कुमार सौवीर हरिद्वार : आईएएस अफसर चाहे यूपी का हो, या फिर उत्तराखण्ड का, विवादों से लिथड़ने की नियति बन चुकी है। ताजा मामला है एक सरक...
कुमार सौवीर
हरिद्वार : आईएएस अफसर चाहे यूपी का हो, या फिर उत्तराखण्ड का, विवादों से लिथड़ने की नियति बन चुकी है। ताजा मामला है एक सरकारी अवर अभियंता की, जो हरिद्वार के जिलाधिकारी कार्यालय के खुले स्थान में शौच कर रहा था। डीएम को इस हरकत की खबर मिली, तो उन्होंने आव देखा, न ताव, हुक्म जारी कर दिया कि इस जेई पर पांच हजार रूपयों का जुर्माना लगा दिया जाए। लेकिन इसके बाद यह विवाद खड़ा हो गया है कि क्या जिलाधिकारी को ऐसा कोई आदेश जारी करने का अधिकार है भी या नहीं। कुछ भी हो, कलेक्टर के इस फैसले से इतना तो तय हो ही गया कि आइएएस मनमर्जी पर आमादा हैं। इतना ही नहीं, वे खुद को किसी बेअन्दाज हुक्मरान की तरह खुद को बाकायदा भारत का संविधान ही समझते हैं, जहां बाकी ताकतें और बंदिशें आत्मसमर्पण कर देती हैं।
विगत 30 जून का वाकया है। दोपहर का समय था। रोजाना की तरह इस दिन भी कलेक्ट्रेट परिसर में सारे अधिकारी-कर्मचारी और जन-सामान्य भी अपने कामधाम में व्यस्त थे। यह कलेक्ट्रेट परिसर यहां के रौशनाबाद में स्थित है। जिलाधिकारी कार्यालय और उसके अन्य अधिकारियों-कर्मचारियों का भी कामधाम यहीं पर अलग-अलग भवनों में चलता रहता है। चकबंदी और कलेक्ट्रेट के कामधाम के चलते यहां वाद-प्रतिवादी गणों के साथ ही साथ वकीलों की भी खासी भीड़ होती है।
अचानक किसी ने जिलाधिकारी को यह खबर दी कि डीएम परिसर के खुले स्थान में एक शख्स सरेआम शौच कर रहा है। पता चला कि यह हरकत एक ऐसे शख्स ने की है, जो खुद ही एक शासकीय कर्मचारी है। यह भी पता चल गया कि जगदीश प्रसाद नामक यह शख्स मंगलौर नगर पालिका परिषद में अवर अभियंता के पद पर काम कर रहा है, और घटना के दिन वह शासकीय काम निपटाने के लिए कचेहरी आया था। कि अचानक उसे हाजत महसूस हुई, आसपास कोई व्यवस्था न होने पर जगदीश ने खुले में ही अपना निबटान कर लिया।
पता चला कि इसी खबर से अपने कार्यालय में मौजूद जिलाधिकारी दीपक रावत नाराज हो गये। उन्हें जगदीश पर पांच हजार रूपयों का जुर्माना लगाया और उस आदेश की प्रतिलिपि जिले के सभी विकास, राजस्व, प्रशासनिक और अन्य अधिकारियों को भी भेज दिया। दीपक तो इतने नाराज थे कि आदेश में उन्होंने समस्त के बजाय सतमस्त खंड विकास अधिकारी लिख दिया।
लेकिन इस आदेश ने जिलाधिकारी दीपक रावत के अधिकारों को लेकर बहस छिड़ गयी।
पहली बात तो यह कि इस आदेश में केवल शौच का जिक्र किया है, यह स्पष्ट नहीं है कि यह लघुशंका का प्रकरण है अथवा दीर्घशंका का। कारण यह कि कलेक्ट्रेट परिसर में लघुशंका की सम्भावनाएं तो हैं, लेकिन शौच की बात समझ में नहीं आती है। कोई भी व्यक्ति भीड़-भड़क्के वाले इलाके में खुले स्थान पर शौच कैसे करेगा। हां, यह हो सकता है कि कलेक्ट्रेट का शौचालय बहुत गंदा हो, क्योंकि कलेक्ट्रेट और अन्य सरकारी शौचालयों की हालत बहुत खराब होती है। देखभाल व नियमित साफ-सफाई का कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता है। ऐसे में अगर जगदीश ने सरकारी शौचालय की भारी गंदगी के बजाय खुले में जाने की हिमाकत कर डाली तो उसमें क्या दोष।
दीपक रावत को अगर ऐसा लगा कि जगदीश ने खुले में शौच किया है और यह अपराध है तो उन्हें उस आदेश जारी करते वक्त उन कारणों का जिक्र करना चाहिए था, और उसके बाद स्पष्टीकरण की प्रक्रिया अपनानी चाहिए। लेकिन दीपक रावत ने केवल दण्ड का ऐलान कर पूरे जिले और मीडिया को भी उसका ब्योरा दे दिया।
एक बात और है कि शौच पर जुर्माना लगाने का कोई प्राविधान ही नहीं है। न तो इस बारे में जिलाधिकारी के अधिकारों में जिक्र है और न ही नगर पालिका परिषद के नियम-कानूनों में इसका खुलासा किया गया है। ऐसे में किस आधार और किस प्रक्रिया में जिलाधिकारी दीपक रावत ने यह आदेश जारी कर दिया। खुले में शौच करने में जुर्माना लगाना तो किसी भी कोने में जायज नहीं लगाया जा सकता है।
अब अगर जगदीश ने डीएम के इस आदेश को न्यायालय में चुनौती दे दी, तो यह आदेश-पत्र एक ही सुनवाई में खारिज हो जाएगा। हालांकि ऐसा हो नहीं पायेगा, क्योंकि कोई भी अवर अभियंता स्तर का अधिकारी अपने जिलाधिकारी से सीधे विवाद नहीं करना चाहेगा। लेकिन अगर किसी ने इस मामले को जनहित याचिका के तौर पर पेश किया, तो दीपक रावत गहरी समस्या में फंस जाएंगे। इतना ही नहीं, दीपक ने इस जुर्माना की वसूली के लिए मंगलौर नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी को जिम्मा दिया है, कि वे यह पांच हजार की रकम कोषागार में जमा करें। लेकिन अगर जगदीश ने इस अदायगी से मना कर दिया, तो अधिशासी अधिकारी कुछ भी नहीं कर सकते हैं।
अब जरा इस आदेश की वैधानिक पर बात कर लिया जाए। प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने मेरी बिटिया डॉट कॉम को बताया कि जिलाधिकारी के पास अनगनित शक्तियां हैं, जिनके बल पर वह किसी भी आदेश का अनुपालन करा सकता है। इस अधिकारी ने बताया कि नगर पालिका अधिनियम में भी खुले में शौच के खिलाफ नियम हैं। लेकिन एक अन्य वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने ऐसे किसी अधिकार को निराधार बताते हुए कहा कि यह आदेश पूरी तरह अवैधानिक है, और यह एक क्षण भी अदालत में नहीं टिक पायेगा। उप्र के स्थानीय निकाय प्रशासन में तैनात अपर नगर आयुक्त स्तर के अधिकार भी बताते हैं कि इस तरह के कोई भी नियम-कानून हमारे पास नहीं हैं, जिसमें हम खुले में शौच करते व्यक्ति पर जुर्माना लगा सकें। इस अधिकारी का कहना था कि आईएएस संवर्ग के अधिकांश अधिकारी खुद को खुदा मानने की गलतफहमी का शिकार हो चुके हैं। वे खुद को तानाशाह, मालिक और भारत का संविधान से भी ऊपर मानना शुरू कर देते हैं। ऐसी हालत अक्सर बहुत भयावह हालातों को जन्म देती है। यूपी में तो प्रशासनिक ढांचा इन अफसरों की मनमर्जी और तानाशाही से त्रस्त है, अब हरिद्वार में भी यह शुरू हो चुका लगता है।
एक अन्य अधिकारी ने भी इस आदेश को सिरे से मूर्खतापूर्ण बताया है। इस अधिकारी का कहना है कि बंदूक की गोली या चाकू का मारा हुआ कोई शख्स एक-दो मील तक भाग कर अपनी जान बचा सकता है, लेकिन शौच की समस्या से पीडि़त व्यक्ति को इतना भी समय नहीं होता है। और जब ऐसा आदमी यह देखता है कि शौचालय बेहद गंदा है, तो वह आसपास ही निबटने पर मजबूर हो जाता है। साभार मेरी बिटिया डॉट कॉम