अगर हर फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करना है तो इस देश में संसद और विधान सभाओं को भंग कर दीजिए
नदीम अख्तर
महाराष्ट्र से लेकर मंदिर तक का फैसला अगर सुप्रीम कोर्ट को ही करना है तो इस देश में संसद और विधान सभाओं को भंग कर दीजिए। वोट देकर सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज और चीफ जस्टिस चुनिए। टूट-फूट और दलबदल का भी खतरा नहीं रहेगा। और जैसा कहते हैं कि एक विधान, एक संविधान और एक नान-धान, सब एकसाथ लागू हो जाएगा।
देश को इस पे गंभीरता से विचार करना चाहिए। नेता इस लायक रह नहीं गए कि देश चला सकें। सब कुछ सुप्रीम कोर्ट ही तय कर रहा है। तो संविधान से विधायिका को हटाइए। सिर्फ न्यापालिका और कार्यपालिका। और राज्यों को हाई कोर्ट चलाएगा।
देश का पैसा भी बचेगा और लोकतंत्र भी कायम रहेगा। जनता ही जज को चुनेगी, जो देश चलाएगा। अभी भी तो यही हो रहा है। जज के कहने पे ही संसद ट्रिपल तलाक का कानून बनाती है, मोबाइल सेवा देने वाली कम्पनियां सरकार को पैसा देने को तैयार होती हैं, कर्नाटक में स्पीकर और राज्यपाल को दरकिनार कर कोर्ट ही ये फैसला लेता है कि फ्लोर टेस्ट कैसे होगा और कब होगा! आज महाराष्ट्र में सरकार गठन पे सुप्रीम कोर्ट फैसला लेने जा ही रही है। तो सोचना क्या? कितने प्रमाण दूं??
सो जब सब कुछ कोर्ट को ही करना है तो इस देश को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल की ज़रूरत क्या है? समय आ गया है कि हम अपने संविधान में बदलाव करें और विधायिका नाम की संस्था को समाप्त करके न्यायपालिका नामक संस्था में ही इसे पुनर्स्थापित करें। जब जज देश चलाएगा तब राष्ट्र में अन्याय कैसे होगा? क्यों?? जजों को अब आधिकारिक रूप से देश चलाने देने का वक़्त आ गया है। शंखनाद कीजिए।