बेकारी के दौर में मेरा सामना एक ऐसे व्यक्तित्व से हुआ था, जिसने आदर्श को ज़िंदा कर रखा था। एक संगोष्ठी में उनको वक्ता के रूप में आमंत्रित...
बेकारी के दौर में मेरा सामना एक ऐसे व्यक्तित्व से हुआ था, जिसने आदर्श को ज़िंदा कर रखा था। एक संगोष्ठी में उनको वक्ता के रूप में आमंत्रित किया तो वह दिए गए समय से 10 मिनट पूर्व ही सभास्थल पर उपस्थित हो गए। कार्यक्रम में विलंभ होते देख वह नाराज़गी प्रकट कर चले गए। नवोदित रचनाकारों को से संवाद करना, नए पत्रकारों को चाय पर बुलाकर उनको बारीकियां बताना, पेशेगत चुनौतियों को सहजता के साथ समझाना उनकी दिनचर्या थी। थी इसलिए कि वह विराट व्यक्तित्व अब इस दुनिया में नहीं है।
हिंदी और भोजपुरी भाषा के प्रख्यात कवि, व्यंग्यकार, वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हरींद्र द्विवेदी उर्फ अरुण गोरखपुरी का आज सुबह ग्यारह बजे गोरखपुर के निजी अस्पताल में देहावसान हो गया। वे पिछले एक हफ्ते से बीमार चल रहे थे। वे काफी जिंदादिल और हंसमुख इंसान थे। दैनिक जागरण, अमर उजाला, सर्वप्रथम, न्यूज फॉक्स के इंचार्ज रहे गोरखपुरी जी जैसे थकना ही नहीं जानते थे। जब भी मैं संकट में होता, तो उनसे कहता था, गोरखपुरी जी, एक व्यंग्य दीजिए जल्दी से।
वे हंसते हुए कहते थे, बाबू, आधा घंटा बा न.. इसके बाद वे अपने काम में जुट जाते थे। साथ में मैं यह कहना नहीं भूलता था-पेज लेट नहीं होना चाहिए। पलटकर वे कहते थे- चिंता न करो, बाबू। आज यह साथ भी छूट गया। यह हिंदी और भोजपुरी कविता के साथ-साथ मीडिया जगत की अपूर्णीय क्षति के साथ-साथ मेरी व्यक्तिगत क्षति है। लोक मीडिया मंच की ओर से अरुण गोरखपुरी को विनम्र श्रद्धांजलि, नमन।