मुहम्मद जाहिद अमरनाथ तीर्थ यात्रियों से भरी एक बस पर कल आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करके 7 निर्दोष तीर्थयात्रियों की हत्या कर दी और...
मुहम्मद जाहिद
अमरनाथ तीर्थ यात्रियों से भरी एक बस पर कल आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करके 7 निर्दोष तीर्थयात्रियों की हत्या कर दी और बीस लोगों को घायल कर दिया।
यह दुखद है असहनीय है , निन्दनीय है , अकल्पनीय है।
अकल्पनीय इस लिए कि काश्मीर के रास्ते से गुज़रने वाली इस अमरनाथ यात्रा के इतने चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में यदि 2 आतंकवादी दनादन फायरिंग करते हुए 7 तीर्थयात्रियों की हत्या और बीस यात्रियों को घायल कर दें तो विश्व की एक मज़बूत ताकत का भ्रम हमें त्याग देना चाहिए।
निर्दोषों की हत्या वैसे ही व्यथित करती है परन्तु यदि मारे गये निर्दोष तीर्थयात्री हों तो व्यथा की पीड़ा बढ़ जाती है।
सरकार , सीधे सीधे तीर्थयात्रियों को सुरक्षा देने में विफल रही और केवल अमरनाथ यात्रा के लिए चप्पे-चप्पे पर लगाए गये 45 हजार सुरक्षा बलों की तैनाती सच कहूँ तो फेल हो गयी।
काश्मीर की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है और ना तो विपक्ष और ना देश की जनता इतनी जागरूक है ना ही उसमें सरकारों से सवाल पूछने की हिम्मत बची है कि वह सरकार पर दबाव बना सके और सरकार मुस्तैद हो।
दरअसल केन्द्र हो या जम्मू काश्मीर की सरकार , मदमस्त हाथी की तरह भारत के सभी हितों को कुचलते हुए आगे बढ़ती जा रही है और देश की जनता को गाय गोमुत्र गोबर और गोमांस तथा हिन्दू मुस्लिम में उलझा कर अपनी विफलता पर सवाल उठाने के प्रयास को समाप्त कर रही है।
दरअसल सबसे अधिक खतरनाक जिले अनन्तनाग के "मला बटेंगू" में रात 8 बजकर 20 मिनट पर हुए हमले के ज़िम्मेदार केवल आतंकवादी ही नहीं हैं बल्कि भारत के गृहमंत्री ,जम्मू काश्मीर की मुख्यमंत्री और अनन्तनाग ज़िले का प्रशासन भी उतना ही ज़िम्मेदार है , परन्तु ज़हर भर गये राजनैतिक व्यवस्था में इस घटना के लिए सरकारों से जवाब माँगा जाएगा यह असम्भव ही है।
इस आतंकवादी घटना से कुछ सवाल संदेह पैदा करते हैं क्युँकि दरअसल जो दिखता है वह दरअसल होता नहीं है और जो होता है वह सामने आता नहीं है।
अमरनाथ यात्रा के लिए एक "श्राईन बोर्ड" है जो अमरनाथ यात्रियों के लिए बकायदा एक तय 22 बिन्दु वाले मापदंड को पूरा करके प्रत्येक यात्री का पंजीकरण करता है और यात्रा को 45 हजार सुरक्षा बलों की निगरानी में पूरी कराता है , यात्रा का मिनट दर मिनट तय होता है और एक एक स्थान से गुज़रने और रुकने तथा हर दिन की यात्रा प्रारंभ से समाप्त करने का समय तय होता है। विशेषकर शाम सूर्यास्त के बाद अर्थात 7 बजे के बाद यात्रा की अनुमति बिलकुल नहीं होती , एक एक बस और वाहन का रजिस्ट्रेशन होता है और उसकी निगरानी होती है , प्रशासन द्वारा उसकी गिनती की जाती है कि यह बस या वाहन अमुक स्थान से चला और 7 बजे शाम तक गंतव्य स्थान तक पहुँचा या नहीं।
यहां किल्क करके देखें रजिस्ट्रेशन की पूरी जानकारी
इस अमरनाथ यात्रा का पंजीकरण भारत के बैंकों की तय की गयी शाखाओं के माध्यम से कराया जाता है जो 22 शर्तों को पूरा करने के बाद होता है। 29 जून 2017 से प्रारंभ इस यात्रा के लिए पंजीकरण के लिए भी इसी प्रक्रिया के अनुसार 1 मार्च 2017 से कराया गया।
जिस बस पर यह आतंकवादी हमला हुआ वह बस अमरनाथ यात्रा में 56 श्रृद्धालुओं को लेकर "बालटाल" से वापस आ रही थी वह श्राईन बोर्ड के द्वारा ना तो पंजीकृत थी और ना ही सुरक्षा बलों द्वारा तय यात्रा नियमों का पालन कर रही थी , अंधेरा होने पर भी 8:20 पर आतंकवादी हमले तक बस यात्रा कर रही थी। और मौका देखकर आतंकवादियों ने हमला कर दिया।
यह सरकार और मीडिया द्वारा दी गयी जानकारी है जो निश्चित रूप से सच को छुपा कर दी जाती है , फिर भी यह तथ्य सामने आ गये।
सवाल यही है कि अमरनाथ जैसी खतरनाक यात्रा में कोई एक बस 56 यात्रियों को लेकर बिना श्राईन बोर्ड के पंजीकरण और सुरक्षाबलों के यात्रा संबंधी दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अमरनाथ तक जाती है और फिर दर्शन कराकर वापस आती है तो यह इतनी सख्त और मिनट दर मिनट की चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में संभव कैसे है ?
इसकी जाँच होनी चाहिए क्युँकि मारे गये 7 में से 5 श्रृद्धालु गुजरात से हैं , गुजरात इस समय देश और जम्मू काश्मीर की सत्ता के शिर्ष पर है , कहीं ऐसा तो नहीं कि पंजीकरण की समय सीमा समाप्त होने के बाद विशेष दखल से यह बस बिना पंजीकरण के इस तरह की खतरनाक तीर्थ यात्रा पर जा कर वापस आ रही थी ?
दरअसल मेरा शक एक और भी है , गुजरात में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और 2002 से आजतक गुजरात विधानसभा का कोई भी चुनाव बिना लाश गिराए नहीं हुआ।
गुजरात दंगा हो या फिर इशरत जहाँ , सोहराबुद्दीन और फिर अक्षरधाम आतंकवादी हमला।
देश के महामानव को गुजरात का हर चुनाव जीतने के लिए लाशें चाहिए , जिसका प्रयोग वह चुनाव प्रचार में कर सके , इस बार 5 गुजराती लाशें उनके विरुद्ध माहौल से उनको उबारने में निश्चित रूप से मदद करेंगी। लाशों का सबसे बेहतर राजनैतिक प्रयोग उनसे बेहतर कौन कर सकता है।
कुछ सच "संदीप कुमार शर्मा" जैसे के पकड़े जाने पर ही सामने आते हैं और नहीं पकड़े जाने पर सच दफ्न हो जाता है।
साजिशें बहुत गहरी हैं।
"सभी मृतक तीर्थयात्रियों को विनम्र श्रृद्धांजलि"