अगर महाराष्ट्र झमेले से फुर्सत मिल गयी हो तो अपनी पृथ्वी के बारे में भी सोचिए
नदीम अख्तर
अगर महाराष्ट्र से फुर्सत मिल गयी हो तो अपनी पृथ्वी, अपने सूरज और अंत में अपने ब्रह्मांड के अंत की कहानी सोचकर देखिए। जब पूरा ब्रह्मांड ही खत्म हो जाएगा, तब क्या होगा? तब क्या बिग बैंग के ठीक उलट बिग क्रंच होगा?? और फिर हमारे ब्रह्मांड के बाहर क्या है? क्या कोई और सुपर ब्रह्मांड है, जिसका चक्कर हमारा ब्रह्मांड और इस ब्रह्मांड की सारी गलक्सीज़ लगा रही हैं??
फिर ईश्वर क्या है? क्यों उसने हमें बनाकर तीन आयामों (three dimensions) में कैद कर दिया है? क्यों हम इससे निकल नहीं पाते? तो और कितने आयाम हैं, जिसे देखना या समझना मानव बुद्धि के बूते के बाहर है? क्या डार्क मैटर किसी और आयाम में है, जिसे हम देख नहीं पा रहे? क्या वो वाक़ई इस यूनिवर्स यानी ब्रह्मांड की सारी गलक्सीज़ को जोड़े रखने में गोंद का काम करता है?
इसे ऐसे समझिए कि रेडियो वेव्स आपके चारों तरफ है पर आप इसे देख नहीं पा रहे पर जब रेडियो ऑन करते हैं तो एक खास फ्रीक्वेंसी पे रेसोनेंस यानी उत्तेजना यानी गूंज पैदा होती है जो रेडियो स्पीकर के सहारे हम सुनते हैं। क्या ये संभव है कि हमारा सम्पूर्ण ब्रह्मांड ( गलक्सीज़ नहीं) किसी सुपर massive strucutre यानी अति विशालकाय ढांचे के सामने रेत के एक कण से भी कम की औकात रखता हो और ऐसे-ऐसे रेत के खरबों कण उस ढांचे को बना रहे हों??
तो फिर वहां कितने आयामों में बात बनती होगी? क्या अग्नि, जल, मिट्टी और वायु से अलग भी कोई चीज़ है जो दूसरे ब्रह्मांड में हों और हमारे ब्रह्मांड की ये चीजें वहां के लिए प्राचीनतम ऊर्जा स्रोत मानी जाएं? फिर वे चीज़ें क्या होंगी और किस रूप में होंगी? हम तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते!! और इतने सूक्ष्म ब्रह्मांडों से मिलकर जो super massive structure (SMS) बनेगा, क्या वही आखिरी सीढ़ी है? क्या कोई ऐसा भी स्ट्रक्चर है, जिसके सामने ये SMS भी किसी परमाणु सदृश संरचना की औकात रखता हो?
फिर ये अंतहीन सिलसिला कहाँ जाकर रुकेगा?? तो फिर हमारी कल्पना से परे इन massive massive संरचनाओं को कंट्रोल करने वाला ईश्वर-खुदा का आकार क्या होगा? क्या उनके सामने ये सब बौनी होंगी? या फिर वह अपनी मर्ज़ी से इनके सामने खुद का आकार-प्रकार कंट्रोल करता होगा? या फिर कुछ और व्यवस्था है, जिसका हमें भान तक नहीं और हम बस ईश्वर कहकर उसका तसव्वुर कर संतोष कर लेते हैं??
फिर ये रूह और जन्नत दोजख तो बस पृथ्वी वासियों के लिए है। दूसरे खरबों ग्रहों में जीवन का जो स्वरूप होगा, उनका भगवान कैसा होगा और उनके लिए रूह, स्वर्ग नरक, जीवन और मृत्यु के क्या मायने होंगे? या ये सब चीजें उनके शब्दकोश में होंगी ही नहीं। वह जीवन वैसा होगा, जिसका हम तसव्वुर भी नहीं कर सकते! ये तो सिर्फ इस ब्रह्मांड की बात हुई। फिर अगर इस जैसे अरबों ब्रह्मांड और अलग आयामों के ब्रह्मांड में जाएं तो वहां जीवन का मतलब क्या होगा?
कोई जीता जागता प्राणी या कुछ और? ये भी हम नहीं जानते। ठीक वैसे ही, जैसे आपके पब्जी कंप्यूटर गेम का फाइटर ये नहीं जानता कि उसके बाहर एक।पृथ्वी और पूरा ब्रह्मांड है। वह बस वही जानता है, जितना इंसान रूपी भगवान ने उस गेम को बनाने में सॉफ्टवेयर कोडिंग करके कमांड्स दी हैं। सब कुछ गज़ब है। सोचता हीं तो दिमाग हिल जाता है। उसके आगे नहीं सूझता कि और क्या-क्या हो सकता है। यहां पे आकर मानव मस्तिष्क की सीमा मुझे पता चलती है।
ठीक पब्जी गेम के फाइटर की तरह, जो उतना ही जान पाता है, जितना दिमाग उसे दिया गया है। हम तो अपने ब्रह्मांड और सुपर ब्रह्मांड तक का तसव्वुर नहीं कर पा रहे, उसके बारे में कण मात्र भी नहीं जानते तो इन सब को रचने वाले ईश्वर/खुदा के बारे में हम क्या जानेंगे??!! फिर भी ईश्वर और धर्म के नाम पे हम नश्वर इंसान लड़ते हैं जो महज़ कुछ साल जीता है। अगर सच का अंश भी जान जाएंगे तो हम विनम्र और रोने वाले बन जाएंगे क्योंकि हमें सिर्फ तीन आयामों में जकड़कर ऊपरवाले ने रख दिया है। हमें ना उसके आगे पता है, ना पीछे। फिर भी इंसान घमण्ड से सराबोर है। क्या विडम्बना है??!!
यहां मैंने जो कुछ भी लिखा है, उसमें कुछ विज्ञान से साबित है और बाकी मेरे दिमाग में उपजा कौतूहल और कयास। जैसे SMS नाम की कोई चीज़ विज्ञान में पता नहीं चली है पर मुझे लगता है कि वो चीज़ है और सुपर डुपर ब्रह्मांड की वह शुरुआत भर है। ऐसे ना जाने कितने विचार, कल्पनाएं और कयास मेरे दिमाग में हैं। अगर आइंस्टीन ज़िंदा होते तो उनको लिखकर भेजता कि इस लाइन पे भी सोचिए। मेरा मानना है कि हम सब का दिमाग उस सुपर massive structure से जुड़ा है और सबके दिमाग में वहां से बेसिक सिग्नल आते हैं। अपनी रचना और निर्माण के बारे में। ठीक वैसे ही, जैसे एक satellite से लाखों-करोड़ों घरों में सिग्नल जाते हैं और हम डीटीएच टीभी देखते हैं। आगे अभी बहुत कुछ कहना है पर वैसे भी काफी लंबा लिख गया हूँ। सो बाकी फिर कभी।