मुहम्मद जाहिद मेरा अनुभव है कि मुसलमानों की शैक्षणिक और मानसिक स्तर समझने के लिए जस्टिस सच्चर आयोग की रिपोर्ट के अध्ययन की आवश्यकता नह...
मुहम्मद जाहिद
मेरा अनुभव है कि मुसलमानों की शैक्षणिक और मानसिक स्तर समझने के लिए जस्टिस सच्चर आयोग की रिपोर्ट के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है। फेसबुक पर भी उनके इस स्तर को समझा जा सकता है।
हकीक़त यह है कि फेसबुक पर ज़रा सा कटाक्ष या इशारों में की गयी पोस्ट यहाँ मौजूद मुसलमान नहीं समझता। कई बार ऐसी ही पोस्ट के कारण मैं खुद आक्रमण के केन्द्र में आ चुका हूँ । "पंचर" पोस्ट ताज़ा उदाहरण है। कल रात की मोसूल की व्यंगात्मक पोस्ट भी लोग समझ नहीं सके।
मेरा सभी को सुझाव है कि वह फेसबुक पर अपनी सारी इंद्रियाँ सक्रिय करके रहा करें। यहाँ साज़िशों का अंबार लगा हुआ है।
संघ का हजारों साइबर सेल "मुस्लिम" "ओबीसी" या "दलित" नाम से आईडी बनाकर यह खेल बहुत शातिर अंदाज़ से खेलते हैं जिनके बारे में मैं तमाम पोस्ट कर चुका हूँ।
मुस्लिम या इस्लाम के विषय की पोस्ट की आलोचना यह संघी मुस्लिम आईडी से करते हैं तो दलित या ओबीसी के हित की पोस्ट को यह उसी जातिसूचक शब्दों वाली आईडी के साथ ऐसी किसी भी पोस्ट पर आकर रायता फैलाते हैं।
यह एक सटीक मनोवैज्ञानिक तरीका है जो संघ चैनलों से लेकर सोशलमीडिया पर खेलता है। इसका प्रभाव भी सटीक पड़ता है , जैसे कि मुस्लिमों से संबंधित किसी पोस्ट का विरोध एक मुस्लिम नाम की आईडी करे तो लोगों को लगता है कि कुछ मुसलमान ही इस पोस्ट का विरोध कर रहे हैं और वह पोस्ट इसी कारण गलत लगने लगती है। जबकि आईडी फेक होती है या कोई संघी चला रहा होता है। ऐसा ही अन्य जातियों के साथ भी होता है।
आज आपको अवगत कराता हूँ कुछ असली लोगों से।
दरअसल देश के मुसलमानों की सबसे संवेदनशील नस है "संघ और भाजपा विरोध" और वह हर गैरमुस्लिम आईडी जो संघ और भाजपा के विरोध में कुछ बढ़ियाँ लिखती हैं , मुसलमान उनको उछालने लगता है। सब नहीं तो कुछ ऐसी आईडी से बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है।
फेसबुक पर मैंने देखा है कि संघ विरोध के कारण मुसलमानों में अपनी फ्रैन्ड फालोविंग बढ़ाने के बाद यह पलटते हैं और फिर खुलकर या कुटिल तरीके से इस्लाम और मुसलमानों पर आक्रमण करने लगते हैं। बिलकुल संघी खानदान की तरह।
दरअसल यह सूडो सेकुलर होते हैं जो संघ के विरोध में तो होते हैं परन्तु मुस्लिम या इस्लाम से चिढ़ भी रखते हैं। यदि किसी ने मुसलमान या इस्लाम पर लगातार पोस्ट कर दी तो यह उसे कट्टरवादी मान लेते हैं।
जैसे मैं मान लिया गया हूँ।
मेरी नज़र से ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिनमें दो तीन उदाहरण मैं दे सकता हूँ।
किसी ज़माने में चर्चित "फलाने सिंह पडरौना वाले" इस खेल के पहले उदाहरण हैं , संघ और भाजपा का कट्टर विरोध करते करते यह महोदय अचानक इस्लाम के खिलाफ पोस्ट करने लगे। ऐसे ही खुद को टंटा गुरू कहलाने के शौकीन एक हज़रत संघ विरोधी पोस्ट करते करते कब आतंकवाद को "इस्लामिक आतंकवाद" कह कर पोस्ट करने लगें और विरोध करने पर ऊल जुलूल पोस्ट करने लगें , यह चरित्र समझना होगा , ऐसे ही कल तक एक "ठाकुर" जो मुसलमानों के बड़े चहेते थे वह आजकल मुसलमानों को "कठमुल्ला" और "बुरहानवानी" का समर्थक बता कर अपनी छाती चौड़ी कर रहे हैं।
ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनमें एक भूतपूर्व आइपीएस और आईजी तथा तमाम संपादक , इस खेल में शामिल हैं।
ऐसा नहीं कि सभी ऐसे ही हों पर कुछ लोग हमदर्द भी हैं , जो वास्तव में इमानदार हैं।
दरअसल ऐसे इमानदार और सूडो सेकुलरिस्टों के बीच के अंतर को समझना होगा , इसमें बहुत महीन अंतर होता है , शब्दों के हेरफेर और बारीक प्रयोग से इस खेल को समझा जा सकता है।
दरअसल जब इनके दिमाग़ में इस्लाम विरोधी ज़हर ज़ोर मारता है तो यह उसी संघ के शब्दों और विचारों को लिख मारते हैं जिसका यह विरोध करते रहते हैं।
"इस्लामिक आतंकवाद" "कठमुल्ला" इत्यादि इत्यादि। इनसे सवाल करने पर यह आपको जवाब नहीं देंगे बल्कि उससे भी ज़हरीली पोस्ट करते हुए और कड़े शब्दों में संघ की भाषा बोलेंगे।
दरअसल यह इस्लाम और कुरान की झूठी और संघी अफवाह वाली पोस्ट करें तो ठीक परन्तु यदि कोई मुसलमान उनकी उस पोस्ट को अपने तथ्य और तर्क से गलत साबित करके इस्लाम और कुरान की सही तस्वीर सामने रखे तो वह "कट्टरपंथी और कठमुल्ला"।
तमाम लोग ऐसी ही पोस्ट पर मेरे सवाल पूछने पर या तो अनफ्रेंड कर चुके हैं या ब्लाक कर चुके हैं। ऐसे लोगों को पहचानिए।
ऐसे लोग संघ विरोध करते करते कब संघी आचरण अपना कर इस्लाम और मुसलमानों का विरोध करने लगें , आप अनुमान नहीं लगा सकते।
मुसलमानों में संघ विरोध के कारण ठीक-ठाक फालोविंग के बाद यह दूसरे खेमे में अपनी फालोविंग बढ़ाने के लिए संघी भाषा और आचरण वाली पोस्ट करने लगते हैं।
इनसे पूछ लीजिये कि कठमुल्ला क्या है यह जवाब नहीं दे पाएँगे पर दिन रात इसी टाइटिल से पोस्ट करते रहेंगे।
मेरा सुझाव है कि समझ के ही किसी को प्रमोट करिए नहीं तो कौन कब आस्तीन का साँप बन जाए , कहा नहीं जा सकता।
हालाँकि कुछ लोग इतने स्पष्ट हैं कि मैं उनपर आँख बंद करके विश्वास भी कर लेता हूँ।
सावधान रहिए और ऐसे ठाकुरों , पडरौना वालों और टंटा गुरुओं को परखिए ना कि केवल संघ और भाजपा विरोध के कारण लोहालोट हो जाइए।