कहीं कोई चाणक्य नहीं है और ना कोई चन्द्रगुप्त मौर्य, बस ये देखिएगा कि अगर अजित पवार...
नदीम अख्तर
महाराष्ट्र: कहीं कोई चाणक्य नहीं है और ना कोई चन्द्रगुप्त मौर्य। बस ये देखिएगा कि अगर अजीत पवार बाइज़्ज़त एनसीपी में आ गए तो ये शरद पवार की मिलीभगत से #gameplan था, जो रंग नहीं लाया। क्या मामले को नाज़ुक होता देख #NCP (कहिए अजीत पवार के साथ गए विधायक) बीजेपी को ज्यादा ब्लैकमेल करने लगी थी! उसे ज्यादा मलाई चाहिए था, जिसके लिए बीजेपी झुकने को तैयार नहीं हो रही थी? अभी एक रोज़ पहले ही तो अजीत पवार के दामन से भ्रष्टाचार के कुछ दाग धुलवाए थे। फिर क्या हुआ? क्या एनसीपी वालों का मुंह बड़ा होता जा रहा था और ज्यादा झुकने को बीजेपी तैयार नहीं थी!
तो क्या इसीलिए बीजेपी ने कह दिया कि भाई अजीत पवार! आप निकल लो यहां से अब। ज्यादा फजीहत हमें भी नहीं करानी आपको ढोकर। कल से ही जनता बीजेपी को अजीत पवार के भ्रष्टाचार में शामिल बता रही थी। हर जगह पार्टी का मज़ाक उड़ रहा था। और आज ये हो गया। सीधे अजीत पवार का इस्तीफा। अजीत का भी मुंह लटका हुआ था और इस्तीफे के बाद देवेंद्र फडणवीस का भी। मतलब समझे आप? यहां अजीत पवार का कोई हृदय परिवर्तन नहीं हुआ। (हालांकि खबर यही प्लांट कराई जा रही है कि मान-मनौव्वल के बाद अजीत दादा मान गए ताकि उनकी बाइज़्ज़त घर वापसी कराई जा सके) बस शरद पवार और अजीत पवार की डिमांड इतनी बढ़ गई कि बीजेपी ने उनसे हाथ जोड़ लिया।
अब शिव सेना और कांग्रेस खुश हो रहे हैं कि उनकी जीत हो गयी वगैरह वगैरह। पर ज़रा रुकिए। हार कर जीतने वाले को ही बाज़ीगर कहते हैं। मुझे लगता है कि एनसीपी की खींचतान से (पढ़िए तथाकथित अजीत पवार गुट) परेशान होकर बीजेपी महाराष्ट्र में कर्नाटक दुहराने का मन बना चुकी है। उसमें से एक अध्याय खत्म हो चुका है यानी येदियुरप्पा की तरह बेइज़्ज़ती वाला फडणवीस का इस्तीफा। अब दूसरा अध्याय बाकी है जिसमें जोड़तोड़ करके कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरी और बीजेपी के येदियुरप्पा फिर मुख्यमंत्री बने। अब वहां सब कुछ बहुत स्मूथ है। बोले तो एकदम चकाचक। तो इसी तरह बाद में महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी और शिव सेना गठबंधन की सरकार भी गिर सकती है और फड़नवीस दुबारा सीएम बन सकते हैं। फिर कर्नाटक की तरह महाराष्ट्र में भी सब कुछ एकदम मक्खन हो जाएगा। बोले तो एकदम स्मूथ राजपाट।
बाल ठाकरे ने कभी बगावत पे उतरे भतीजे राज ठाकरे को नहीं मनाया और चुपचाप सत्ता अपने बेटे उद्धव ठाकरे को सौंप दी। आपको क्या लगता है कि शरद पवार बुढापे में सठिया गए हैं और अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राजनीतिक वारिस बनाने की बजाय भतीजे अजीत पवार को कमान सौंप देंगे? बड़े भोले हैं आप! अगर अजीत पवार ने बगावत की होती तो अब तक उन्हें गद्दार कहके पार्टी से निकाल दिया गया होता। ये मनाने-रूठने का नाटक नहीं होता। सो शरद पवार वाया अजीत पवार और बीजेपी में क्या खिचड़ी पकी और क्यों खिचड़ी अंत में जल गई, ये तब तक हमें-आपको पता नहीं चलेगा जब तक खिचड़ी पकाने में शामिल अंदर वाले खुद कोई खुलासा नहीं करते।
वैसे शरद पवार ने अपनी मनमाफिक खबर मीडिया में प्लांट कर दी है। बहुत जल्द आपको ये सब खबरें देखने को मिलेगी कि लौट के बुद्धू घर को आए, कैसे अजीत पवार मान गए, क्या इमोशनल कार्ड खेला गया वगैरह, वगैरह। हो सकता है कि फेस सेविंग के लिए बीजेपी खेमे की तरफ से भी कुछ खबरें आए और अजीत पवार को विलेन बताया जाए। पर असल खिलाड़ी तो शरद पवार निकले, जिन्होंने अकेले बीजेपी, कांग्रेस और शिवसेना को औघड़ नाच नचा दिया।
बाकी मीडिया में प्लांटेड खबरें पढ़ें और आनंद लें। कम से कम मुझे तो यही लगता है।