दीपक गुप्ता रायपुर : प्रेमी जोड़ा एक-दूसरे से बेहद प्रेम करता था, दोनों घर से भाग गए और शादी कर ली। इस बीच दोनों के दो बच्चे भी हुए। चूं...
दीपक गुप्ता
रायपुर : प्रेमी जोड़ा एक-दूसरे से बेहद प्रेम करता था, दोनों घर से भाग गए और शादी कर ली। इस बीच दोनों के दो बच्चे भी हुए। चूंकि घर से भागने के दौरान लड़की नाबालिग थी इसलिए माता-पिता की रिपोर्ट पर पुलिस ने लड़की को भगाकर ले जाने का मामला दर्ज किया। डेढ़ साल बाद पति-पत्नी के रूप में रह रहे दोनों को सूरत अहमदाबाद से पुलिस ने पकड़ा।
अदालत में साबित हुआ कि घर से भगा ले जाने के दौरान लड़की नाबालिग थी और दोनों के बीच संबंध बने थे। भले ही बाद में दोनों पति-पत्नी बन गए थे। लड़की अनुसूचित जाति की थी। अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम के विशेष न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत ने अभियुक्त नारायण सिंह देवांगन को आजीवन कारावास सहित अन्य धाराओं में भी सजा सुनाई। मामले की पैरवी विशेष लोक अभियोजक योगेन्द्र ताम्रकार ने की।
अभियोजन के अनुसार गरियाबंद के थाना पिपरछेड़ी में अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़की अपने नाना के घर पढ़ती थी। इसके बाद चाचा के घर रहने चली गई। 12 सितंबर 2013 की आधी रात 12.30 बजे गांव में नाचा देखकर चाचा लौटा तो लड़की घर पर थी, दूसरे दिन सुबह लड़की गायब थी। अभियुक्त नारायण देवांगन पर संदेह होने पर पता किया तो वह भी घर पर नहीं था। थाने में अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई गई।
सूरत से लड़की के बरामद होने पर दोनों ने बयान दिया कि नानी के घर रहने के दौरान दोनों के बीच प्रेम संबंध बना। 11 सितंबर 2013 को लड़के ने मोबाइल से फोन कर भाग चलने के लिए कहा तो लड़की आधी रात बाद घर से निकली। दोनों साइकिल से राजिम गए और फिर ट्रेन से नागपुर चले गए।
चार-पांच माह नागपुर में रहने के बाद वे अहमदाबाद चले गए। दोनों पति-पत्नी के रूप में रहने लगे। इस बीच उनकी एक बेटी पैदा हुई। पुलिस ने 7 मई 2015 को सूरत में आरोपी के घर से लड़की को बरामद किया। 16 जून को गरियाबंद न्यायालय में मामला पेश हुआ और वहां से 30 जुलाई 2015 को सत्र न्यायालय रायपुर में स्थानांतरित किया गया।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम के विशेष न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत ने अभियुक्त को धारा 363 में दो साल सश्रम कारावास, 500 रु. जुर्माना, धारा 366 के तहत तीन साल सश्रम कारावास, एक हजार रु.जुर्माना, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत 10 साल सश्रम कारावास व एक हजार जुर्माना तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम 1989 के तहत आजीवन कारावास और एक हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई।