यही संकट भारत में आता है तो अख़बार और चैनल के मालिक राज्य सभा के लिए चुने जाते हैं?
रवीश कुमार
पत्रकारिता की दुनिया में यह प्रसंग लंबे समय तक चर्चा में रहेगा। ब्लूमबर्ग दुनिया के बड़े समाचार संगठनों में से एक है जहां 2700 संवाददाता काम करते हैं। इसके संवाददाता दुनिया भर में हैं। इसके मालिक माइक ब्लूमबर्ग ने अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवारी की घोषणा की है। अपने प्रचार के लिए उन्होंने टीवी में 30 मिलियन अमरीकी डॉलर का स्पेस ख़रीदा है। माइक ब्लूमबर्ग पहले न्यूयार्क के मेयर रह चुके हैं।
अब ज़ाहिर है कि वे डेमोक्रेट पार्टी की तरफ़ से उम्मीदवार होना चाहते हैं तो उनका मुक़ाबला इस पार्टी के दूसरे दावेदारों से होगा। अमरीकी चुनाव में उम्मीदवार का सारा खतिहान निकाला जाता है। निजी जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन का हिसाब होता है। तो ब्लूमबर्ग ने फ़ैसला किया है कि उसके रिपोर्टर अपने मालिक की खोजी रिपोर्टिंग नहीं करेंगे।
न ही वे डेमोक्रेट के दूसरे उम्मीदवार की खोजी पत्रकारिता करेंगे। लेकिन वे रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रम्प की खोजी पत्रकारिता करेंगे। यही नहीं ब्लूमबर्ग पर संपादकीय नहीं लिखा जाएगा। केवल बाइलाइन वाली संपादकीय छपेगी। जो अनाम बाइलाइन लिखने वाली टीम होती है वह ब्लूमबर्ग के अभियान की टीम का हिस्सा होगी और उनके लिए काम करेगी।
ब्लूमबर्ग कैसे अपने पाठकों को सूचना दे पाएगा? अमरीकी राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर ब्लूमबर्ग पर आरोप लगेंगे तो क्या उसकी तहकीकात नहीं करेगा? उसके रिपोर्टर ट्रंप की तहकीकात करेंगे लेकिन ब्लूमबर्ग का नहीं करेंगे ? लेकिन उसके संपादक ब्लूमबर्ग के लिए भाषण लिखेंगे? यही नहीं फिर क्यों न माना जाएगा कि ब्लूमबर्ग ट्रंप के बारे में एकतरफ़ा या अपने मालिक के पक्ष में चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है ?
यही संकट भारत में आता है? अख़बार और चैनल के मालिक राज्य सभा के लिए चुने जाते हैं। कुछ तो राजनीतिक दल से और कुछ उनके अपरोक्ष समर्थन से। इसमे पत्रकारिता के पेशे की नैतिकता को उलझा दिया है। अगर जनता के बीच अपनी साख और प्रसार का इस्तमाल मालिक और संपादक अपने राजनीतिक हित में करेंगे तो फिर मीडिया क्या ही मीडिया रह जाएगा।