BHU में फिरोज़ खान के संस्कृत पढ़ाने पर बवाल, ऋषि शर्मा के उर्दू पढ़ाने पर किसी ने नही किया सवाल
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में संस्कृत प्रोफेसर के तौर पर फिरोज खान की नियुक्ति कुछ लोगों को भा नहीं रही है. कई छात्रों ने इस पर विवाद किया और इस नियुक्ति का विरोध किया. पिछले 13 दिनों से इस मसले पर छात्र कुलपति आवास के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन इस विवाद से इतर अगर बीएचयू में ही नज़र घुमाएं तो यहां उर्दू विभाग में पिछले चार साल से ऋषि शर्मा छात्रों को उर्दू सिखा रहे हैं, जो इस तरह के विवाद के लिए एक आईना है. इन चार सालों में किसी ने ऋषि शर्मा का ना तो विरोध किया और ना ही किसी तरह का सवाल पूछा गया.
बीएचयू के एक विभाग में भले ही धर्म के आधार पर विरोधाभास चल रहा हो, लेकिन 2015 से ऋषि शर्मा उर्दू विभाग में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं. BHU के उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आफताब अहमद अफाकी ने आजतक से बताया कि यहां के उर्दू विभाग का अपना एक इतिहास रहा है , खुद मदन मोहन मालवीय जी ने उर्दू, अरबी और फारसी डिपार्टमेंट को बनाया. तब से लेकर अबतक इस विभाग में बड़ी हस्तियां हमेशा से ही हिंदू रही हैं.
बीएचयू के उर्दू विभाग का ही उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि मौलवी महेश प्रसाद उर्दू की दुनिया में बड़ा नाम हैं, उन्होंने गालिब की चिट्ठियों को निखारने का काम किया. इसके अलावा भी उन्होंने कई ऐसे उदाहरण दिए जो आज के विवाद को आईना दिखाते हैं.
कौन हैं उर्दू पढ़ाने वाले हिंदू प्रोफेसर?
ऋषि शर्मा, 2015 में बीएचयू के उर्दू विभाग से जुड़े. मूलत: वह पश्चिम बंगाल से हैं, प्रो. आफताब अहमद अफाकी ने कहा कि उर्दू विभाग की परंपरा रही है कि शिक्षकों के साथ-साथ छात्र भी अधिकतर हिंदू ही रहते हैं. भाषा किसी कौम की नहीं होती है, किसी धर्म से जोड़ना ठीक नहीं है.
विभागाध्यक्ष ने बताया कि जिस शिलापट्ट का छात्र हवाला दे रहे हैं, उसमें ये कहीं नहीं लिखा है कि उनके यहां सनातन के अलावा अन्य किसी का प्रवेश वर्जित है. जो इस तरह की बात कह रहे हैं उनका मालवीय जी की शिक्षा से दूर दूर तक कोई लगाव नहीं है.
क्या कहते हैं ऋषि शर्मा?
मूल रूप से बिहार और फिर पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर के निहायत ही गरीब परिवार में परवरिश पाने वाले बीएचयू के उर्दू विभाग में 2015 में नियुक्त ऋषि शर्मा ने आजतक से बात की. उन्होंने बताया कि उनके इलाके में कुछ ही घर हिंदुओं के हैं और उनके बचपन की शिक्षा भी मदरसे में हुई क्योंकि परिवार काफी गरीब था और फिर मदरसे में पढ़ाई के दौरान ही उनकी दिलचस्पी उर्दू के प्रति बढ़ी.