देश के विभिन्न प्रदेशों में किसान खुदकुशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जाहिर की है। कोर्ट का कहना है कि सिर्फ मुआवजा देना ही इस परे...
देश के विभिन्न प्रदेशों में किसान खुदकुशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जाहिर की है। कोर्ट का कहना है कि सिर्फ मुआवजा देना ही इस परेशानी का हल नहीं होगा, किसानों के लिए चलाई गई योजनाओं को जमीन पर लाना होगा। इधर, मध्यप्रदेश किसान आत्महत्या के मामले में देश में चौथे नंबर पर है। जबकि जून माह का ही आंकड़ा 50 तक पहुंच गया है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार को लोन के असर को कम करने की पहल करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के खिलाफ नहीं है, लेकिन किसान आत्महत्या का मसला रातोंरात भी नहीं सुलझाया जा सकता। गुरुवार को चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस DY चंद्रचूड़ की बेंच ने सरकार से सहमति जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसानों के कल्याण की योजनाओं को कागजों से निकालकर अमल करने में लगानी चाहिए, क्योंकि किसानों की खुदकुशी के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
बीमा कराया है तो डिफॉल्टर कैसे –
कोर्ट ने किसानों के कर्ज पर कहा कि ‘यदि किसी भी किसान को लोन दिया जाता है तो पहले उसका फसल बीमा होता है। फिर किसान लोन डिफॉल्टर कैसे हो सकता है? यदि फसल बर्बाद हो गई है तो लोन चुकाने का जिम्मा बीमा कंपनियों का होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वे 6 माह बाद मामले की सुनवाई करेंगे।
MP में जून में हुई 50 खुदकुशी मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन के बीच आठ जून से अब तक किसानों की खुदकुशी की सबसे अधिक घटनाएं हुई। नीमच, मंदसौर के बाद छतरपुर, सागर, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, सीहोर आदि जिलों से ऐसी खबरें मिली। मध्यप्रदेश में जून 2017 के आंकड़े सभी को चौंकाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक जून में 50 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली। मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह दावा कर चुके हैं कि जून माह की शुरुआत से अब तक 40 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार किसानों के प्रति संवेदनहीन बन गई है।