कहावत है कि जल ही जीवन है और बिना जल इस धरती पर मनुष्य हो या पशु पक्षी हो कोई भी जिन्दा नहीं रह सकता है।जल ईश्वर या प्रकृति द्वारा प्राण...
कहावत है कि जल ही जीवन है और बिना जल इस धरती पर मनुष्य हो या पशु पक्षी हो कोई भी जिन्दा नहीं रह सकता है।जल ईश्वर या प्रकृति द्वारा प्राणियों को दी गयी एकअनमोल धरोहर है जो प्राणी जगत के कल्याण के जीवन का आधार है।मनुष्य खाना बिना तो जिन्दा रह सकता है किन्तु पानी के बिना एक पल भी जीवित नहीं रह सकता है।जल इस धरती का अमृत है जिसे पीने वाले की मौत नहीं हो सकती है।
कहा भी गया है कि-" रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून पानी गये उबरै---"।इसीलिए पानी के संरक्षण का पाठ हमें पढ़ाया गया है और आज पानी के दुरुपयोग को रोकने पर बल दिया गया है।एक समय था कि लोग तालाबों नदियों के पानी से प्यास बुझाते थे और इन्हें गंदा नही होने देते थे।लोग कुयें को स्वच्छ पवित्र बनाये रखने के लिये जूता चप्पल पहनकर पानी लेने नहीं जाते थे और जब कुयें की खुदाई होती थी तो माँगलिक धार्मिक आयोजन करने के बाद ही खुद जल ग्रहण करते थे।
जल जीवन भी है और जल विध्वंसक विनाशकारी भी है।जल जीवन प्रदान करता है तो जल ही प्रलयकारी बाढ़ लाकर जीवन को तबाह करने वाला भी है।कहा भी गया है कि-"अति का भला न बरसना अति की भली धूप अति का भला बोलना अति की भली न चूप"।इधर दुनिया में जल संकट के दौर से गुजर रही है और अपने ही देश में कई स्थान ऐसे भी हैं जहाँ बराबर पानी के संकट से लोग जूझ रहे हैं।पानी का जल स्तर जलवायु परिवर्तन की वजह से निरन्तर घटता जा रहा है जिससे पूरी दुनिया चिन्तित हैं और जल संरक्षण का अभियान चलाकर पानी को संरक्षित करने का अनुरोध किया जा रहा है।
बरसात धीरे धीरे कम होती जा रहा है जिसकी वजह से तालाब नदियों में इतना पानी ही एकत्र नहीं हो पाता है जिससे की जल स्तर को बढ़ाया जा सके।तालाब सूख गये है नदियाँ सूखने की कगार पर हैं तथा बोरिंगें फेल हो रही हैं।जिस गंगा यमुना नदियों के नाम पर वर वधू को "जबतक पानी रहे तबतक अचल अहिबात रहने" का आशीर्वाद दिया जाता था वह भी सूखने की कगार पर खड़ी हैं।इधर पानी का खर्च कई गुना बढ़ गया है और अब बाल्टी दो बाल्टी में काम नहीं चल पाता है।अब कुओं का स्थान इन्डिया मार्का हैंडपम्पो ने लिया है और बाल्टी दो बाल्टी की जगह बीसों बाल्टी पानी खर्च होने लगा है।
अब तो हैंडपम्पो में समरसेवुल लगना शुरू हो गये हैं और दस बीस बाल्टी नहीं बल्कि चालीस पचास बाल्टी पानी खर्च होने लगा है।सरकारी योजना का लाभ उठाकर लोगों ने खेत खेत बोरिंगे करवाकर नलकूप लगाये जा रहे हैं और गर्मी के महीनों में पानी वाली फसल मेंथा की खेती की जा रही है।अधिक पानी पीने वाले यूकेलिप्टस जैसे पेड़ लगाये जा रहे हैं तथा पानी बढ़ाने वाला कोई कार्य नहीं किया जा रहा है।सबसे ज्यादा पानी की बर्बादी विभिन्न कारखानों उद्योग धंधों व धार्मिक स्थलों पर हो रही है और रोजाना हजारों लाखों लीटर पानी रोजाना बर्बाद हो रहा है।
पानी की कमी का संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है और धीरे धीरे स्थिति पानी खरीदकर पीने तक पहुँच गयी है।जो पानी लोग मुफ्त में पीते थे आज उन्हें मोल लेकर पीना पड़ रहा है जो भविष्य के लिये चिंता की बात है।कहते हैं कि आने वाले समय में पानी की इतनी कमी पैदा हो सकती है कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो सकता है।ताज्जुब तो इस बात का है कि लोग जल संकट को जानते हुये भी जल संरक्षण के प्रति उदासीन बने हुये हैं और अंधाधुँध जल दोहन करके अपने ही भविष्य के लिये खतरा पैदा कर रहे हैं।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट,बाराबंकी यूपी