शिवाकांत अवस्थी शिवगढ़/रायबरेली: हस्तलिखित पुस्तक शिवगढ़ व रामेश्वर विलास तथा गजीटियर लखनऊ में लिखित शिवगढ़ अवध जिला रायबरेली के राजा...
शिवाकांत अवस्थी
शिवगढ़/रायबरेली: हस्तलिखित पुस्तक शिवगढ़ व रामेश्वर विलास तथा गजीटियर लखनऊ में लिखित शिवगढ़ अवध जिला रायबरेली के राजाओं का वृतांत के अनुसार,, नार के इतिहास में राजा पृथ्वी देव तक का वृत्तांत लिखा जा चुका है। शिवगढ़ के राजा इन्हीं उपरोक्त नार के राजा पृथ्वीचंद्रदेव के वंशज हैं। महाराजा गोविंद चन्द्र कन्नौज ने राजा पृथ्वीचंद्रदेव के पुत्र कान्हदेव को अमेठी के परगने पर भेजा। पहले यहां भर जाति के लोग रहते थे और राज्य कर नहीं दिया करते थे तथा अनेकों उत्पात मचाया करते थे। महाराजा गोविंद चन्द्र की आज्ञा पा राजा कान्हदेव ने अपनी विशाल सेना लेकर अमेंठी के भर लोगों पर आक्रमण किया। होली के दिन उन्हें परास्त कर अमेठी पर अपना अधिकार कर लिया और किले को नए सिरे से बनवाकर वही अपना राज्य स्थापित किया अमेठी में बसने के उपरांत अमेठियागौड़ क्षत्रिय कहलाए।
इनके पुत्र बाल सिंह हुए राजा बाल सिंह ने अपना राज्य इस परगने पर अच्छी तरह बैठाया। इनके पुत्र रैपालसिंह हुए। यह भी बीरपुरुष थे। इनकी तीसरी पीढ़ी में राजाअजयापाल हुए, जिन्होंने नरगांव (वास्तविक) में इस ग्राम का नाम नलग्राम था जिसको राजा नल ने बसाया था। पुरानी सरकारी दस्तावेजों में नलग्राम ही लिखा मिलता है पर यहां चढ़ाई की और यहां के भर जाति के राजा को परास्त कर अपना साम्राज्य स्थापित किया। उसी समय से कई वर्षों तक नरगांव का परगना रहा। जब तक अमेठिया गौड़ छत्रिय अमेठी में रहे। अमेठी परगना रहा उसके बाद में नरगांव रहा। इनके पुत्र राजाजमधर हुए जिनके 3 पुत्र क्रमश: डींगुर साह, लोहंग सिंह और राम सिंह हुए। राजा डींगुर साह ने अमेठी की बड़ी उन्नत की, इसी कारण अमेठी अब तक अमेठी राजा डींगुर साह के नाम पर "अमेठी राजा डींगुर साह" के नाम से प्रसिद्ध है।
गजीटियर लखनऊ के पृष्ठ 140 पर एक और वृतांत मिलता है कि, राजा डींगुसाह के समय में मुसलमानों का बहुत बल बढ़ गया था। इन्हीं के राज्य के समय हजरत बंदगी मियां व शेषबहाउलहक प्रसिद्ध फकीर इधर से होकर निकले। जब इस कस्बे में आए और उनको यह मालूम हुआ कि, यह डींगुरसाह की अमेठी है और उन्होंने ही इसकी इतनी उन्नति की है तो फकीर ने यहीं ठहरने की प्रतिज्ञा कर ली। प्रथम तो राजा डींगुरसाह ने युद्ध की तैयारी की, परंतु जब यह ज्ञात हुआ कि यह प्रसिद्ध फकीर है और बादशाह भी इनकी प्रतिष्ठा करते हैं तो इधर परगने कुम्हरावां से हैदर गढ़ तक अपना राज्य बढ़ाया। बादशाह अकबर बंगाल के युद्ध से लौटते समय इस फकीर के दर्शन को अमेठी आए थे। और इन्हें माफी भी दी जो इस समय तक है। राजा डींगुरशाह बड़े वीर व साहसी थे इन्होंने अपने तीनों भाइयों में राज्य बांट लिया। राजा डींगुर शाह कुम्हरावां के राजा हुए। इन्होंने अपने लघु भ्राता लोहंगसिंह को राना की उपाधि देकर अरवैयापुर का स्वामी किया और राम सिंह को राव की उपाधि देकर (पोखरा) का स्वामी किया।
कुम्हरावां ग्राम के लिए ऐसी लोकोक्ति है कि, राजा बाणासुर के प्रधान कुंभारण का बसाया हुआ है जिसकी पुत्री चित्रलेखा बाणासुर की पुत्री उषा की प्रिय सखी थी। जो कृष्ण चंद के पौत्र अनिरुद्ध को द्वारका से लाई थी। जिनकी कथा दशमस्कंध श्रीमद्भागवत में दी हुई है। इस समय अवध में सबसे बड़ी रियासत गौणों की डींगुरशाह के वंश में शिवगढ़ है और इसी वंश के भाई बेटे, वन बन्कागढ़, दुन्दपुर, खजूरों, पड़रिया, नटाई, भवानीगढ़, कसाना, ओशाह, देहली, गुमावां, कोटवा, रामपुर, ढिकवा आदि में फैले हुए हैं। अब यहां शिवगढ़ के ही राजाओं का वृतांत लिखा जाता है। राजा डींगुर शाह के उदय राज हुए। इन्होंने परगना कुम्हरावां व नगरांव इन्हौना के कुछ भाग पर अधिकार रखा। राजा उदयराज की चौथी पीढ़ी में बीरसिंह हुए इन्होंने बीरसिंहपुर बसाया और अपनी राजधानी का बीरसिंहपुर नाम रखा। बीरसिंह की चौथी पीढ़ी में खड्ग सिंह हुए ये चार भाई थे जब राजा खड्ग सिंह राज्यासन पर बैठे तो इन्होंने अपने छोटे भाई बीरसिंह को गुमांवा, फतेहसिंह को पड़रिया व गोपाल सिंह को नटई ग्राम गुजारे में दिया। राजा खड्गसिंह के दो पुत्र हुए, बड़े त्रिभुवनसिंह राज्य के स्वामी हुए। इन्होंने रामपुर नामक गांव बसाया जिसको इस समय भी राजा का रामपुर कहते हैं। इनके पिता ने अपने छोटे पुत्र इंद्रजीत को ओसाह ताल्लुका गुजारे में दिया। बाबू इंद्रजीतसिंह के वंशज इस समय भी ओसाह के ताल्लुकेदार हैं जिनका वृतांत पंचदस प्रकरण में लिखा गया है। राजा त्रिभुवनसिंह की चौथी पीढ़ी में राजा शिवसिंह हुए। इनके पुत्र राजा रंजनसिंह हुए। इन्होंने कुम्हरावां में अपने किला वा महलों की बड़ी उन्नत की जिनके चिन्ह अब तक विद्यमान है। इन के मरने पर इनके दत्तक पुत्र अड़ारुसिंह राज्य के अधिकारी हुए। इन्होंने अपने छोटे भ्राता बाबू विजयसिंह को देहली का तालुका गुजारे में दिया। जिनके वंशज इस समय तालुके के स्वामी हैं। जिनका वृतांत पंचदश प्रकरण में लिखा गया है।
बाबू इंद्रजीतसिंह के प्रपौत्र वान सिंह के पुत्र छत्रधारी ने सराय नामक गाव बसाया जिसको सराय छत्रधारी कहते हैं। राजा अड़ारूसिंह ने अपने नाम पर अड़ारुगंज बसाया वहां बाजार बनवाया जो इस समय अड़ारूगंज बाजार के नाम से प्रसिद्ध है। राजा अड़ारूसिंह के पुत्र दलजीतसिंह हुए। राजा दलजीतसिंह के 4 पुत्र हुए इनके मरने पर बड़े पुत्र राजा जगमोहनसिंह राज्य के स्वामी हुए पर अपने भाई अर्जुनसिंह को बंकागढ़, बाबू शंकरबक्स सिंह को दुन्दपुर, बाबू शिवनारायणसिंह को समनापुर सिकन्दरपुर (जिला लखनऊ गुजारे में दिए)। बाबू शिवनारायण सिंह के पुत्र न होने के कारण व उनकी मृत्यु के पश्चात उनके गुजारे के गांव राज्य शिवगढ़ में वापस आ गए। बाबू अर्जुनसिंह ने अपने नाम पर अर्जुनगंज व अपने बड़े भ्राता के नाम पर जगमोहनगंज बसाया। राजा जगमोहनसिंह शिव भक्त थे और गदर के समय यही राजा थे इन्होंने अपने राज्य का उत्तम प्रबंध रखा।
ब्रिटिस गवर्नमेंट ने राजा की उपाधि जो कितनी ही शताब्दी से फौजी खिदमात के कारण चली आती थी फौरन डिपार्टमेंट नोटिफिकेशन नंबर 631 तारीख 9 दिसंबर अट्ठारह सौ चौंसठ से मैं रूसी नियति की और राज्य की सनद भी दी तथा हल्के जगदीशपुर में प्रायः 16 गांव जो शाही समय से माफी थे ब्रिटिश गवर्नमेंट ने भी इनको राजा साहब के गदर के समय की हर ख्वाहिश से प्रसन्न होकर ताहियात राजा साहब माफी रखें। राजा साहब को अख्तियारात मुंसफी के भी दिए गए। इनके 3 पुत्र व एक पुत्री थी। बड़े पुत्र विशेश्वरबक्ससिंह राजा हुए। यह भी अपने पिता की तरह शिव भक्त थे। इनका विवाह चौहान वंशी वत्सगोत्र डियरा के राजा श्रीमान शंकरबक्ससिंह की कन्या से हुआ था। इनके छोटे भ्राता बाबू माधवबक्ससिंह का विवाह चौहान वंशीय वत्सगोत्रीय श्रीमान राजा प्रताप बहादुर कुड़वार की भगिनी से हुआ था। राजा साहब को अख्तियारात फौजदारी के थे। राजा साहब की भगिनी का विवाह यदुवंशी श्रीमान रावरणजीत सिंह राजधानी सरमथुरा के साथ हुआ। इन्हीं के समय शिवगढ़ में स्कूल नियति हुआ आपकी ही इच्छा से एक शिवालय व बाजार शिवगढ़ में बनवाए गए।
इसी बीच में सन् अट्ठारह सौ सतासी में आप का स्वर्गवास हुआ इनके एक पुत्र व तीन कन्याएं थी। इनके पुत्र राजा रामेश्वरबख्शसिंह जिनका जन्म 16 जून सन् 1875 में हुआ था। ये 8 दिसंबर सन 1887 को राजगद्दी पर बैठे। इनके वाल्यावस्था में राज्य का प्रबंध इनकी श्रीमती माता ने किया था। इनकी जस्ट भगिनी ओके विवाह निम्नलिखित रियासतों में हुए।
1- जेस्ट भगिनी का विवाह राठौर कुल में श्रीमान राव गोपाल सिंह खरवा (राजपूताने) के साथ हुआ। द्वितीय भगिनी का विवाह कछवाहवंश टेठराधोश (जयपुर) के साथ हुआ और तृतीय भगिनी का विवाह सिसोदिया वंश के श्रीमान राव यशवंतसिंह रियासत घिरावत (उदयपुर) के साथ हुआ। राजा साहब का विवाह बस्ती के कलहंस वंशो राजा श्रीमान पटेश्वरी प्रताप नारायण सिंह की भगिनी के साथ हुआ। जुलाई सन् 1896 से राजा साहब ने राज्य अधिकार अपने हाथों में लिया।
एक इलाका समरपहा का जो ठकुराइन दरियाव कुंवरि का था, उनके अंतकाल होने पर सन 1896 के अनुसार इनको मिला। जिसका झगड़ा अदालत आलिया प्रिवी काउंसिल द्वारा तय होकर इलाका इन्हीं के नाम पर कायम रहा। इस इलाके का राज्य कर प्राय: बावन हजार के हैं। राजा साहब ने शिवगढ़ में बहुत उन्नत की। अपने पिता की इच्छा के अनुसार शिवगढ़ में शिवालय श्री विश्वेश्वर महादेव का बनवाया और बाजार बहुत उत्तम बनवाया जो दूर दूर तक रामेश्वर गंज के नाम से विख्यात है। ठाकुरद्वारा अति उत्तम श्री रामेश्वर नामक बनवाया। श्री बरखंडी महेश के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, शिवगढ़ में अच्छे संगमरमर पाषाण के महल व शिवालय बनवाएं। डाकखाना व तारघर शिवगढ़ में खोला गया। रायबरेली, लखनऊ, बछरावां व समरपहा में भी कोठियां एंव महल बनवाए। बाग जो पहले बहुत छोटा था अब उसमें बड़ी उन्नति हुई जो अब पहले से चौगुना हो गया है। राजा साहब भी अपने पिता की भांति शिव भक्त हैं वार्षिक गवर्नमेंट राज्य कर एक लाख चालीस हजार है। इस राज्य में 105 गांव व अनेक पटिया है इनके कुंवर लाल बरखंडी महेश प्रताप नारायण सिंह है जो, काल्विन तालुकदारी स्कूल लखनऊ में मैट्रिकुलेशन फर्स्टईयर में अध्ययन करते हैं इनका विवाह कनपुरिया वंशी श्रीमान राजा जगतपाल बहादुर सिंह कैथोला की भगनी से हुआ है।
शिवगढ़/रायबरेली: हस्तलिखित पुस्तक शिवगढ़ व रामेश्वर विलास तथा गजीटियर लखनऊ में लिखित शिवगढ़ अवध जिला रायबरेली के राजाओं का वृतांत के अनुसार,, नार के इतिहास में राजा पृथ्वी देव तक का वृत्तांत लिखा जा चुका है। शिवगढ़ के राजा इन्हीं उपरोक्त नार के राजा पृथ्वीचंद्रदेव के वंशज हैं। महाराजा गोविंद चन्द्र कन्नौज ने राजा पृथ्वीचंद्रदेव के पुत्र कान्हदेव को अमेठी के परगने पर भेजा। पहले यहां भर जाति के लोग रहते थे और राज्य कर नहीं दिया करते थे तथा अनेकों उत्पात मचाया करते थे। महाराजा गोविंद चन्द्र की आज्ञा पा राजा कान्हदेव ने अपनी विशाल सेना लेकर अमेंठी के भर लोगों पर आक्रमण किया। होली के दिन उन्हें परास्त कर अमेठी पर अपना अधिकार कर लिया और किले को नए सिरे से बनवाकर वही अपना राज्य स्थापित किया अमेठी में बसने के उपरांत अमेठियागौड़ क्षत्रिय कहलाए।
इनके पुत्र बाल सिंह हुए राजा बाल सिंह ने अपना राज्य इस परगने पर अच्छी तरह बैठाया। इनके पुत्र रैपालसिंह हुए। यह भी बीरपुरुष थे। इनकी तीसरी पीढ़ी में राजाअजयापाल हुए, जिन्होंने नरगांव (वास्तविक) में इस ग्राम का नाम नलग्राम था जिसको राजा नल ने बसाया था। पुरानी सरकारी दस्तावेजों में नलग्राम ही लिखा मिलता है पर यहां चढ़ाई की और यहां के भर जाति के राजा को परास्त कर अपना साम्राज्य स्थापित किया। उसी समय से कई वर्षों तक नरगांव का परगना रहा। जब तक अमेठिया गौड़ छत्रिय अमेठी में रहे। अमेठी परगना रहा उसके बाद में नरगांव रहा। इनके पुत्र राजाजमधर हुए जिनके 3 पुत्र क्रमश: डींगुर साह, लोहंग सिंह और राम सिंह हुए। राजा डींगुर साह ने अमेठी की बड़ी उन्नत की, इसी कारण अमेठी अब तक अमेठी राजा डींगुर साह के नाम पर "अमेठी राजा डींगुर साह" के नाम से प्रसिद्ध है।
गजीटियर लखनऊ के पृष्ठ 140 पर एक और वृतांत मिलता है कि, राजा डींगुसाह के समय में मुसलमानों का बहुत बल बढ़ गया था। इन्हीं के राज्य के समय हजरत बंदगी मियां व शेषबहाउलहक प्रसिद्ध फकीर इधर से होकर निकले। जब इस कस्बे में आए और उनको यह मालूम हुआ कि, यह डींगुरसाह की अमेठी है और उन्होंने ही इसकी इतनी उन्नति की है तो फकीर ने यहीं ठहरने की प्रतिज्ञा कर ली। प्रथम तो राजा डींगुरसाह ने युद्ध की तैयारी की, परंतु जब यह ज्ञात हुआ कि यह प्रसिद्ध फकीर है और बादशाह भी इनकी प्रतिष्ठा करते हैं तो इधर परगने कुम्हरावां से हैदर गढ़ तक अपना राज्य बढ़ाया। बादशाह अकबर बंगाल के युद्ध से लौटते समय इस फकीर के दर्शन को अमेठी आए थे। और इन्हें माफी भी दी जो इस समय तक है। राजा डींगुरशाह बड़े वीर व साहसी थे इन्होंने अपने तीनों भाइयों में राज्य बांट लिया। राजा डींगुर शाह कुम्हरावां के राजा हुए। इन्होंने अपने लघु भ्राता लोहंगसिंह को राना की उपाधि देकर अरवैयापुर का स्वामी किया और राम सिंह को राव की उपाधि देकर (पोखरा) का स्वामी किया।
कुम्हरावां ग्राम के लिए ऐसी लोकोक्ति है कि, राजा बाणासुर के प्रधान कुंभारण का बसाया हुआ है जिसकी पुत्री चित्रलेखा बाणासुर की पुत्री उषा की प्रिय सखी थी। जो कृष्ण चंद के पौत्र अनिरुद्ध को द्वारका से लाई थी। जिनकी कथा दशमस्कंध श्रीमद्भागवत में दी हुई है। इस समय अवध में सबसे बड़ी रियासत गौणों की डींगुरशाह के वंश में शिवगढ़ है और इसी वंश के भाई बेटे, वन बन्कागढ़, दुन्दपुर, खजूरों, पड़रिया, नटाई, भवानीगढ़, कसाना, ओशाह, देहली, गुमावां, कोटवा, रामपुर, ढिकवा आदि में फैले हुए हैं। अब यहां शिवगढ़ के ही राजाओं का वृतांत लिखा जाता है। राजा डींगुर शाह के उदय राज हुए। इन्होंने परगना कुम्हरावां व नगरांव इन्हौना के कुछ भाग पर अधिकार रखा। राजा उदयराज की चौथी पीढ़ी में बीरसिंह हुए इन्होंने बीरसिंहपुर बसाया और अपनी राजधानी का बीरसिंहपुर नाम रखा। बीरसिंह की चौथी पीढ़ी में खड्ग सिंह हुए ये चार भाई थे जब राजा खड्ग सिंह राज्यासन पर बैठे तो इन्होंने अपने छोटे भाई बीरसिंह को गुमांवा, फतेहसिंह को पड़रिया व गोपाल सिंह को नटई ग्राम गुजारे में दिया। राजा खड्गसिंह के दो पुत्र हुए, बड़े त्रिभुवनसिंह राज्य के स्वामी हुए। इन्होंने रामपुर नामक गांव बसाया जिसको इस समय भी राजा का रामपुर कहते हैं। इनके पिता ने अपने छोटे पुत्र इंद्रजीत को ओसाह ताल्लुका गुजारे में दिया। बाबू इंद्रजीतसिंह के वंशज इस समय भी ओसाह के ताल्लुकेदार हैं जिनका वृतांत पंचदस प्रकरण में लिखा गया है। राजा त्रिभुवनसिंह की चौथी पीढ़ी में राजा शिवसिंह हुए। इनके पुत्र राजा रंजनसिंह हुए। इन्होंने कुम्हरावां में अपने किला वा महलों की बड़ी उन्नत की जिनके चिन्ह अब तक विद्यमान है। इन के मरने पर इनके दत्तक पुत्र अड़ारुसिंह राज्य के अधिकारी हुए। इन्होंने अपने छोटे भ्राता बाबू विजयसिंह को देहली का तालुका गुजारे में दिया। जिनके वंशज इस समय तालुके के स्वामी हैं। जिनका वृतांत पंचदश प्रकरण में लिखा गया है।
बाबू इंद्रजीतसिंह के प्रपौत्र वान सिंह के पुत्र छत्रधारी ने सराय नामक गाव बसाया जिसको सराय छत्रधारी कहते हैं। राजा अड़ारूसिंह ने अपने नाम पर अड़ारुगंज बसाया वहां बाजार बनवाया जो इस समय अड़ारूगंज बाजार के नाम से प्रसिद्ध है। राजा अड़ारूसिंह के पुत्र दलजीतसिंह हुए। राजा दलजीतसिंह के 4 पुत्र हुए इनके मरने पर बड़े पुत्र राजा जगमोहनसिंह राज्य के स्वामी हुए पर अपने भाई अर्जुनसिंह को बंकागढ़, बाबू शंकरबक्स सिंह को दुन्दपुर, बाबू शिवनारायणसिंह को समनापुर सिकन्दरपुर (जिला लखनऊ गुजारे में दिए)। बाबू शिवनारायण सिंह के पुत्र न होने के कारण व उनकी मृत्यु के पश्चात उनके गुजारे के गांव राज्य शिवगढ़ में वापस आ गए। बाबू अर्जुनसिंह ने अपने नाम पर अर्जुनगंज व अपने बड़े भ्राता के नाम पर जगमोहनगंज बसाया। राजा जगमोहनसिंह शिव भक्त थे और गदर के समय यही राजा थे इन्होंने अपने राज्य का उत्तम प्रबंध रखा।
ब्रिटिस गवर्नमेंट ने राजा की उपाधि जो कितनी ही शताब्दी से फौजी खिदमात के कारण चली आती थी फौरन डिपार्टमेंट नोटिफिकेशन नंबर 631 तारीख 9 दिसंबर अट्ठारह सौ चौंसठ से मैं रूसी नियति की और राज्य की सनद भी दी तथा हल्के जगदीशपुर में प्रायः 16 गांव जो शाही समय से माफी थे ब्रिटिश गवर्नमेंट ने भी इनको राजा साहब के गदर के समय की हर ख्वाहिश से प्रसन्न होकर ताहियात राजा साहब माफी रखें। राजा साहब को अख्तियारात मुंसफी के भी दिए गए। इनके 3 पुत्र व एक पुत्री थी। बड़े पुत्र विशेश्वरबक्ससिंह राजा हुए। यह भी अपने पिता की तरह शिव भक्त थे। इनका विवाह चौहान वंशी वत्सगोत्र डियरा के राजा श्रीमान शंकरबक्ससिंह की कन्या से हुआ था। इनके छोटे भ्राता बाबू माधवबक्ससिंह का विवाह चौहान वंशीय वत्सगोत्रीय श्रीमान राजा प्रताप बहादुर कुड़वार की भगिनी से हुआ था। राजा साहब को अख्तियारात फौजदारी के थे। राजा साहब की भगिनी का विवाह यदुवंशी श्रीमान रावरणजीत सिंह राजधानी सरमथुरा के साथ हुआ। इन्हीं के समय शिवगढ़ में स्कूल नियति हुआ आपकी ही इच्छा से एक शिवालय व बाजार शिवगढ़ में बनवाए गए।
इसी बीच में सन् अट्ठारह सौ सतासी में आप का स्वर्गवास हुआ इनके एक पुत्र व तीन कन्याएं थी। इनके पुत्र राजा रामेश्वरबख्शसिंह जिनका जन्म 16 जून सन् 1875 में हुआ था। ये 8 दिसंबर सन 1887 को राजगद्दी पर बैठे। इनके वाल्यावस्था में राज्य का प्रबंध इनकी श्रीमती माता ने किया था। इनकी जस्ट भगिनी ओके विवाह निम्नलिखित रियासतों में हुए।
1- जेस्ट भगिनी का विवाह राठौर कुल में श्रीमान राव गोपाल सिंह खरवा (राजपूताने) के साथ हुआ। द्वितीय भगिनी का विवाह कछवाहवंश टेठराधोश (जयपुर) के साथ हुआ और तृतीय भगिनी का विवाह सिसोदिया वंश के श्रीमान राव यशवंतसिंह रियासत घिरावत (उदयपुर) के साथ हुआ। राजा साहब का विवाह बस्ती के कलहंस वंशो राजा श्रीमान पटेश्वरी प्रताप नारायण सिंह की भगिनी के साथ हुआ। जुलाई सन् 1896 से राजा साहब ने राज्य अधिकार अपने हाथों में लिया।
एक इलाका समरपहा का जो ठकुराइन दरियाव कुंवरि का था, उनके अंतकाल होने पर सन 1896 के अनुसार इनको मिला। जिसका झगड़ा अदालत आलिया प्रिवी काउंसिल द्वारा तय होकर इलाका इन्हीं के नाम पर कायम रहा। इस इलाके का राज्य कर प्राय: बावन हजार के हैं। राजा साहब ने शिवगढ़ में बहुत उन्नत की। अपने पिता की इच्छा के अनुसार शिवगढ़ में शिवालय श्री विश्वेश्वर महादेव का बनवाया और बाजार बहुत उत्तम बनवाया जो दूर दूर तक रामेश्वर गंज के नाम से विख्यात है। ठाकुरद्वारा अति उत्तम श्री रामेश्वर नामक बनवाया। श्री बरखंडी महेश के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, शिवगढ़ में अच्छे संगमरमर पाषाण के महल व शिवालय बनवाएं। डाकखाना व तारघर शिवगढ़ में खोला गया। रायबरेली, लखनऊ, बछरावां व समरपहा में भी कोठियां एंव महल बनवाए। बाग जो पहले बहुत छोटा था अब उसमें बड़ी उन्नति हुई जो अब पहले से चौगुना हो गया है। राजा साहब भी अपने पिता की भांति शिव भक्त हैं वार्षिक गवर्नमेंट राज्य कर एक लाख चालीस हजार है। इस राज्य में 105 गांव व अनेक पटिया है इनके कुंवर लाल बरखंडी महेश प्रताप नारायण सिंह है जो, काल्विन तालुकदारी स्कूल लखनऊ में मैट्रिकुलेशन फर्स्टईयर में अध्ययन करते हैं इनका विवाह कनपुरिया वंशी श्रीमान राजा जगतपाल बहादुर सिंह कैथोला की भगनी से हुआ है।