22, नवम्बर 17, से गुमसुदा युवक की लाश का 13, दिनों के बाद मिलना पुलिस पर अनेक सवाल उठता है। बाबू अंसारी स्योहारा बिजनौर, गुमसुदा को ...
22, नवम्बर 17, से गुमसुदा युवक की लाश का 13, दिनों के बाद मिलना पुलिस पर अनेक सवाल उठता है।
बाबू अंसारी स्योहारा बिजनौर,
गुमसुदा को ढूंढने में पुलिस दिलचसबी दिखाती तो शायद बच सकती थी युवक की जान.?
ऐसे अनेको सवालों की ग्रामीणों द्वारा स्योहारा पुलिस पर बौछार अपने आप मे गुमसुदा लोगों को ढूंढने में स्थानीय पुलिस के रोल का कड़वा सच बयां कर रही है। आमतौर पर स्थानीय पुलिस पैसों वाले मामले निपटाने में ज़ियादा व्यस्त दिखाई देती है जिनके निपटारे से सिपाही से लेकर उच्च अधिकारियों तक को एक्स्ट्रा आमदनी होती है। फ़िर ऐसे में पुलिस किसी गुमसुदा को ढूंढने में अपना वख्त क्यों ज़ाया करे। गुमसुदगी के अधिकतर मामलों में पुलिस को गुमसुदा की लाश पर ही मातम करते देखा जाता है। जहां जाकर वो मामले को जल्द से जल्द निपटाने व अपना पीछा छुड़ाने की फ़िराक में लगी मिलती है। जबकि गुमसुदा के परिजन अपने ज़िगर के टुकड़े को हमेशा के लिए खोे देने के बाद, मरने वाले को इंसाफ, तथा कातिलों को उनके किये का अहसास, दिलाने की गरज से कातिलों को सज़ा दिलाने की पुलिस से गुहार करते दिखाई देते है। थाना क्षेत्र बुढेरन निवासी 20, साल का ज़ीशान वल्द शाहिद नामक युवक 22 नवम्बर को लापता हो जाता है। जिसकी गुमसुदगी की 23, नवम्बर को स्योहारा थाने में गुमसुदगी की परिजनों द्वारा तहरीर दी जाती है। जिसकी 3 दिसम्बर की सुबह गन्ने के खेत मे लाश मिलती है। लाश को देख कर पहली नज़र में लगता है कि किसी ने धारदार हत्यार से उसकी हत्या की हो, और घटना को तीन चार दिन पहले ही अंजाम दिया गया हो, साथ ही दिखाई देता है कि धारदार हत्यार से कटी लाश की गर्दन व मुंह के कुछ भाग को किसी जानवर ने खाया हो लाश के पास ही सेविंग ब्लेट व दवाई का पत्ता तथा तावीज़ का मिलना भी नए सवालो को जन्म देता है। बरहाल हर बार की तरह पुलिस गुमसुदा की हत्या हो जाने की बाद ही परिजनों के आंशू पोछने पहुची।और लाश को कब्जे में ले पीएम के लिए जिला अस्पताल भेजने में कामयाब रहती है।