अगर दाऊद हिंदुस्तान के लिए किसी सिर दर्द की तरह है तो इजरायल उस सिर दर्द की सटीक दवा है। इजरायल की जितनी तारीफ अब तक सुनी है उसके हिसाब ...
अगर दाऊद हिंदुस्तान के लिए किसी सिर दर्द की तरह है तो इजरायल उस सिर दर्द की सटीक दवा है। इजरायल की जितनी तारीफ अब तक सुनी है उसके हिसाब से तो दाऊद को निपटाना इजरायल के लिए बाएं हाथ की कानी उंगली का काम है। ...और अब तक जिस तरीके से मोदी और नेतन्याहू की दोस्ती निखर के आई है उस आधार पर कहा जा सकता है कि मोदी अगर इशारा भर कर दें तो हाफिज सईद और दाऊद को निपटाया जा सकता है।
दाऊद को लेकर इजरायल के लिए इस कॉफिडेंस के पीछे कई किस्से हैं। इजरायल ने ऐसा करके दिखाया भी है…. गैग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2 के फैजल की तरह इजरायल, बाप का… दादा का… भाई का… सबका बदला ले चुका है। इजरायल के बारे में कहा जाता है कि वो अपने दुश्मन को भूलता नहीं है, फिर चाहे दुश्मन का आकार और विचार कैसा भी हो।
साल 2010 में दुनिया की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी 'मोसाद' (इजरायल ) ने हमास को हथियार भेजने वाले महमूद अल मबूह को सबसे सुरक्षित जगह सऊदी अरब में ढूंढ कर मार डाला था। उसको इस कारनामे को करने में 20 साल लग गए थे। इजरायल की नजर में 20 साल में अल मबूह की गुस्ताखी एक प्रतिशत भी कम नहीं हुई, वो 1990 में भी मबूह को मारने की कोशिश कर रहे थे और 2010 में भी, शायद इसी जज्बे की वजह से ही वो इसे मार भी पाए थे। जब इजराइल सउदी अरब में घुसकर अपने टारगेट का शिकार कर सकता है तो जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान में इजरायल को घुसने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
घोल के पिलाई जाती है देशभक्ति!
इजरायल की जनता को देशभक्ति की भावना घोल के पिलाई जाती है। वहां के नियम के अनुसार देश के हर नागरिक को आर्मी का हिस्सा बनना होता है। वो खुल कर धार्मिक कट्टरवादिता की पैरवी करता है। ऐसे में वहां सरकारें बदल जाने पर देश के भीतर वैचारिक लड़ाई जन्म नहीं लेती। शायद इसी का परिणाम है कि उनके यहां देश का दुश्मन हमेशा देश का दुश्मन ही कहलाता है और कुछ भी हो जाने की संभावना जिंदा रहती है।
वैसे तो पीएम मोदी ऐसा कोई इशारा नहीं करेंगे लेकिन एक बार फिर से दाऊद की चर्चा शुरू हो गई तो उम्मीद है कि उसे आज हिंचकियां बहुत आ रही होंगी। वैसे आज तक दाऊद का जब भी जिक्र हुआ है तब इजरायल की बात बर्बस ही निकल पड़ती है।