क्या कोई ‘प्रधान सेवक’ को बता सकता है कि उसका नया भारत किसी नफरती सर्कस से कम नही है?
Wasim Akram Tyagi
भारत में क्या चल रहा है? बीते छ वर्षों से सर्कस के अलावा भी कुछ और चला हो तो बताईए? बनारस हिंदू विश्विद्यालय के छात्र इसलिये प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि संस्कृत विभाग में फिरोज़ ख़ान को असिस्टेंट प्रोफेसेर नियुक्त कर लिया गया। छात्रों का मानना है कि संस्कृत ‘हिंदुओं’ की भाषा है उसे मुस्लिम कैसे पढ़ा सकता है?
इसी से नाराज़ छात्र विश्विद्यालय परिसर में धरने पर बैठे हैं, ट्विटर पर ट्रेंड चलाए जा रहे हैं, इन छात्रों का सरगना नफरती गैंग भी फिरोज़ के बारे में अफवाह फैलाते हुए कह रहा है कि बहुत जल्द ‘अल्लाहु अकबर’ पढ़वाया जाएगा। ऐसा हाल देश के विश्विद्याल का है। आप अंदाज़ा लगा लीजिए जो छात्र फिरोज़ के विरोध में धरने पर बैठे हैं वे भारत को कितनी बुलंदियों पर ले जाऐंगे?
इन्हीं विश्विद्यालय में अंग्रेज़ी को पढ़ाने वाला एक भी अंग्रेज़ नही है, बल्कि इसी देश में पैदा हुए, पले, पढ़े, बढ़े इसी देश के नागरिक हैं। लेकिन मंजाल भला कि किसी एक छात्र ने भी शिकायत की हो कि अंग्रेज़ी ईसाई का भाषा है इसलिये अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिये इंग्लैंड का ईसाई अंग्रेज़ ही चाहिए? विश्विद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले प्रोफेसर ने न तो अंग्रेज़ी से प्रभावित होकर धर्म बदला, और न ही छात्रों का धर्म परिवर्तन कराया। लेकिन यह अब फिरोज़ संस्कृत नहीं पढ़ा सकते, क्योंकि प्रेम चतुर्वेदी नहीं हैं।
साल भर पहले एक मुस्लिम बच्ची ने भगवत गीता प्रतियोगिता जीती थी तो वह बच्ची ‘हीरो’ बन गई, लेकिन अब कोई फिरोज़ ख़ान संस्कृत नहीं पढ़ा सकता क्योंकि संस्कृत हिंदू धर्म ग्रंथ की भाषा है। बुद्धी हर लेना और किसे कहते हैं? इसी को तो कहते हैं, किसी सभ्य समाज का समाजिक और नैतिक पतन किसे कहते हैं?
इसी को तो कहते हैं। सांप्रदायिक सद्धभाव वाले देश का नफरती सर्कस बन जाना किसे कहते हैं? इसी को तो कहते हैं? व्यवस्था चलाने वाले ‘प्रधान सेवकों’ का मदारी बन जाना और गले में भगवा गमछा डालकर विश्विद्यालय के छात्र बने घूम रहे युवाओं का जमूरा बन जाना किसे कहते हैं ? इसी को तो कहते हैं।
विश्विद्यालय! जिसका निर्माण ही इसलिये होता है ताकि शिक्षित समाज तैयार हो सके, इंसान को इंसान बनाया जा सके अब उन विश्विद्यालयों के छात्र नफरत का पाठ पढ़ रहे हैं। नफरत बांट रहे हैं, नफरत रट रहे हैं, उन्हें विश्विद्यालय के पाठ्यक्रम से कोई सरोकार नहीं है, हां ह्वाटसप यूनीवर्सिटी की क्लास में क्या ‘वायरल’ हो रहा है इसमें बहुत दिलचस्पी है।
बीएयू में फिरोज़ ख़ान का विरोध करने वाले छात्र सिर्फ फिरोज़ का विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि वे उस भाषा के साथ दुश्मनी निभा रहे हैं जिस भाषा के प्रोफेसर फिरोज़ हैं। अगर संस्कृत को सिर्फ विशेष वर्ग की ही बपौती बनाना है तो फिर एक क़ानून यह भी बने कि संस्कृत सिर्फ एक विशेष वर्ग की भाषा है, उसे पढ़ने पढाने का अधिकार किसी और को नहीं होना चाहिए।
जब ये ख़बरें विदेशी मीडिया में प्रकाशित होती होंगी तो देश की कैसी छवी कैसी बनती होगी इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है। क्या कोई ‘नया भारत’ बनाने चले ‘प्रधान सेवक’ को बता सकता है कि उसका नया भारत किसी नफरती सर्कस से कम नही है।