अख़बारों में छपा है, टीवी पर आया है, लेकिन समाज को इसके टैलेंट की कद्र ही नही है?
Wasim Akram Tyagi
कुछ रोज़ पहले एक Md Zabir Ansari था, कराटे प्लेयर है, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेला है पदक जीते हैं। लेकिन आर्थिक बदहाली उसके सपने, उसके टैलेंट की सबसे बड़ी रुकावट है। अब सादिक़ है, सादिक़ मैराथन धावक है, अच्छा दौड़ता है। देश के लिये पदक जीतने की क्षमता रखता है। लेकिन इसके साथ भी वही समस्या है, वह भी आर्थिक बदहाली के कारण अपने टैलेंट का गला घोंटने के लिये मजबूर है।
मेरे पास सुबह एक फोन आया था, फोन करने वाला लखनऊ में पढ़ाई कर रहा है, लेकिन घर की आर्थिक हालत खराब होने के कारण अब कॉलेज की फीस भरने में सक्षम नही है। ये चंद नाम नहीं हैं बल्कि ऐसे कितने ही प्रतिभाशाली नौजवान हैं जो संसाधन न मिल पाने की वजह से अपने टैलेंट को आत्महत्या करा देते हैं।
नेपोलियन ने कहा था कि ‘अवसर के बिना अक्सर काबिलियत कुछ भी नहीं है।’ ऐसा न जाने कितने नौजवानों के साथ होता है। इसका ज़िम्मेदार सिर्फ इन प्रतिभाशाली नौजवानों की ग़रीबी नहीं बल्कि वह समाज भी है जिसमें वह रहते हैं, जीते हैं, बढ़ते हैं। आप और हम साल भर में अक्सर कितनी शादियों में शिरकत करते हैं जिसका खर्च करोड़ों में होता है।
ऐसी शादियों से समाज का कुछ फायदा हो तो बताईये? जिसके पास संसाधन हैं वह उसे गैरजरूरी जगह लगा रहे हैं, और जिनके पास संसाधन नहीं वे अपना टैलेंट लिये घूम रहे है लेकिन समाज के धनाढ्य को इसकी परवाह ही नहीं। ये धनाढ्य फिजूलखर्ची में तो करोड़ों खर्च कर लेते हैं लेकिन किसी प्रतिभाशाली नौजवान की फीस के पैसे उनकी ज़ेब से नहीं निकल पाते।
ऊपर जिस सादिक़ का ज़िक्र किया गया है, वह अमरोहा के फतेहपुर माफी का रहने वाला है। क्या इसके गांव में, पड़ोस में, रिश्तेदारी में, जनपद में कोई भी ऐसा धनाढ्य नहीं है जो इसकी प्रतिभा को पहचान कर इसे सहायता राशी दे सके? ऐसा ही मामला जाबिर अंसारी का है, वह अनगिनत बार अख़बारों में छपा है, टीवी पर आया है, लेकिन समाज को उसके टैलेंट की कद्र ही नही है।
इस तरह कैसे समाज का निर्माण होगा? धार्मिक आयोजनों के नाम पर बिरयानी की देग़ें बांटने वाला समाज अपने समाज के प्रतिभाशाली नौजवानों की ज़िम्मेदारी कब उठाएगा? क्या उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ मदरसों के बच्चों को बिरयानी की दावत देना, और इज़्तिमा, जुलूस में ही बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की ही है? नहीं... ज़िम्मेदारी इससे बहुत बड़ी है। जिसे न तो धार्मिक नेता, राजनेता, निभा रहा है और न समाज, ऐसे में ग़रीब बच्चों की प्रतिभा के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता।