अब आतंकियों को साक्षी मान कर भी ली जा सकती है मंत्री पद की शपथ
एसपी मित्तल
28 नवम्बर को मुम्बई में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों ने अपने-अपने नेताओं को साक्षी मान कर मंत्री पद की शपथ ली। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले शिवाजी को साक्षी माना। इसी प्रकार कांग्रेस के मंत्रियों ने ईश्वर से पहले श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नाम लिया। एनसीपी के मंत्रियों ने शपथ से शरद पवार और शिवसेना के मंत्रियों ने उद्धव ठाकरे का नाम लिया।
असल में इन मंत्रियों ने यह दर्शाने की कोशिश की कि है कि वे अपने नेताओं की वजह से शपथ ले रहे हैं। यह माना कि संविधान में मंत्रियों को शपथ को लेकर कोई आचार संहिता नहीं है, लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि ईश्वर के नाम से पहले अपने पंसदीदा नेता का नाम लिया जाए। 28 नवम्बर को जिस तरह मंत्रियों ने प्रदर्शन किया, उस पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी नाराजगी जताई है। कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कहा है कि भविष्य में ऐसी हरकत नहीं होनी चाहिए। शपथ लेने की जो परंपरा है उसी के अनुरूप मंत्री शपथ लें।
सवाल यह भी है कि क्या पार्टियों के नेता संविधान से भी बड़े हो गए हैं? लोकतंत्र में यही माना जाता है कि योग्य विधायक ही मंत्री पद की शपथ लेगा, लेकिन 28 नवम्बर को कांग्रेस के विधायकों ने मंत्री बनने का श्रेय सोनिया गांधी और राहुल गांधी को दिया। इसी प्रकार एनसीपी के विधायकों ने माना कि वे शरद पवार की वजह से मंत्री पद की शपथ ले रहे हैं।
जाहिर है कि ऐसे मंत्री अब संविधान के बजाए अपने नेता के प्रति वफादार होंगे। जब मंत्री पद की शपथ ही अपने नेता के नाम पर ली जा रही है, तब ऐसे मंत्रियों से निष्पक्षता की उम्मीद करना बेमानी है क्योंकि मंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद ये मंत्री वो ही काम करेंगे जो पार्टी का नेता कहेगा। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों को विचार करना चाहिए।