जब तुम कहते हो कि भारत पर तुम्हारा बराबर का हक़ है, तो कभी भारत की तरक़्क़ी पर बहस क्यों नहीं करते? देश की आर्थिक स्थिति पर, देश की क...
जब तुम कहते हो कि भारत पर तुम्हारा बराबर का हक़ है, तो कभी भारत की तरक़्क़ी पर बहस क्यों नहीं करते?
देश की आर्थिक स्थिति पर,
देश की कॉमन समस्याओं पर,
मज़दूरों,दबे कुचलों और महिलाओं के शोषण पर,
शिक्षा के गिरते स्तर पर,
भारत की रक्षा रणनीतियों पर,
भारतीय संस्कृति के बचाव पर,
पर्यावरण और प्रदूषण पर,
गंगा,जमुना और हिमालय पर,
सड़क,बिजली और पानी पर,
घोटालों,दमन और हिंसा पर,
दलितों,अादीवासियों और पिछड़े वर्गों पर
और इन जैसे हज़ारों मुद्दों पर
याद रखें जब आप इन मुद्दों पर नहीं बोलते तो आप को पिछड़ा कह कर मेनस्ट्रीम से हटा दिया जाता है,फिर ना मीडिया आप पर फोकस करता है और ना ही सरकारें...
क्योंकि आपका खून सिर्फ़ अपने मुद्दों पर खोलता है,
जब आप देश के लिये नहीं बोलते तब फ़ासीवादी ताक़तें आपके देशप्रेम पर संदेह का माहौल बना देती हैं,आप के बारे में ये प्रोपेगंडा किया जाता है कि भारतीय मुसलमानों को सिर्फ़ तलाक़ और बाबरी मस्जिद से सरोकार है..
ये ठीक है कि दंगों और भेदभाव ने आप को कमज़ोर कर दिया है,
लेकिन आप जिस नबी के उम्मती हैं उन्होंने दुनिया को ये भी बताया है कि एक नागरिक का अपने देश के प्रति क्या ज़िम्मेदारियां हैं?
कंट्री के डेवलपमेंट के लिये उसे क्या कुछ करना चाहिये.
इस लिये अब भी समय है अपनी नीतियों को बदलने की,लोकतांत्रिक देश की परंपराओं और समस्याओं को समझने और उसे साझा करने की.
याद रखिये धर्म की जीत होती है,और धार्मिक सोच रखने वाला इंसान सबसे अच्छा होता है
पर धर्म के तक़ाज़ों को पूरा करने वाला इंसान सच्चा और आईडियल होता है....
तो आईये मिलकर शुरूआत करते हैं,
और एक ज़िम्मेदार भारतीय नागरिक बन कर सोचते हैं....
और देश के अंदर रह कर देश को खोखला करने वाले,देश की संस्कृति को धर्म का लोबादा ओढ़ा कर लोकतंत्र को फासिश्ज़म में बदलने की नापाक कोशिश करने वालों के ख़िलाफ़ सिविल सोसाईटी के लोगों के साथ कांधे से कांधा मिलाकर नयी रणनीति तै करते हैं..
शायद यहीं से बदलाव की शुरुआत हो...
जय हिंद
मेहदी हसन एैनी क़ासमी