ये ललिता डच हैं, इन्हें कई भाषाओं का ज्ञान है और बनारस आकर संस्कृत भी सीख ली
रवीश कुमार
ललिता डच हैं। स्पेनिश, फ़्रेंच, जर्मन जानती हैं। अंग्रेज़ी भी। एक दिन मन किया तो उड़ कर बनारस आ गईं कि संस्कृत सीखेंगे। ट्यूशन रखकर संस्कृत सीखने लगीं। फिर वहाँ के संगीत समारोहों में जाने लगीं तो ठुमरी ने खींच लिया। तो ठुमरी में रिसर्च शुरू कर दिया। पीएचडी की। उनकी किताब है। ख़्याल पर भी लिखा है। स्टैनफ़ोर्ड में इतनी सीनियर प्रोफ़ेसर ने हिन्दी बोलते हुए कार का दरवाज़ा खोला तो लगा कि किसी नई कहानी से टकराने वाला हूँ। उनके कमरे में गया तो हिन्दी के कई शब्दकोश देखे। उर्दू भी चटक बोल रही थीं। आप इतनी भाषाएँ ? हाँ मुझे भाषाओं से प्यार है।
मुझे स्टैनफ़ोर्ड दिखा रही थीं मगर ख़ुद बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी को मिस कर रही थीं। बिल्कुल प्यार में दीवानी की तरह। यहाँ पर चाय की दुकान होती, यहाँ जलेबी की तो कितना अच्छा होता। एक जगह आकर बोलीं कि ये बिल्कुल मुझे लंका लगता है। जबकि बीएचयू में पढ़ी नहीं हैं। बनारस में थीं तो बीएचयू का कैंपस बुला लेता था।
ललिता धर्म, देश और भाषा के पार ज्ञान की यात्री हैं। सिर्फ़ यात्री। अब वो किसी दिन बीएचयू संस्कृत या ठुमरी पढ़ाने आ जाएँ तो बहुतों का हलक सूख जाएगा। बनारस में होकर आप बनारस नहीं हो जाते हैं। आपको बनारस की यात्रा करनी पड़ती है।
कोई प्यार में हो तो उसकी बातों को महसूस करना चाहिए। स्कालरशिप कितना सहज बना देता है। मैं बस सुन रहा था। मैं पाँच हफ़्ते पहले आई हूँ। काफ़ी ख़ाली जगह है। खूब साइकिल चलाती हूँ।
ज्ञान की यात्रा अनंत है और यह प्यार में डूब कर ही की जा सकती है।
इसलिए मुझे अपने काम से प्यार है। हर दिन एक नई कहानी आकर टकरा जाती है।
किताब का नाम : Hindi poetry in Musical Genre : Thumri Lyrics - Lalita du Perron