जानिए क्यों ख़तरनाक है नागरिकता संशोधन बिल? और क्यों इसे भारतीय संसद को पास नहीं करना चाहिए?
कृष्णकांत
यह विधेयक कानून के समक्ष समता के अधिकार का उल्लंघन करता है. यह विधेयक नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव करता है. यह विधेयक 1985 के असम एकॉर्ड का उल्लंघन करता है. यह विधेयक में यह स्पष्ट नहीं है कि नागरिकता देने का आधार क्या होगा और किस आधार पर नागरिकता देने के इनकार कर दिया जाएगा.
इस विधेयक में दो पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में ‘धार्मिक उत्पीड़न’ का शिकार लोगों का जिक्र है. बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले छह अल्पसंख्यक समूहों- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को शामिल किया गया है, लेकिन श्रीलंका या म्यांमार से आने वालों को शामिल नहीं किया गया है. मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है. विधेयक में इसकी व्याख्या भी नहीं है कि किस आधार पर, किन आंकड़ों या विश्लेषणों के सहारे यह निष्कर्ष निकाला गया कि मात्र दो देशों में विशेष धार्मिक समूह “धार्मिक उत्पीड़न” का शिकार हैं.
क्या कहता है सीएबी?
नागरिकता संशोधन विधेयक कहता है कि भारत में घुसपैठ करके आए मुसलमानों के अलावा बाकी सभी को भारत की नागरिकता दी जाएगी. यह विधयेक सभी विदेशी घुसपैठियों को बाहर करने का प्रावधान नहीं करता. यह सिर्फ मुसलमान घुसपैठियों को बाहर करने की बात करता है.
भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता का प्रावधान नहीं है. भारत का संविधान धर्म के आधार पर भेद नहीं करता. अगर कोई विदेश से आया है तो सरकार के पास उसे बाहर करने का आधार सिर्फ धर्म नहीं है. अन्य तरीकों से घुसपैठियों को बाहर किया जा सकता है. असम में लागू की गई एनआरसी पर हजारों करोड़ फूंक दिया गया और अब वहां की भाजपा इकाई इसका विरोध कर रही है. पूर्वोत्तर राज्यों के लोग एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक दोनों का विरोध कर रहे हैं. सरकार को अपना अहंकार त्याग कर लोगों की आपत्तियों को सुनना चाहिए और तानाशाही त्याग देनी चाहिए.
किसी नागरिक की पहचान करना सरकार के लिए चुटकी भर का काम है. अगर देश में विदेशी लोग घुसपैठ कर रहे हैं तो यह सरकार की नाकामी है. सरकार उनकी पहचान करने के तरीके खोजे. सरकार को यह कोई अधिकार नहीं है कि वह 140 करोड़ लोगों को आदेश दे कि आप अपनी नागरिकता का प्रमाण पेश करें. यह देश यहां रहने वाली जनता का बनाया हुआ है और जनता इसकी मालिक है. सरकार जनसेवक है. सरकार जनता की सेवक है. सेवक मालिक से यह नहीं कह सकता है कि आप यहां रहने के योग्य हैं या नहीं, यह साबित कीजिए.
एनआरसी और इससे जुड़ा नागरिकता संशोधन विधेयक, यह दोनों संविधान की मूल भावना के खिलाफ हैं. इसका विरोध होना चाहिए. संसद के पिछले सत्रों में यह विधेयक लोकसभा से पास हुआ और राज्यसभा में लाया गया. इस पर उठने वाले किसी भी सवाल का जवाब सरकार ने नहीं दिया है. ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसी विराट सोच वाले देश को ऐसा कुत्सित और संकुचित कानून नहीं बनाना चाहिए. भारतीय संविधान दुनिया के अच्छे संविधानों में से एक है. इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए. बर्बाद संविधान और कानून व्यवस्था एक बर्बाद देश का निर्माण करती है.