर से बाहर लाये जा रहे हैं। मूर्ख रिपोर्टर बताता है कि इन सभी को एसीएम तृतीय की कोर्ट में पेश किया गया। इनके खिलाफ शांति भंग की आशंका के तहत कार्रवाई की गई थी। इन सभी को कोर्ट से जमानत दे दी गई। इस रिपोर्टर को इतनी भी तमीज नहीं कि जमानत और मुचलके में क्या फर्क होता है। घर में बैठ कर इस रिपोर्टर ने वही लिख मारा जो भी पुलिस के सीओ ने बताया।
अमर उजाला के भंगेड़ी रिपोर्टर ने दारापुरी को पूर्व डीजीपी बना दिया।
जबकि दैनिक जागरण ने पहले के पांच पन्नों पर तो सारा कूड़ा-करकट छापने के बाद ही इस खबर को छापा, लेकिन पूरी बात सच कही। लिखा कि:-पुलिस ने प्रेस क्लब के अंदर से गिरफ्तार कर लिया। इनके विरुद्ध शांति भंग करने का मुकदमा कायम किया गया। पुलिस लाइन ले जाया गया। वहां पहुंचे मजिस्ट्रेट अमित कुमार ने उन्हें मुचलके पर रिहा कर दिया। दारापुरी व रमेश दीक्षित के मुताबिक सोमवार को प्रेस क्लब में ‘वर्तमान में राजनीति में दलितों की दिशा और दशा’ विषय पर गोष्ठी चल रही थी, उसी समय कैसरबाग पुलिस ने उन्हें और उनके सहयोगियों को धारा 144 के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। दोनों ने गिरफ्तारी को नियमों का उल्लंघन बताया। जबकि कैसरबाग कोतवाली के इंस्पेक्टर डीके उपाध्याय का कहना है कि यह लोग प्रेस क्लब के बाहर नारेबाजी कर रहे थे। प्रदर्शन की अनुमति नहीं ली थी। पुलिस आरोपितों को पुलिस लाइन लेकर गई, जहां सोमवार शाम करीब पांच बजे मजिस्ट्रेट ने 25 हजार रुपये के मुचलके पर सबको रिहा कर दिया। जबकि पुलिस लाइंस से मिले मुचलके की कार्रवाई को हिन्दुस्तान कोर्ट से जमानत में तब्दील कर दिया।