कुमार सौवीर लखनऊ : उनका नारा है कि यहां आवाज की सुरक्षा होती है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है यहां। लेकिन हकीकत यह है कि यह भवन किसी घ...
कुमार सौवीर
लखनऊ : उनका नारा है कि यहां आवाज की सुरक्षा होती है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है यहां। लेकिन हकीकत यह है कि यह भवन किसी घटिया चंडूखाने से कम नहीं। बिना पैसा वसूले यहां कोई घुस भी नहीं सकता। लोकतंत्र, अभिव्यक्ति और आवाज की सुरक्षा तो कोसों दूर है।
ताजा खबर यह है कि इसी भवन के मैनेजरों ने दलितों के मामले को लेकर आयोजित एक संगोष्ठी को न केवल गैर-कानूनी बना कर उसकी स्वीकृति खारिज कर दी, बल्कि पुलिस ने जब यहां संगोष्ठी में शिरकत करने वालों को गिरफ्तार किया तो इन मैनेजरों ने एक आवाज तक नहीं उठायी।
जी हां, हम यूपी प्रेस-क्लब भवन के बारे में बात कर रहे हैं। इसी भवन में आईएफडब्ल्यूजे यानी पत्रकारों के एक बड़े संगठन की दूकान है, तो कई पत्रकारों की दलाली और रोजीरोटी का जरिया बन चुका है यह प्रेस-क्लब। यहीं दलालों को तो सदस्यता मिली हुई है, लेकिन किसी भी जायज पत्रकार का नाम तक दर्ज नहीं किया है यहां के मठाधीश पत्रकारों ने। मनमर्जी की दूकान बना रखा है प्रेस-क्लब और आईएफडब्ल्यूजे के नेताओं ने।
आपको याद दिला दें कि सोमवार की शाम करीब पांच लोगों पुलिस ने यूपी प्रेस-क्लब परिसर से गिरफ्तार कर लिया था। दरअसल, डायनेमिक एक्शन ग्रुप एवं बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच की ओर से हो रही थी गोष्ठी, पुलिस को आशंका थी कि यह लोग शांति भंग करेंगे, इसलिए पुलिस ने इन आठ लोगों को दबोच लिया। इतना भी होता तो कोई बात नहीं, पूर्व इजाजत के बावजूद प्रेस क्लब के चंद मैनेजरों ने इस इजाजत को खारिज कर दिया और उसके बाद पुलिस को बुला कर इन लोगों को दबोचने में मदद कर ली। लेकिन हैरत की बात है कि इस पूरे मामले में प्रेस-क्लब के मैनेजरों ने बेहद शर्मनाक चुप्पी साध रखी है।
दरअसल किसी सस्ते चंडूखाने में तब्दील यूपी प्रेस-क्लब में आम आदमी से अपनी बात कहने का भी भारी रकम उगाही जाती है। आप यहां पर प्रेस-कांफ्रेंस करना चाहते हैं, कोई गोष्ठी आयोजित करना चाहते हैं, या फिर कोई अन्य कोई समारोह , आपको इसके लिए भारी रकम अदा करनी होती है, जो इस प्रेस-क्लब पर काबिज चंद लोगों की जेब में जाती है। दलित संगोष्ठी के लिए भी इन धंधेबाजों ने बाकायदा पहले पांच हजार रूपया वसूला था। लेकिन बाद में पुलिस के दबाव में इसकी इजाजत खारिज कर दी।
पत्रकार उत्कर्ष ने इस मामले में कहा है कि:- खुद के घर शीशे के हों वो दूसरे पर पत्थर क्या फेंकेगा। आज जो शर्मनाक हरकत कभी गौरवशाली इतिहास रखने वाली संस्था यूपी प्रेस क्लब में हुई और जिस तरह की कायराना हरकत वहाँ के ओहदेदारों ने उसने लोकतंत्र की अहद उठाने वाले जम्हूरियत के चौथे खंभे के मुंह पर कालिख पोतने का काम किया है। पहले तो 5000₹ के लालच में क्लब बुक कर लिया फिर सरकार पुलिस के डंडे के डर से ऐन समय पर उसे कैंसिल कर 70 की उम्र वाले दो प्रतिष्ठित सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रेस क्लब परिसर से अपराधियों की तरह गिरफ्तार करा दिया। यूपी प्रेस क्लब के इतिहास में ऐसा तो आपातकाल में भी नहीं हुआ। थेंथरई पर आमादा यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष और प्रेस क्लब के सचिव मुस्कुराते चाय गटकते अपने ठंडे कमरों में बैठे रहे पर निंदा करने जैसा एक औपचारिक बयान तक जारी नहीं किया
साथियों हम शर्मिंदा हैं, कि प्रेस क्लब को डुबोने वाले जिंदा हैं।