Cecil Green H Library: अमीर तो भारत में भी हुए हैं लेकिन वो धर्मशाला बनवाकर चले गए
रवीश कुमार
Cecil Green H Library. स्टैनफ़ोर्ड 1891 में बना था। वहाँ लाइब्रेरी तो बननी ही थी। जो इमारत बनी वह 1906 के भूकंप में ध्वस्त हो गई। फिर 1919 में बनी तो कई कमियाँ रह गईं। उसके बाद इसकी यह इमारत 1999 में मुकम्मल होती है। सौ साल पुरानी यह लाइब्रेरी चमकती है।
अमीर लोगों के दिए पैसे से बनी है। अमीर भारत में भी हुए हैं। धर्मशाला बनवाकर चले गए। दुनिया की 150 से अधिक लाइब्रेरी से इसका नाता है। कुछ भी चाहिए आपकी मेज़ पर मिलेगी। मैं एक लाइब्रेरी को देखते हुए बड़ा हुआ हूँ। मुझे लाइब्रेरी में प्रवेश करने की चाल बहुत पसंद है।
जैसे जैसे आप भीतर जाते हैं वैसे वैसे आपके भीतर किताबों की गंध और शांति प्रवेश करने लगती है। इसलिए जब भी बाहर गया किसी लाइब्रेरी में ज़रूर गया। इसकी रीडिंग रूम की कल्पना आप भारत में नहीं कर सकते हैं। जिस समाज में एक यूनिवर्सिटी का मज़ाक़ उड़ाया जाता हो वहाँ ऐसी लाइब्रेरी के महत्व की बात उनके अहंकार का मज़ाक़ उड़ाना हो जाएगा। पाँव दुख रहे थे फिर भी मैं देख आया।
हम इस अमरीका को नहीं जानते न वहाँ जाने वालों ने कभी बताया कि ज्ञान संग्रह महँगा होते हुए भी कितना व्यवस्थित है। बॉस्टन पब्लिक लाइब्रेरी अगर देख लें तो होश उड़ जाएँगे। पब्लिक यानि जनता के पैसे से चलने वाली लाइब्रेरी इतनी भव्य हो सकती है आप सोच भी नहीं सकते। हिन्दी प्रदेश के अभिशप्त युवाओं कुछ सोचो। कुछ खोजो। कुछ जानो। कुछ माँगो। कुछ पाओ।