शशि कपूर पुण्यतिथि विशेष: अकेलेपन ने उन्हें बीमार किया और अकेलापन उनकी मौत की वज़ह बना
ध्रुव गुप्त
मरहूम शशि कपूर पिछली सदी के तीन दशकों तक हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय नायकों में एक बने रहे थे। उनके पास व्यावसायिक फिल्मों की भाषा-शैली की समझ थी और उसे भुनाने वाला मैनरिज्म भी। परदे पर अपनी आत्मीय उपस्थिति, मासूम हंसी, चेहरे को तिरछा घुमाने के ख़ास अंदाज़ ने देश के युवाओं के बीच उनके लिए क्रेज पैदा किया था।
यह शशि कपूर का 'जब जब फूल खिले', 'वक़्त', 'शर्मीली', 'चोर मचाए शोर', 'हसीना मान जायेगी', 'प्यार का मौसम', 'दीवार', 'कभी - कभी', त्रिशूल और 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' वाला चेहरा था। उनका एक और चेहरा भी था जिसे उनके पिता ने बचपन से उन्हें थिएटर से जोड़कर रचा और जिसे अंतर्राष्ट्रीय थिएटर ग्रुप 'शेक्स्पियाराना' के एक सदस्य के तौर पर में दुनिया भर की अभिनय-यात्राओं ने तराशा था।
इन्हीं यात्राओ के दौरान ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर से उन्हें प्रेम हुआ और मात्र बीस वर्ष की उम्र में शादी। अपने भीतर के कलाकार को अभिव्यक्त करने की चाह में हिंदी की व्यावसायिक फिल्मों से ब्रेक लेकर वे 'हाउसहोल्डर' 'शेक्सपियरवाला', 'ए मैटर ऑफ़ इन्नोसेंस', 'हीट एंड डस्ट,' तथा 'सिद्धार्थ' जैसी स्तरीय अंग्रेजी फ़िल्मो में भी अभिनय करते रहे।
पिता के देहांत के बाद उन्होंने 'पृथ्वी थिएटर' का पुनरूद्धार किया और नाटककारों को मंच देने की कोशिश की। 1978 में उनके होम प्रोडक्सन 'फ़िल्म्वालाज' की शुरुआत ने हिंदी के सार्थक सिनेमा को विस्तार देने में बड़ी भूमिका निभाई। उनकी बनाई फ़िल्में - 'उत्सव', 'जूनून', 'कलयुग' और '36 चौरंगी लेन' सार्थक हिंदी सिनेमा की उपलब्धियां मानी जाती हैं।
सिनेमा में अपूर्व योगदान के लिए सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान 'दादासाहेब फाल्के अवार्ड' पाने वाले पिता पृथ्वीराज कपूर और भाई राज कपूर के बाद खानदान के वे तीसरे व्यक्ति थे।अभिव्यक्ति के नए-नए रास्ते तलाशता यह बेचैन अभिनेता 1984 में कैंसर से पत्नी जेनिफर की मृत्यु के बाद अकेला पड़ गया था। इस अकेलेपन और अनियमित जीवनशैली ने उन्हें बीमार किया और उनकी मौत की वज़ह भी बनी। पुण्यतिथि पर शशि कपूर को हार्दिक श्रद्धांजलि !