पता नहीं इस देश के नागरिक किसी नेता के जीतने-हारने पर इतने खुश और उत्साहित क्यों होते हैं?
नदीम अख्तर
पता नहीं इस देश के नागरिक, पक्षकार और कॉमन मैन किसी नेता के जीतने-हारने या मंत्री बनने पे इतने खुश और इतने उत्साहित क्यों होते हैं? जबकि असलियत ये है कि सब के सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
जिस अजीत पवार के साथ आने से कल तक कुछ लोग खुश हो रहे थे, उसी अजीत पवार के चले जाने से अब कुछ लोग खुश हो रहे हैं। हक़ीक़त यही है ना कि अजीत पवार ने बड़ा घोटाला किया है और जनता का पैसा लूटा है। तो फिर वह कहीं भी जाएं, उनकी ताजपोशी या सत्ता में हिस्सेदारी पब्लिक के लिए नुकसानदेह है या फायदेमंद?
इसी तरह आप बाकी नेताओं का भी हिसाब लगा लीजिए। जनता को तो फूट-फूट कर रोना चाहिए कि मौजूदा लोकतंत्र में हर तरफ लुटेरे ही दिखते हैं, जिनमें से बारी-बारी वोट पाकर वह जनता को चूना लगाने के लिए सत्ता पा जाते हैं। ये लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी है कि अगर हर तरफ लुटेरे ही घुस आएं तो जनता क्या करे और कहां जाए?
इसके बारे में ना तो भारत के संविधान निर्माताओं ने सोचा था और ना दुनिया के किसी दूसरे देश के लोगों ने सोचा है। फिर मौजूदा लोकतंत्र के सूरते हाल की दवा क्या है? लोकतंत्र में किस सुधार और परिवर्तन की ज़रूरत है? क्या इसके लिए देश को संविधान में कुछ ज़रूरी बदलाव की ज़रूरत है? इस बारे में सोचा जाना चाहिए।
वैसे आज संविधान दिवस है। मेरे मुहल्ले का चीकू पूछ रहा था कि हमारी बगल वाली सड़क पिछले 10 साल से टूटी पड़ी है। क्या संविधान इस सड़क को बनवा देगा? बहुत तकलीफ है। मैंने उसे समझाया कि संविधान की शपथ खाओ कि तुम एक अच्छे नागरिक बनोगे। ज्यादा सवाल ना करो।मेरा जवाब सुनकर चीकू भन्नाता हुआ वहां से चला गया। शायद अगले साल वह संविधान की शपथ ले ले।