खान अशु सोचने, कहने, लिखने की अभिव्यक्ति का माध्यम बन चुका ये जो व्हाट्सअप है न, कुछ तो भी है यार...! अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओ...
खान अशु
सोचने, कहने, लिखने की अभिव्यक्ति का माध्यम बन चुका ये जो व्हाट्सअप है न, कुछ तो भी है यार...! अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं पर दहशतगर्दो का हमला हुआ, तार न जाने कहाँ से कहाँ तक जोड़कर दिखाए जाने लगे... प्रधानमंत्री से लेकर देश की सबसे बड़ी सियासी पार्टी तक और एक सूबे खास में होने वाले इलेक्शन से इसका कनेक्शन बनाया जा रहा है...! लिखने-कहने की आजादी पाए लोगों को नोटबन्दी से लेकर जीएसटी तक की समीक्षाओं से फुर्सत हुई तो सलीम की समझदारी और सतीश की दोगलाइ पर पिले पड़े हैं...! हर बात में सियासत की महारत रखने वाले भी टूटीफूटी तहरीर के साथ ही सही, लेकिन पाक की नापाक करतूत को जमकर कोस रहे हैं...!
अरे कोसने से याद आया कि हर खबर में सबसे आगे रहने की दौड़ में लगे रहने वाले मीडिया ने आतन्की हमले का कुसूरवार लश्कर-ए-तैयबा को ठहराने में जरा देर नहीं की, लेकिन दबी जुबान से इस बात की स्वीकारोक्ति भी की जा रही है कि, हालांकि फिलहाल लश्कर ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, यह क्या बात हुई भइ, ये मीडिया भी है न, कुछ तो भी है यार... जल्दबाजी में कुछ तो भी कर बैठता है ...!
मप्र के कद्दावर मन्त्री डॉ नरोत्तम मिश्रा मामले की पहली सूचना जनता तक पहुँचाने की तो जैसे मीडिया के कर्णधारों और सोशल मीडिया के होनहारो में जैसे कोई होड़ लगी थी...! डॉ मिश्रा अयोग्य ठहराए गए... आयोग गए... कोर्ट गए... ग्वालियर... जबलपुर... दिल्ली! उफ्फ् खबर मुकम्मल होने का भी सब्र नहीं भैया लोगों को...! ये न्यूसेन्स क्रिएट करने वाले भी हैं न, कुछ तो भी हैं यार...!
जीत नहीं सम्मान की खातिर...!
सीधे-सीधे पराजय के गड्ढे में गिरते दिख रहे माहौल में भी प्रत्याशी मैदान में रखा गया, कारण, सम्मान और आत्म सम्मान बना रहे! गलती के दोहराव में बापू के परिवार की बलि। वजह हो सकती है, ये साबित करना कि गांधी हमारे थे, हैं और हमेशा रहेंगे! ये लुटी-पिटी कांग्रेस है न, ये भी कुछ तो भी है यार...!