मोहम्मद जाहिद मुलायम सिंह यादव ने रक्षामंत्री रहते हुए और वैसे भी संसद में तमाम बार यह बयान दिया कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्ता...
मोहम्मद जाहिद
मुलायम सिंह यादव ने रक्षामंत्री रहते हुए और वैसे भी संसद में तमाम बार यह बयान दिया कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान नहीं "चीन" है , पाकिस्तान से कटुता समाप्त करके भारत को अपनी सारी शक्ति चीन के मुकाबले में खड़े होने के लिए लगायी जानी चाहिए।
भारत , पाकिस्तान से अब तक हुए सभी युद्ध जीत चुका है और चीन से अभी तक हुए सभी युद्ध हार चुका है , पाकिस्तान से भारत का सीमावर्ती विवाद केवल और केवल काश्मीर के हिस्से को लेकर है तो चीन से विवाद तो पूरे नार्थ-ईस्ट के राज्यों , सिक्किम , नागालैंड और अरुणांचल प्रदेश तक है।
चीन खुल्लमखुल्ला एक आतंकवादी अज़हर मसूद के साथ संयुक्त राष्ट्र तक में केवल इसलिए खड़ा होता है क्युँकि भारत में हुई आतंकवादी घटनाओं में वह शामिल है और भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी है।
इसके बावजूद चीन को भारत अपना उतना बड़ा दुश्मन नहीं मानता जितना कि पाकिस्तान को , और ना तो चीन से पाकिस्तान जैसी कटुता है ना मारधाड़।
जानते हैं क्युँ ? क्युँकि भारत की राजनीति में पाकिस्तान से नफरत वोटों की जो फसल पैदा करती है वैसी क्या कैसी भी फसल चीन के साथ पैदा नहीं होती है।
पिछले 60-70 सालों से भारत-चीन विवाद और तनाव की प्रमुख वजह रहा "तिब्बत" जिसे भारत चीन का हिस्सा नहीं मानता और वहाँ के चीन विरोधी तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को भारत में दिया राजनैतिक शरण रहा है , इसे शरण नहीं बल्कि यूँ कहें कि पूरा एक शहर "धर्मशाला" ही उनको दे दिया गया है।
इसी चिढ़ से चीन और भारत के संबन्ध कटुता वाले रहे हैं और भारत को इसकी तमाम कीमत चुकानी पड़ी है परन्तु फिर भी दलाई लामा भारत का वफादार ना होकर "चीनी खिलौना" साबित हो गया और भारत में बैठकर , भारत का सारी ज़िन्दगी खा कर भारत के विदेश और तिब्बत नीति के विरुद्ध तिब्बत को चीन का हिस्सा मानने का बयान देने लगा इसके बावजूद देश में कोई उथल-पुथल प्रतिक्रिया नहीं होती।
फारूख अब्दुल्ला , इस देश के सांसद हैं , जम्मू काश्मीर के वर्षों मुख्यमंत्री रहे हैं , उनकी बहू और दामाद हिन्दू हैं , मंदिर जाते हैं , भजन गाते हैं इसके बावजूद उनके बयान पर उनके भारतीय होने का प्रमाण भारत की ब्राम्हणवादी मीडिया पूछने लगती है , जिसकी औकात नहीं कि दलाई लामा से एक सवाल पूछ सके कि ठूस भारत का रहे हो और भाषा चीन की क्युँ बोल रहे हो।
दरअसल , इस देश का दुर्भाग्य आज की भारत की राजनीति है जहाँ सभी कुछ "धर्म" आधारित हो गया है इसीलिए भारत का सबसे बड़ा दुश्मन होते हुए भी चीन भारत की अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा कर चुका है और अपने देश का हिस्सा रहा सांस्कृतिक और भाषाई समानता वाला एक अक्षम सा कमज़ोर पाकिस्तान भारत के लिए चुनौती।
दरअसल , दुश्मन बड़ा हो तो उसके विरुद्ध लड़ने की तैय्यारी करने पर कोई भी इतनी तैय्यारी कर लेता है कि छोटे दुश्मन को हराना आसान हो जाता है। आईएएस की तैय्यारी करने वाला भले आईएएस क्वालीफाई ना कर पाए पर क्लर्क की परिक्षा तो पास कर ही जाता है। पर क्लर्क की परिक्षा की तैय्यारी करने वाला आईएएस बन जाए ऐसा असंभव ही है।
भारत को चीन-पाकिस्तान के संबन्धों में इसी आधार पर प्राथमिकता देना होगा , पर देश की राजनीति ऐसा करने देगी यह संभव नहीं।
किसी पुण्य पसून बाजपेयी की सवाल पूछने तक की हिम्मत भी नहीं क्युँकि इस देश में "हिन्दू-मुस्लिम" के बीच की घृणा ही विदेश से लेकर अर्थ और न्यूज़ से लेकर फिल्म के विषय तक पर असर रखती है।
इसी देश में संतोषी "भात भात" कहते हुए भूख से मर जाती है , मधूपुर में अस्पताल से निकाली गयी गर्भवती महिला सड़क खड़े खड़े जानवर की तरह बच्चे को जन्म दे देती है वह चर्चा नहीं बनती और अवांका ट्रम्प को ₹35 करोड़ का डिनर सुर्खियाँ पा जाता है।
देश की दिशा अव्यवस्थित है , सत्ता और संसाधन केन्द्रीयकृत हो चुके हैं , गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमिर और अमीर होता जा रहा है।
बहस इस पर ना हो इसलिए "हिन्दू-मुस्लिम-पाकिस्तान" का मंत्र जब आवश्यकता हो फूँक दिया जाता है।
देखते रहिए हिन्दू-मुस्लिम की घृणात्मक राजनीति का तमाशा और देश के अहम मुद्दों को दफन करते रहिए।
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