आबादी इस कदर बढ़ रही है कि अब पृथ्वी छोटी लगने लगी है। जिधर देखों लोग ही लोग… बस में लोग, सड़कों पर लोग, ऑटो में, कारों में, मोटरसाइकलों...
आबादी इस कदर बढ़ रही है कि अब पृथ्वी छोटी लगने लगी है। जिधर देखों लोग ही लोग… बस में लोग, सड़कों पर लोग, ऑटो में, कारों में, मोटरसाइकलों पर, ठेले पर, होटलों में, रेस्टोरेंट्स में, घरों में… एक दूसरे को चलते, धकियाते सब जल्दबाजी में हैं... चूंकि इंसान स्वभाव से उत्सवधर्मी ही होता है, इसलिए हम बढ़ती आबादी के लिए भी एक खास दिन मना लेते हैं।
11 जुलाई यानी दुनिया विश्व जनसंख्या दिवस मना रही है। लेकिन क्या आपको पता है कि ये धरती कितनी आबादी का बोझ झेल सकती है?
दुनिया की आबादी करीब आठ अरब तक पहुंच रही है। एक हिंदुस्तानी के लिए ये एक बड़ी संख्या नहीं होगी क्योंकि हम दो अरब के करीब पहुंच रहे हैं।
हर सेकंड दुनिया में चार बच्चे जन्म लेते हैं। भारत के लिहाज से कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगा आइए। प्राइवेट अस्पताल और घरो में होने वाली डिलीवरीज को मिला लें तो हो सकता है कि ये संख्या एकाएक बढ़ जाए।
आपने कभी सोचा है कि ये दुनिया कितना बोझ उठा सकती है? 2012 में हुए एक सर्वे और 2015 की एक स्टडी के मुताबिक हमारी धरती करीब 11 अरब का बोझ वहन कर सकती है, लेकिन जिस गति से हम बढ़ रहे हैं उससे लगता है कि अगले कुछ सालों में ये आंकड़ा पा लेंगे। फिर धरती का क्या होगा, क्या तब सब कुछ खत्म हो जाएगा?
पिछले 50 वर्षों में हम दो गुने से भी ज्यादा फैल चुके हैं। 1960 के आंकड़ों के हिसाब से दुनिया की आबादी 3 अरब थी और 2011 तक आते आते हम 7 अरब क्रॉस कर चुके हैं।