महाराष्ट्र में नई सरकार: ये नेताओं की वो कतार है जिनपे इनके सहयोगी कभी भरोसा कर सकते हैं?
नदीम अख्तर
शरद पवार, #मुलायम सिंह यादव, #मायावती...ये नेताओं की वो कतार है जिनपे इनके सहयोगी कभी भरोसा कर सकते हैं? कभी नहीं। मराठा शरद पवार ने एक बार फिर धोखा दे दिया है। अबकी बार मराठा उद्धव ठाकरे को। विदेशी मूल पे #सोनिया #गांधी का -विरोध- तो पहले ही था, पर सरकार में मलाई #upa के दौर में मिल के खाई थी। खैर।
#महाराष्ट्र में रातोंरात खेल हो गया। देवेंद्र #फडणवीस आनन फानन में सीएम बना दिए गए और शरद पवार की नाक के बाल अजीत #पवार डिप्टी सीएम। मीडिया में खबर चलवाई जा रही है कि उनकी पार्टी #NCP से विधायक टूटकर #अजीत के साथ बीजेपी से जा मिले। पर क्या वाकई?? आप देखिए कि शरद पवार कितने घाघ हैं। इतने दिनों से ड्रामा चलाते रहे कि कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। मतलब हर कोई इत्मीनान रहे कि #बीजेपी ने सरेंडर कर दिया है। अब कोई टूटफूट नहीं होगी। इधर अंदर ही अंदर बीजेपी से मोलभाव होता रहा और जब डील पक्की हो गयी तब सुबह सुबह अजीत पवार को डिप्टी सीएम बनवा दिया।
मतलब #एनसीपी की कथित #धर्मनिरपेक्षता यानी #बीजेपी विरोध भी बची रहे और सत्ता की मलाई भी खा लें। सो ncp के तथाकथित बागी विधायक अब फड़नवीस सरकार में मंत्री बनेंगे। अजित पवार पांच साल तक सत्ता सुख भोगेंगे और फिर चुनाव आएंगे तब फिर शरद पवार के पास घर वापसी कर लेंगे। सिम्पल। जनता से माफी मांग लेंगे कि गलती हो गयी, बीजेपी के साथ चले गए। अबकी बार हमें ज्यादा सीट दो, #महाराष्ट्र की भलाई के लिए। तभी हम #मुख्यमंत्री बनेंगे वगैरह वगैरह।
लेकिन इस पूरी नौटंकी में सबसे ज्यादा नुकसान शिव सेना का हो गया। ना घर के रहे, ना घाट के। कांग्रेस तो बस दर्शक की भूमिका में थी पर शरद पवार ने उद्धव को तगड़ा चूना लगाया। ये शिव सेना के अस्तित्व की लड़ाई है। लेकिन ज़रा रुकिए। बाल ठाकरे की विरासत यूँ ही खत्म नहीं होगी। #राज #ठाकरे अभी ज़िंदा हैं, जिनकी पार्टी इस बार के चुनाव में सिफर रही। सो संकट के इस दौर में हो सकता है, भाई भाई एक हो जाएं। देर-सबेर ही सही क्योंकि #उद्धव वैसे आक्रामक नहीं है, जिसके लिए शिव सेना जानी जाती है।
अगर राज ठाकरे वापिस आ गए तो जान लीजिए कि महाराष्ट्र में शिव सेना बीजेपी की नाक में दम कर देगी। वरना अभी जो हालात हैं, उसमें उद्धव ठाकरे एक घायल बूढ़े #शेर के अलावा कुछ नहीं। वे गुर्रा सकते हैं, पर शिकार नहीं कर सकते। आदित्य ठाकरे अभी नए हैं और अनुभवहीन, सो उनको भी अभी जमने में वक़्त लगेगा। लेकिन तब तलक पार्टी बची रहेगी तब ना!! अगले चुनाव में क्या होगा, पता नहीं पर शिव सेना की पीठ पे शरद पवार ने ख़ंजर नहीं, भाला घोंपा है। वो भी हवा में घुमा के। ये छोटी बात नहीं।
बूढ़े शरद पवार ने उम्र के इस पड़ाव पे अपनी राजनीतिक साख फिर खोई। जनता सब समझती है। शिव सेना को जनता की सहानुभूति मिल सकती है लेकिन उसके लिए शिव सेना को बाल ठाकरे काल में वापिस आना होगा। वैसे ही आक्रामक होना होगा। ये दुनिया बल से डरती है। #छल तो क्षणिक होता है पर बल दीर्घकालीन। #बल के डर से छल भी पतली गली से कट लेता है।