सच है एहसान का बोझ बहुत बड़ा होता है, पर इस दौर में एहसान फरामोश ज्यादा होते हैं?
मोहम्मद जावेद खान
जिन्होंने कतरा भर भी मुश्किल वक्त में साथ दिया हो तुम्हारा तो अगर मौका मिले तुम्हें तो दरिया लौटा आओ उनको। सच है एहसान का बोझ बहुत बड़ा होता है, पर इस दौर में एहसान फरामोश ज्यादा होते हैं , एहसान कई प्रकार के होते हैं व्यक्तिगत एहसान और सामूहिक एहसान । सामूहिक एहसान का मतलब यह होता है बहुत सारे लोग मिलकर किसी गरीब की बेटी की शादी करवाएं , यह सामूहिक एहसान कहलाता है वहीं दूसरी ओर चुनाव में जनता नेताओं पर सामूहिक एहसान करती है ,उनको एवं उनकी पार्टी को वोट देती है ,नेताजी जीत जाते हैं ,और उनकी सरकार बन जाती है ।
इसके बाद नेताओं एवं सरकार की एहसान फरामोशी जनता को दिखने लगती है , केंद्र की पूर्व कांग्रेस सरकार जिसने देश पर 60 वर्षों से ज्यादा राज किया पर आम जनता उस दौर में भी परेशान थी ,पूर्व सरकार के समय ही मंदिर मस्जिद वाला बीज बो दिया गया था , बेरोजगारी भी धीरे-धीरे पनप रही थी । उस सरकार ने भी जनता के साथ एहसान फरामोशी की जनता के लिए कोई ठोस रोजगार के अवसर पैदा नहीं किए ।
अब केंद्र में जो सरकार है , जनता की एहसान फरामोशी का जीता जागती मिसाल आपके सामने है । चुनाव से पहले वादे बड़े-बड़े ,नतीजा शून्य ,बेरोजगारी चरम पर ,महंगाई सितम ढा रही हैं ,मंदी के कारण व्यापारी रो रहे ,आम आदमी की जेब से पैसा गायब हो रहा ।
"भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला ले तेरी कंठी ले तेरी माला " सरकार खुद की पीठ थपथपा रही है ,धारा 370 हटा कर , मंदिर मस्जिद का मुद्दा सुलझा कर ,तीन तलाक का बिल पास कर के ।
अगर इन मुद्दों से देश की अर्थव्यवस्था सुधरती, बेरोजगारी घटती ,देश का व्यापार बढ़ता तो समझ में आता ,पर यह सरकार न देश के लिए कुछ नहीं कर रही है। एक आम आदमी को तीन तलाक के कानून बनने से क्या फायदा ,मंदिर मस्जिद बनने से एक आदमी को क्या फायदा ।
जब उस आदमी के घर में खाने को नहीं होता , जब कारोबार नहीं चलता ,जब उसके बच्चों का नाम स्कूलों से काट दिया जाता है फीस नहीं देने के कारण ,उस आदमी को मंदिर मस्जिद कहीं भी बने उसको कोई फर्क नहीं पड़ता , इंसान के दिल में मंदिर मस्जिद होता है , ऊपर वाला भी इंसान के दिल की बात सुनता है।
मुझे ऐसा लगता है, देश में चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी या कोई दूसरी पार्टी सब की नीतियां एक होती है , भले पार्टियों के झंडे बदलते हैं ,पर नेताओं की सोच नहीं , नेताओं के चेहरों के मुखोटे बदल जाते हैं , पर सब नेताओं की सोच एक जैसी होती है । कोई पार्टी मुसलमानों एवं दलितों के नाम पर राजनीति करती है ,तो कोई पार्टी हिंदुओं के नाम से । हिंदू और मुसलमान तो केवल शतरंज के मोहरे होते हैं ,शतरंज का खेल तो नेता लोग खेलते हैं ।
अगर हम अपने पड़ोसी देश चीन को देखें , कुछ समय पहले यह देश भुखमरी ,बेरोजगारी और देश की आबादी के कारण परेशान था । एक समय यह था चीन में अकाल पड़ा था , कई लोगों की भूख के कारण मौत हो गई थी , बचे हुए लोगों ने मरे हुए लोगों का मांस भून कर खा कर अपनी जिंदगी बचाई थी ।
आज चीन को देख ले पूरे विश्व के बाजारों को अपनी मुट्ठी में लिए हुए शान से कारोबार कर रहा है जो उसकी कमजोरी थी आज वही उसकी ताकत बन गई ,अब धीरे-धीरे उसने जनसंख्या पर भी काबू पा लिया । चीन ने जनता को भरपूर रोजगार दिया ,आज वहां का हर आदमी खुशहाल है । वहां पर मजदूरों को अपनी मांगे मंगवाना होती है तो वह कारखाने में उत्पादन दुगना कर देते हैं ।
काश हमारे देश में भी चीन देश की तरह नेता पैदा हो जाए या उनकी सोच धर्म से ऊपर उठकर तरक्की की ओर हो जाए । हमारे नेता देश की जनता को झूठे आंकड़ों से गुमराह करना छोड़ दें एक बार फिर से हमारा देश पूरे विश्व में सोने की चिड़िया कहलाने लगे ।