प्रधान जी! इस गांव की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है सरकार या आप?
गणेश मौर्य
अंबेडकरनगर: प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले का एक ऐसा गांव है जहां मूलभूत सुविधाएं न होने के कारण बेटियों और बेटो का ब्याह होना मुश्किल है।आजादी के बाद विकास की दौड़ लगाते भारत ने बीते 6 दशकों में नई बुलंदियों को छुआ है।
शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और बुनियादी सुविधाएं दूर-दराज के इलाकों में पहुंची हैं। लेकिन डिजिटल होते और चमचमाते इंडिया में ऐसे गांव भी हैं जहां आज भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंची हैं। ये कहानी एक ऐसे ही गांव की है। यूपी के अंबेडकर नगर जिले का कटेहरी विधानसभा क्षेत्र का गांव चांदपुर जलालपुर
दरअसल, इस गांव में सरकारी सिस्टम कैसे फेल नजर आता है इसकी बानगी भर ये है कि गांव मे लेखपाल भी कभी नही आता। बाकी प्रधान जी महीने में तीन-चार बार आ ही जाते हैं। चुनावी बयार के बीच सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि आखिर इस लोकतंत्र में मतदाता कब तक सियासी हुक्मरानों की बेड़ियों में जकड़े रहेंगें और उनके झूठे आश्वासन पर हर 5 वर्ष शांति से बिता देंगे?
चुनाव से पहले प्रधान जी ने बड़े ढेर सारे वादे किए थे मगर सारे वादे धरे के धरे रह गए. इस गांव की बदहाली का जिम्मेदार कौन? भ्रष्ट सिस्टम या अंधी गूंगी बहरी सरकार।
गरीबी हटाओ और अंत्योदय की बात करने वाली सरकारों के दावे अंबेडकरनगर जिले के इस आखिरी गांव में दम तोड़ते नजर आते हैं। जिला प्रशासन का सबसे छोटा कर्मचारी लेखपाल तक कभी इस गांव नहीं जाता। जनप्रतिनिधियों की गाड़ियां ज्यादा बड़ी हैं शायद इसलिए इस गांव में घुसने की वो हिमाकत नही करते।
शर्म आनी चाहिए इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को जिसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से सहयोग देने वाले आजादी के बाद से आज तक इस गांव की मौजूदा चौथी पीढ़ी तक को जो मूलभूत सुविधाएं जनता को नहीं भेज पाए।
गांव के दलितों ने दबे मुंह गांव के प्रधान से लेकर जिम्मेदारों की पोल खोल दी, बिजली की सुविधा ना होने के कारण बच्चे पढ़ लिख नहीं पाते बारिश के महीने में कीचड़ भरी राहों से गुजरना पड़ता है झोपड़ी टपकती है, शौचालय रामभरोसे बनाए गए एक 80, वर्षीय बुजुर्ग महिला ने बताया कि बेटा बिजली क्या होती है वह तो मैंने आज तक नहीं देखी मैंने सोचा मोदी और योगी जी के राज में कम से कम बिजली जीते जिंदगी देख लूंगी।
मगर आज तक बिजली नहीं आई,बच्चे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन शायद इन्हें अपने पूर्वजों की तरह ऐसे ही अशिक्षित रहकर जीवन बिताना पड़ेगा। हम लोग की सुनने वाला कोई नहीं चुनाव के समय जनप्रतिनिधियों द्वारा हमदर्दी या तो जताई जाती हैं मगर वर्षों के इस घाव पर मरहम नहीं लगाया गया।