जितेन्द्र दीक्षित उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव में भी विजय अभियान जारी रहने पर भाजपा नेता गदगद हैं। दिल्ली से लेकर गुजरात तक भाजपाई...
जितेन्द्र दीक्षित
उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव में भी विजय अभियान जारी रहने पर भाजपा नेता गदगद हैं। दिल्ली से लेकर गुजरात तक भाजपाई जीत का डंका बजा रहे हैं। चुनाव परिणाम पर विपक्ष के नेता त्वरित टिप्पणी करने की भी स्थिति में नहीं हैं। एक खास बात यह हुई कि अलग-थलग पडी बसपा निकाय चुनाव के नतीजे से विपक्षी राजनीति के केंद्र में आ गई है।
जीएसटी से बाजारों में सुस्ती। भाजपा के परंपरागत समर्थक व्यापारियों में नाराजगी। योगी सरकार की कोई ठोस उल्लेखनीय उपलब्धि अभी तक सामने ना आ पाने के बाद भी निकाय चुनावों में भाजपा की जीत का परचम लहराने का निहितार्थ तलाशना जरूरी हो जाता है। भाजपा ने प्रदेश के 14 नगर निगमों, 101 नगर पालिकाओं और 4000 वार्डों में जीत का शानदार प्रदर्शन किया है। 2014 के लोकसभा चुनाव और इसी साल के विधानसभा चुनाव के बाद यह भाजपा की तीसरी उल्लेखनीय जीत है।
विपक्ष के नजरिए से देखे़ तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में तीसरे पायदान पर रही बसपा इस चुनाव में सपा को पीछे करके दूसरे नंबर पर आ गई है। विधानसभा चुनाव में मायावती के लाख समझाने के बाद भी मुसलमानों ने बसपा से दूरी रखी थी।
नतीजा यह रहा था कि खालिश मुसलमानों के वोट से सपा प्रदेश में भाजपा को पछाडने में विफल रही थी। प्रचंड बहुमत से भाजपा सरकार बनने के बाद यादव पट्टी के बाहर के मुसलमानों को इस बात का पछतावा रहा कि यदि उन्होंने सपा मोह से मुक्त होकर बसपा का समर्थन किया होता तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ एक बडी चुनौती साबित होता। इसी रणनीति पर निकाय चुनाव में मेरठ और अलीगढ़ नगर निगम में बसपा की जीत संभव हुई। नगर पालिकाओं में भी दलित-मुस्लिम गठजोड़ की बदौलत ही बसपा ने सपा को पीछे ढकेल दिया है ।
भाजपा की जीत की बात करें तो पहली बात यह कि चुनाव प्रचार को लेकर मुख्यमंत्री योगी जी व दूसरे तमाम नेता जब प्रदेश मथ रहे थे तो कुंभकर्णी नींद के आगोश में पडे विपक्षी नेता भाजपा को वाकओवर देते दिखाई दे रहे थे। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि विपक्ष के सूडो सेक्युलरिज्म की प्रतिक्रिया में हिंदू संप्रदायवाद को इस चुनाव में भी विपक्षी नेताओं ने और उभरने का मौका अपने बयानों से दिया।
निकाय चुनाव मतदान से पूर्व मुलायम का बयान आता है कि अयोध्या में बीस नहीं, अट्ठाइस कारसेवक मारे गये थे। यदि छप्पन भी मारे जाते तो उन्हें अफसोस न होता। इसी दौरान मायावती ने धर्म परिवर्तन की धमकी दी। मुलायम और माया के बयानों ने हिंदुओं को चिढाने का काम किया। तीसरी बात प्रदेश की गरीब व अति पिछडी जातियों में भाजपा की पकड बरकरार रहना भी निकाय चुनाव मे़ उसके शानदार प्रदर्शन का बडा कारण रहा।
बहरहाल भाजपा इस जीत का तत्कालिक लाभ गुजरात में हवा बनाने में लेगी। इसी जीत का हवाला देकर 2019 तक विपक्षी दलों पर पलटवार करेगी। स्वाभाविक है कि उसके कॉडर का हौसला बढा है। बसपा, सपा और कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा। राहुल की तरह उन्हें भी एक न एक दिन नरम हिंदुत्व की राह पकडनी होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अब तक बसपा से गठबंधन के नाम पर कन्नी काटने वाली सपा को समझना होगा कि केवल कांग्रेस के सहारे 2019 में उसका बेडा पार न होगा। विपक्षी गठबंधन में सीटों के बटवारे में बसपा की सौदेबाजी रंग लाएगी।