कहावत है कि राजनीति के खेल निराले होते हैं और कौन दाँव कहाँ पर फिट हो जाय कोई जान नहीं सकता है।इस बार परसों सम्पन्न हुये नगर निकायों के...
कहावत है कि राजनीति के खेल निराले होते हैं और कौन दाँव कहाँ पर फिट हो जाय कोई जान नहीं सकता है।इस बार परसों सम्पन्न हुये नगर निकायों के इस बार कई मायनों में महत्वपूर्ण थे क्योंकि इस बार इन चुनावों से एक साथ तीर से कई निशाने करने थे।
यहीं कारण था कि सभी दलों ने अपने सिंबल पर प्रत्याशी मैदान में उतारकर ताकत आजमाइश की थी। इस राजनैतिक जोर आजमाइश में भाजपा एक बार फिर विपक्षियों को रौंदते हुये सबसे आगे निकल गयी है। नगर निगम के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि संत शिरोमणि बाबा योगी आदित्यनाथ मोदी जी के पदचिन्हों पर चलकर अभी भी मतदाताओं में विश्वास के पात्र बने हुये हैं।
एक बार फिर नगरीय मतदाताओं ने भाजपा के मोदी योगी के प्रति अपना विश्वास व्यक्त करते हुए उनका हौसला अफजाई किया है। इस चुनाव में सपा बसपा कांग्रेस के तमाम दुर्ग ध्वस्त हो गये और हरे लाल नीले तिरंगे की जगह केसरिया फहराने लगा है। इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान सपा और कांग्रेस को हुआ है और उसका एक भी महापौर नहीं जीता है।
इस चुनाव में जहाँ सपा को अपने गढ़ में हार का सामना करना पड़ा और वहीं कांग्रेस अपने नेता की मूल संसदीय क्षेत्र की सीट से हाथ धो बैठी। कांग्रेस की अमेठी पराजय आज गुजरात में उछल कर कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन गयी है और उपमुख्यमंत्री ने नगर निकायों के चुनाव परिणाम आते ही तंज कस ही दिया कि जो अपनी अमेठी नहीं बचा पाये वह गुजरात क्या बचा पायेंगे?
नगर निकायों के चुनाव परिणामों को राजनैतिक क्षेत्रों में ताजा जनादेश एवं राजनैतिक स्थिति के रूप मे माना जा रहा है और इसका प्रभाव गुजरात में होने वाले चुनावों पर भी पड़ सकता है क्योंकि वहाँ का लाखों मतदाता प्रदेश से जुड़ा है और जो छबि यहाँ पर इस चुनाव में उभरकर सामने आई है उसका असर वहाँ पर पड़ना स्वाभाविक है।
नगर निकायों के चुनाव परिणाम से राजनैतिक क्षेत्रों में उत्साहवर्धन एवं हतोत्साह दोनों हुये है। नगर निकायों के चुनाव परिणामों से भाजपा का हिमो ग्लोबिन जहाँ बढ़ गया है वही विपक्षियों का घट गया है।नगर निकाय चुनाव परिणामों ने इधर उछल कूद रहे विपक्षियों की बोलते बंद कर दी है।
कुशल यह है कि लोकसभा विधान सभा चुनाव की तरह विपक्षियों का पूरी तरह सफाया नही हुआ है और नगरपालिका और नगर पंचायतों में उनका वजूद मिटने से बच गया है।नगर निकायों के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर देश को राजनीतिक संदेश देकर राजनेताओं की नींद हराम कर दी है।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी