मुहम्मद जाहिद कल रात एक पोस्ट की और सो गया कि "महत्वपूर्ण सूचना रात्रि 12 बजे के बाद केवल व्यस्कों के लिए पोस्ट की जाएगी। सुबह ल...
मुहम्मद जाहिद
कल रात एक पोस्ट की और सो गया कि "महत्वपूर्ण सूचना रात्रि 12 बजे के बाद केवल व्यस्कों के लिए पोस्ट की जाएगी।
सुबह लोगों की एक ही जैसी मानसिकता वाली टिप्पणियों से कमेन्ट बाक्स भर गया। कुछ लोग रात्रि के 12 बजने का इंतज़ार करते रहे तो कुछ लोग सुबह तक जगते भी रहे होंगे।
कुल मिलाकर सभी के कमेन्ट "केवल व्यस्कों के लिए" के संदर्भ में एक ही जैसे थे कि मैं किसी एक विशेष विषय पर ही 12 बजै रात्रि के बाद पोस्ट करूँगा।
यह होती है "किसी विषय पर सबकी एक जैसी सोच का बन जाना" और भारत में यही सोच बनाती है हमारी फिल्में और भाँड मीडिया।
किसी समय किसी भी फिल्म के प्रारंभ में यदि "A" या "केवल व्यस्कों" के लिए यदि स्क्रीन या पोस्टर पर दिख गया तो जनता यह मान लेती थी कि इसमें कुछ नग्नता होगी , इसमें कुछ काम-क्रिड़ा के उत्तेजक दृश्य होंगे।
दरअसल "A" सर्टिफिकेट या "केवल व्यस्कों के लिए" शब्द को लेकर संचार और प्रचार माध्यमों के माध्यम से जनता का माइंड सेट जैसे बना दिया गया है वैसा ही माइंडसेट बना दिया गया है "आतंकवादी" को लेकर , आतंकवाद और आतंकवादी वही कहा जाएगा जिसमें मुसलमान शामिल हो जैसे "केवल व्यस्कों के लिए" सोच कर नग्नता और सेक्स से भरी फिल्म ध्यान में आ जाती है।
दरअसल वाक्य "केवल व्यस्कों के लिए" केवल नग्नता और सेक्स से संबंधित चलचित्र के लिए ही नहीं होता बल्कि हर उस विषय के लिए होता है जिसे देख कर बच्चों के मनमस्तिष्क पर नकरात्मक प्रभाव पड़े क्युँकि उनकी मनःस्थिति अपरिपक्व होती है।
"केवल व्यस्कों के लिए" में पति-पत्नी , स्त्री-पुरुष के संबंधों की स्वस्थ चर्चा और किसी फिल्म में बहुत अधिक हिंसा और किसी फिल्म का बहुत "हंटेड" अर्थात डरावना होना भी शामिल है।
"भाभी जी घर पर हैं" "केवल व्यस्कों के लिए" की कैटेगरी के कारण ही प्राइम टाईम की जगह रात्रि 10:30 के स्लाट में प्रसारित होती हैं।
"केवल व्यस्कों के लिए" पोस्ट पर गुगली खाए लोग अपनी सोच थोड़ा और बड़ी कर लें तो बेहतर है।
खैर वह पोस्ट किस मकसद से मैंने की आइए वह देखते हैं।
दरअसल आतंकवाद और आतंकवादी देश इज़राइल को लेकर भी हमारी मानसिकता भाँड मीडिया द्वारा इसी तरह सेट कर दी गयी है। आइए तोड़ते हैं इस परसेप्शन को और जानते हैं इज़राइल का इतिहास।
इज़रायल नाम का नया राष्ट्र 14 मई सन् 1948 को अस्तित्व में आया , इसके पूर्व इज़राइल नाम का कोई देश नहीं था। इज़रायल राष्ट्र, प्राचीन फ़िलिस्तीन अथवा पैलेस्टाइन का ही बृहत् भाग है।
दरअसल , इसके पहले यहूदियों का कोई अलग राष्ट्र नहीं था, वह पूरी दुनिया के हर हिस्से में फैले हुए थे इसी तरह फिलीस्तीन के इस हिस्से में भी कुछ फैले हुए थे।
इतिहास है कि ,छठी ई. तक इज़रायल पर रोम और उसके पश्चात् पूर्वी रोमी साम्राज्य बीज़ोंतीन का प्रभुत्व कायम रहा। खलीफ़ा हज़रत अबूबक्र रजि• और खलीफ़ा हज़रत उमर रजि• के समय अरब और रोमी (Bizantine) सेनाओं में टक्कर हुई।
सन् 636 ई. में खलीफ़ा हज़रत उमर रज़ि• की सेनाओं ने रोम की सेनाओं को पूरी तरह पराजित करके फ़िलिस्तीन पर, जिसमें इज़रायल और यहूदा शामिल थे, अपना कब्जा कर लिया।
खलीफ़ा हज़रत उमर रजि• जब यहूदी और अपने इस्लामिक पैगंबर हज़रत दाऊद अलैहेस्सलाम के प्रार्थनास्थल पर बने यहूदियों के प्राचीन मंदिर में गए तब उस स्थान को उन्होंने कूड़ा कर्कट और गंदगी से भरा हुआ पाया।
हज़रत उमर रजि• और उनके साथियों ने स्वयं अपने हाथों से उस स्थान को साफ किया और उसे यहूदियों के सपुर्द कर दिया।
यह भाग भले अरबी साम्राज्य के अंतर्गत था परन्तु यहूदी यहाँ रहते थे।
जर्मनी यहूदियों का सबसे बड़ा गढ़ था , एडोल्फ हिटलर ने जब जर्मनी में यहूदियों का कत्ले-आम प्रारंभ किया और चुन चुन कर एक एक यहूदियों को मारने लगा तब मुस्लिम राष्ट्रों ने अपने धर्म इस्लाम की एक मान्यता प्राप्त किताब "तोरेत" और अपने ही धर्म के एक पैगम्बर "हज़रत दाऊद अलैहेस्सलाम" को मानने वाले यहूदियों को अपनी ज़मीन पर पनाह दी , और फिर जर्मनी से जान बचाकर भाग रहे सभी यहूदी इस क्षेत्र में जमा हो गये , यह क्षेत्र यहूदी बहुल हुआ तो धीरे धीरे पूरी दुनिया के यहूदी इसी क्षेत्र में आ कर बसने लगे।
इस्लामिक राष्ट्रों के द्वारा यहूदियों की जान बचाने के लिए दी गयी इस मदद के बदले "यहूदियों" ने फिलिस्तीन और इस्लामिक राष्ट्रों को धोखा दिया और अमेरिका की व्यवस्था में घुस गये यहूदियों के माध्यम से अमेरिका के प्रभाव का प्रयोग करके उस शरणार्थी क्षेत्र को अलग राष्ट्र "इज़राइल" 14 मई सन् 1948 को घोषित करा लिया।
अरब राष्ट्रों के अकूत प्राकृतिक संपदा पर गिद्ध दृष्टि जमाए अमेरिका के लिए यह क्षेत्र सभी इस्लामिक देशों पर अपना नियंत्रण रखने का एक अड्डा बना और आज सारे मुस्लिम राष्ट्र अमेरिका की इसी नीति से अस्थिर हैं। दरअसल असली आतंकवादी अमेरिका और इज़राइल हैं पर परसेप्शन वैसी ही बना दी गयी है जैसी "केवल व्यस्कों के लिए" के संदर्भ में बन गयी है।
यह है कहानी "कर भला तो हो बुरा" , विपत्ति के समय यहूदियों को जान बचाने के लिए दी गयी मुसलमानों द्वारा शरण आज उन्हीं यहूदियों से जान बचाने की स्थिति में वही मुसलमान आ गये जिन्होंने कभी इनकी जान बचाई थी।
दरअसल इज्राइल को लेकर भी एक "परसेप्शन" वैसा ही बन गया है जैसे "केवल व्यस्कों" के लिए बन गया है कि वह और उसका क्षेत्र आतंकवाद प्रभावित है , जबकि पूरी दुनिया में आतंकवाद की धूरी वही इज़राइल है और यह सब अमेरिका की नीति से होता है।
इज़राइल का इतिहास है कि वह किसी का सगा नहीं , यहाँ तक कि अमेरिका के रहमों करमो पर पलने वाला यह देश अक्सर अमेरिका को भी धमकी देता रहा है।
इज़राइल "काला नाग" है , जिसका दूध पीता है उसी को डसता है , इज़राइल , इस्लामिक देशों में अमेरिका के आतंकवाद फैलाने और उनको अस्थिर करने का मुख्यालय है , भारत इसीलिए सदैव इस देश से दूर रहा और फिलिस्तीन का समर्थक रहा है।
दरअसल भारत की विदेश नीति भी अब अपने परम्परागत मित्र देशों की दोस्ती में धोखेबाजी की ही रही है , रूस , इराक , इरान , नेपाल जैसे मित्र अमेरिका से दोस्ती के नाम पर भारत से धोखा खा चुके हैं।
अमेरिका के हाथों खेल रहे अपने घुमक्कड़ प्रधानमंत्री को वहाँ सचेत रहने की आवश्यकता है , दूध पिलाने के चक्कर में यह देश कहीं भारत को डस ना ले।
"स्वागत है मेरे दोस्त" से सावधान रहने की आवश्यकता है , नहीं जाना चाहिए था परन्तु शायद एक देश के दौरा करने से उनकी विदेश यात्रा के इतिहास में कुछ कमी रह जाती।
और एक " समान डीएनए" भाई से मिलने की वर्षों की प्रबल इच्छा को पूरी भी तो करना था।