सफदर खान अर्थ-व्यवस्था को जड़ बना देने का अर्थ है, उसे मृत घोषित कर देना और उसमें गिरावट का मतलब है इस लाश में सड़ांध का पैदा होना। सब ची...
सफदर खान
अर्थ-व्यवस्था को जड़ बना देने का अर्थ है, उसे मृत घोषित कर देना और उसमें गिरावट का मतलब है इस लाश में सड़ांध का पैदा होना। सब चीजों का सड़ना, घर-घर में संकट, हवा में बारूद की गंध, गुंडों-माफिया गिरोहों के हाथ में देश के हर कोने का शासन, रंगदारी, दंगे और हर आदमी का सिर्फ और सिर्फ खून का प्यासा दिखाई देना। यही तो है तालिबानी राजनीति और अर्थनीति का सच।
थोड़ा सा भी ध्यान से देखे तो पायेंगे कि इस सच के सारे लक्षण अब दिखाई देने लगे हैं। आज का सबसे डरावना सच यह है कि क्रमशः संवेदनशील आदमी मोदी और योगी की तरह के नेताओं में हरकत मात्र से डरने लगा है। आदमी में लाश के प्रति हमेशा एक प्रकार का डर का भाव होता है, लेकिन वह उससे भी ज्यादा तब आतंकित हो जाता है, जब वह लाश में अचानक कोई हरकत देखता है।
लाश के क्रिया-कर्म के लिये तैयार हो चुके आदमी के लिये यह हरकत एक भारी खौफ की तरह की होती है और वह भूत-भूत कह कर भागने लगता है। अब क्रमशः हम उसी स्थिति की ओर जा रहे हैं। लोग मनाने लगे हैं कि ये मोदी-योगी कंपनी निश्चेष्ट लाश की भांति पड़ी रहे, तभी तक गनीमत है। इनमें हरकत के संकेत तो इनके लाश रूप से ज्यादा डरावने होंगे। नोटबंदी, मांसबंदी, गोगुंडों की बेहूदगी – इनके पास ऐसी भयावह चीजों के अलावा देने के लिये शायद कुछ नहीं है।
वे ऐसी ही और कोई विपदा लाए, इससे अच्छा है, किसी आलसी अजगर की तरह जंगल के किसी खोह में चुपचाप बैठे रहे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं, केयर ऑफ मीडिया की सहमति आवश्यक नही है)