कुत्तों से ज्यादा वफादार होते हैं नेताओं के पालतू पत्रकार
अमन पठान
अब तक वफादारी के मामले में कुत्तों का पहला स्थान था लेकिन गोदी मीडिया के पत्रकारों ने नेताओं की वफादारी के मामले में कुत्तों को पछाड़ दिया है। गोदी मीडिया के पत्रकार सिर्फ टीवी पर ही नही दिखाई देते हैं बल्कि गांव कस्बों में भी देखे जा सकते हैं। अब नेता वफादारी के लिए कुत्तों से ज्यादा पत्रकारों को पालना पसंद करते हैं।
आज मैं आपको अपने होम टाउन के ऐसे पत्रकार का उदाहरण देने जा रहा हूँ जिसकी वफादारी को जानकर यकीनन आपको कुत्ते की वफादारी पर शक होने लगेगा क्योंकि उसकी वफादारी कुत्तों से भी बेहतर है। एक न्यूज एप में पत्रकारिता करने वाले पत्रकार साहब अपनी वफादारी की बदौलत पूरे कस्बे में चर्चित हैं। वह पत्रकार साहब मारहरा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष परवेज ज़ुबैरी के पालतू Tommy हैं। जिनकी वफादारी पर शक करने का मतलब है कि जैसे आपको आईने की सच्चाई पर भरोसा ही न रहा हो?
हाल ही में मारहरा कस्बे में दो मासूम बच्चों की बुखार से मौत होती है। इन मौतों के लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाए। ये कहना मेरे लिए जरा मुश्किल है अगर संक्रामक बीमारी से किसी की मौत होती है तो उसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर आला अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए क्योंकि उनके इलाके में संक्रामक बीमारी से किसी की मौत होना उनके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी बात है।
संक्रामक बीमारी से किसी की मौत हो जाने के बाद मीडिया को जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को सवालों के कटघरे में खड़ा करना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटना न घटे लेकिन नेताओं के पालतू पत्रकारों में इतनी हिम्मत कहाँ जो वह अपने आका से सवाल कर सकें कि बुखार से दो मासूम बच्चों की मौत कैसे हो गई? नगर पालिका प्रशासन क्या कर रहा था? चैयरमैन साहब आप कहाँ सो रहे थे? क्या अब कोई और तो असमय काल के गाल में नही समायेगा?
ऐसे सवाल करने के बजाय पालतू पत्रकार अपनी न्यूज़ रिपोर्ट में लिखता है कि बुखार से दो बच्चों की मौत हुई है। नगर पालिका प्रशासन ने फॉगिंग कराई है और करा रही है। कुल मिलाकर पालतू पत्रकार ने अपनी न्यूज़ रिपोर्ट में पालिका प्रशासन का भरपूर बचाव किया है। अगर पालिका प्रशासन ने फॉगिंग और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराया है तो मारहरा में मच्छरों की संख्या में कमी क्यों नही आई। संक्रामक रोग कैसे अपने पांव पसार रहे हैं? क्यों घर घर चारपाइयां बिछी हुई हैं? पालिका प्रशासन ने स्वास्थ्य विभाग से मिलकर संक्रामक रोगों पर काबू करने के लिए कौन सी कार्य योजना बनाई है? कहाँ स्वास्थ्य कैम्प लगवाया है?
आखिर हमारे रहनुमा कब तक गोदी मीडिया के पत्रकारों की मदद से अपनी करतूतों पर पर्दा डलवाते रहेंगे? अब वक्त आ गया है कि नेताओं के साथ साथ पत्रकारों से भी सवाल किया जाए कि वो सरकारी भौंपू क्यों बन रहे हैं? क्या जिस तरह वैश्या पैसों के लिए अपना जिस्म बेचती है क्या पैसों के लिए पत्रकार अपना जमीर बेच रहे हैं?
खैर हमें क्या, हम पत्रकार हैं ही कब और हमें पत्रकार मानता ही कौन है? बस अपने शहर के शक्तिमान से एक सवाल है कि भाई! बुखार से मरने वाले बच्चे आने वाले कल में आपके समर्थक होते? भाई! बच्चों को न सही अपने समर्थकों को तो बचा लीजिए? भाई! कुछ कीजिये मारहरा में संक्रामक रोग तेजी से फैल रहे हैं? अगर मेरी बात पर भरोसा नही है तो अपने किसी पालतू कुत्ते अर्थात वफादार पत्रकार से पूंछ लीजिए?