कन्याओं को दबोचो और मार डालो
राजीव मित्तल
तस्लीमा नसरीन की कई साल पहले लिखीं इन पंक्तियों ने बांग्लादेश के तालिबानी चेहरों को गुस्से से लाल कर दिया था कि अरे, यह तो नारी जात को बगावत सिखा रही है, शरीयत के खिलाफ जा रही है..तब तो तस्लीमा ने कई तरह की सफाइयां दे कर अपना बचाव कर लिया था, लेकिन बाद में लेखन और कट्टरपंथ पर किये प्रहारों ने उन्हें देश से ही भाग निकलने को मजबूर कर दिया…
इसी तरह कई पूजनीय देवियों वाले इस भारतवर्ष में दक्षिण फिल्मों की कलाकार खुश्बू को इसलिये प्रताड़ित किया गया कि उसने लड़की हो कर विवाह से पहले सुरक्षित यौन संबंधों की बात कही..यह कोई स्वाकारोक्ति या अवैध संबंधों की
वकालत नहीं, बल्कि एड्स से बचाव की बात थी..उनका जीना मुहाल हो गया यहां तक कि तमिल सरकार तक उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गयी..
खुश्बू के समर्थन में बयान देने वाली सानिया मिर्जा को दूसरे ही दिन मुल्ला-मौलवियों का भय सताने लगा और उन्होंने बयान बदलने में ही भलाई समझी, लेकिन हां, स्कर्ट का कम-ज्यादा लम्बाई वाला बयान उनके जी का जंजाल बना..
लड़कियों के भ्रूण कचरे में तो मिल ही रहे हैं, उन्हें पैदा होते ही तलवार से काट देने या गला टीप देने, अल्ट्रा साउंड के जरिये लड़की होने की पुष्टि होने पर गर्भपात करा देने की असंख्य घटनाओं से दुनिया की आधी आबादी का हाल इस देश की प्रातः वंदनीय और सांध्य नमनीय गंगा या गाय जैसा हो गया है..नारीत्व के ये तीनों प्रकार हर दिन-हर क्षण कहीं न कहीं पूजे जा रहे होते हैं.. गऊ माता या गंगा मैया का जाप करने वालों का गला नहीं दुखता, किसी देवी का पाठ पूरे भक्तिभाव से चल रहा, पर धरती पर उछलती-कूदती जवान लड़की उनकी तालिबानी आंखों को कतई नहीं भाती..
पटना विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे हरिमोहन झा ने कई साल पहले खट्टर काका नाम का चरित्र गढ़ उसके मुंह से कबीरदास की तरह उल्टी गंगा बहायी थी…मसलन वेदों में नारी शरीर का इस कदर घिनौना वर्णन है कि ब्रहमचारी को वेद की तरफ झांकना भी नहीं चाहिये..अब तक भारतीय समाज में मसीहाई कर रहे सती-सावित्री के उपाख्यान कन्याओं के हाथ में नहीं पड़ने चाहिये..पुराण बहु-बेटियों के योग्य नहीं है..दुर्गा की कथा स्त्रेणों की रची हुई है..संस्कृत के विद्वान हरिमोहन झा को उपनिषदों में विषयानंद, वेद-वेदांत में वाममार्ग और सांख्य दर्शन में विपरीत रति की झांकियां मिलती हैं..
वह अपने तर्क कौशल से पतिव्रत्य को व्यभिचार सिद्ध करते हैं और असती को सती। हरिमोहन झा अपनी बात को उन्हीं श्लोकों के जरिये सिद्ध भी करते चलते हैं, जो घर-घर में आंख मूंद कर सदियों से उच्चारित किये जा रहे हैं..
एक अबला को कैसे दुख देना चाहिये, सती-साध्वी पत्नी को कैसे घर से निकाल देना चाहिये, किसी स्त्री की नाक कैसे काटी जाती है, यह रामायण से भली-भांति पता चलता है..सीता का सारा जीवन दुखों में ही बीता..जंगलों में कहां-कहां नहीं भटकती फिरी पति के साथ..जब महलों का सुख भोगने का समय आया तो पति ने निकाल दिया..गर्भावस्था के आठवें महीने में घोर जंगल में धकेल दिया गया उसे..
तस्लीमा कहती हैं-मुझे तो यही लगता है कि स्वंय राम ने सीता के प्रति सबसे ज्यादा अन्याय किया है.. इतना पाखंड तो रावण ने भी नहीं किया.. राम ने कभी यह नहीं जानना चाहा कि रावण ने सीता से जोरजबरदस्ती की भी थी या नहीं, सिर्फ शक की बुनियाद पर राम ने सीता पर दोषारोपण कर दिया.. केवल नारी के सतीतत्व को लेकर इतना शोरगुल है, सती शब्द का कोई पुल्लिंग विलोम क्यों नहीं है..
तस्लीमा–अपने सतीतत्व या पवित्रता का प्रमाण देने के लिये सीता को अग्नि परिक्षा देनी पड़ी थी.. इतना ही नहीं, प्रजा का संदेह दूर करने के लिये राम ने सीता को फिर वनवास की ओर धकेल दिया..तीसरी बार की परीक्षा देने से सीता ने मरना बेहतर समझा और वह धरती में समा गयीं, अन्यथा जीवन भर जिल्लत झेलतीं..
रामायण में नारी को मनुष्य की संज्ञा तो नहीं ही दी गयी बल्कि यह सीख और दे दी गयी कि समाज पुरुष के एकनिष्ठ होने का दावा नहीं करता और नारी को एकनिष्ठता, सतीत्व या पवित्रता का प्रमाण देने पर भी समाज में सम्मान नहीं मिलता.. सीता का सतीत्व देख शतकों से क्या पुरुष क्या नारी-दोनों मुग्ध हैं..सीता के अग्नि में प्रवेश से दोनों ही तृप्त हैं..सीता के सत्कर्म गाथा बन गये..लेकिन कुल मिला कर नारी का चरम अपमान, निर्लज्ज दलन असंख्य बार रामायण में उच्चारित हुआ है..
धर्मराज युधिष्ठिर के बारे में हरिमोहन झा खट्टर काका से कहलवाते हैं कि उस इनसान को धर्मपुत्र नहीं अधर्मपुत्र कहो, जो अपने छोटे भाई अर्जुन की ब्याहता को गर्भवती करने में नहीं हिचका.. गनीमत समझो कि पांचों पांडवों में पांचाली के पांच अंगों का बंटवारा नहीं किया गया, नहीं तो क्या गत बनती.. फिर भी कम दुर्दशा नहीं हुई द्रोपदी की..जैसे वह नारी नहीं साझे का हुक्का हो, कि जिसने चाहा गुड़गुड़ा दिया..तभी तो कर्ण ने भरी सभा में कहा था कि पांचाली धर्मपत्नी नहीं, पांचों की रखैली है.. और द्रोपदी का अपमान दुशासन ने तो बाद में किया, आहुति तो युधिष्ठिर ने ही डाली थी, जिन्होंने पत्नी की देह का विज्ञापन करते हुए उसे दांव पर चढ़ा दिया-मेरी पत्नी न नाटी है, न बहुत लम्बी है, न दुबली-पतली है, न बहुत मोटी है, उसके काले-काले घुंघराले बाल हैं.. मैं उसी को पासे पर चढ़ा रहा हूं..
दांव हार जाने के बाद दुशासन ने द्रोपदी का चीरहरण शुरू किया..लेकिन पांडव चुपचाप सभा में सिर झुकाए बठे रहे..तभी तो द्रोपदी के मुंह से निकल पड़ा कि मेरे ये पति पति नहीं हैं.. बाद में किसी बात पर उर्वशी ने अर्जुन को ताना मारा था कि तुम पुरुष नहीं, नपुंसक हो.. स्त्रियों के बीच जा कर नाचो..
महाभारत युद्ध के कई कारण गिनाये जा सकते हैं, पर उसके मूल में है औरत को भोगने की उद्दाम लालसा..महाराजा शांतनु का मछुआरिन सत्यवती पर रीझना, सत्यवती का उनसे वचन लेना कि उससे जन्मी संतान ही हस्तिनापुर पर शासन करेगी, इस पर शांतनु पुत्र देवव्रत का आजीवन अविवाहित रहने की भीष्म प्रतिज्ञा करना, शांतनु के मरने के बाद सत्यवती के दोनों पुत्रों चित्रान्गद की युद्ध में और विचित्रवीर्य की घनघोर अय्याशी के चलते निस्संतान मौत..
हालांकि वंश चलाने को उनके लिये भीष्म अंबिका-अंबालिका को जबरन उठा कर लाए थे और दोनों भाइयों से उस समय के समाज में निकृष्टतम कहा जाने वाला विवाह कराया था.. काशी राजा की इन दोनों बेटियों के अलावा तीसरी और सबसे बड़ी बेटी अंबा ने भीष्म का रथ हस्तिनापुर पहुंचने से पहले ही आत्महत्या कर ली, क्योंकि वह उन्हीं पर रीझ गयी थी, जो भीष्म को अपनी प्रतिज्ञा के चलते स्वीकार नहीं था.. विवाह के बाद ही दोनों भाई मर गए तो वंश बढ़ाने के लिये व्यास से उन पर बलात्कार करवाया गया..नतीजनतन एक के अंधा बेटा हुआ दूसरी का बेटा जन्मजात रोगी..
रोगी पांडु की दोनों पत्नियों कुंती और माद्री के साथ भी यही हुआ..पांचों में से कोई पांडव पांडु का पुत्र नहीं था..पांडु ने ऐसा करने के लिये बाकायदा कुंती को यह कहते हुए आज्ञा दी कि पति के कहने पर जो सुपुत्र प्राप्ति के लिये पर-पुरुष से सिंचन नहीं करवाती, वह पाप की भागिनी होती है..
खुद महर्षि व्यास सत्यवती और पराशर मुनि के अवैध संबंधों की उपज थे..इस तरह कुरुवंश के शांतनु कुल में कुलवधुओं को दूषित करने की परम्परा सी चल पड़ी थी..
तस्लीमा नसरीन–महाभारत के प्रथमांश और अन्तिमांश के बीच कम से कम आठ वर्षों का अंतराल है..इस लम्बे समय के अंतिम हिस्से के रचयिता भृगुवंशी ऋषिगण हैं, जो ब्राह्मण संयोजन के नाम से जाना जाता है..नारी के अवनमन का चित्र इस अंश में नग्न रूप में सामने आता है..
महाभारत के इस भाग में साफ लिखा है कि नारी अशुभ है, सारे अमंगल का कारण है..कन्या दुखद है..भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा-नारी से बढ़ कर अशुभ कुछ भी नहीं..नारी के प्रति पुरुष के मन में कोई स्नेह या ममता रहना उचित नहीं..पिछले जन्म के पाप के कारण इस जन्म में नारी जन्म होता है..स्त्री सांप की तरह है, इसलिये पुरुष को कभी उसका विश्वास नहीं करना चाहिये..त्रिभुवन में ऐसी कोई नारी नहीं, जो स्वतंत्रता पाने योग्य हो..जो छह वस्तुएं एक क्षण की भी असावधानी से नष्ट हो जाती हैं, वे हें-गर्भ, सैन्य, कृषि, स्त्री , विद्या, एवं शूद्र के साथ संबंध..
भीष्म आगे कहते हैं कि आदिकाल में पुरुष इतना धर्मपरायण था कि उसे देख कर देवताओं को ईष्र्या हुई, तब उन्होंने नारी की सृष्टि की-पुरुष को लुभा कर उसे उसे धर्मच्युत करने के लिये..
खट्टर काका-महर्षि याज्ञवल्क्य को ही लीजिये.. वह कैसे आत्मज्ञानी थे, कि दो-दो पत्नियां रखते थे..आत्मा के लिए मैत्रेयी और शरीर के लिए कात्यायनी..इन्हीं याज्ञवल्क्य ने शास्त्रार्थ में गार्गी के प्रश्नों से घबरा कर धमकी दे डाली थी कि अब ज्यादा पूछोगी तो तुम्हारी गर्दन कट कर गिर पड़ेगी..
राजा दुष्यंत ने कुमारी मुनिकन्या शकुंतला को दूषित कर दिया और फिर पहचानने से भी इनकार कर दिया..राजा ययाति को बूढ़ापे में भी भोग की लालसा बनी रही..कोई चारा न देख जवान बेटे से ही यौवन उधार मांग कर अपनी लालसा मिटायी..ऐसी उद्दाम कामवासना का गरिमामय दृष्टांत और किसी देश के इतिहास में मिलेगा!
महाभारतकाल में क्या तो राजा, क्या ऋषि-मुनि और क्या देवतागण-इन सबके लिये औरत की औकात जिंस से ज्यादा कुछ नहीं थी..दरअसल, रामायण-महाभारत की सारी घटनाओं पर नजर डालने के बाद एक ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, वह है-न स्त्री स्वतन्त्रंअहर्ति यानी स्वतंत्रता पर स्त्री का कोई अधिकार नहीं..
अब खट्टर काका की नजर पड़ती है आयुर्वेद पर.. वह एक प्रकांड वैद्य से पूछते हैं कि पारा क्या है-जवाब में संस्कृत का एक श्लोक, जिसका अर्थ है-शिवजी की धातु पृथ्वी पर गिर गयी, वही पारा है..तो गंधक क्या है महाराज! एक समय श्वेतद्वीप में क्रीड़ा करते-करते देवी जी स्खलित हो गयीं..तब क्षीर समुद्र में स्नान किया.. उसमें कपड़े से धुल कर जो रज गिरा, वही गंधक है..
खट्टर काका की नजर में आयुर्वेद में श्रृंगार रस की भरमार है-मसलन वैद्य लोलिम्बराज गर्मी का उपचार बताते हैं-सुगंधित पुष्पमाला और चंदन से शीतल शरीरवाली पीन पयोधरा और पुष्टनितम्बिनी युवतियों के आलिंगन दाह को दूर कर देते हैं..ज्वर का इलाज-चंदन-कपूर का लेप किये हुए रमणी मणिमेखलायुक्त जघन चक्र चलाती हुई सम्पूर्ण शरीर में वनलता की तरह लिपट जाए तो प्रबल ताप को भी शांत कर देती है..सर्दी की दवा-मांसल जंघा और स्थूल नितंबवाली युवती अपने पीन स्तनों से गाढ़ालिंगन करे तो सर्दी दूर हो जाती है..यानी जाड़े की दवा भी युवती और गर्मी की दवा भी युवती..युवती का शरीर चाय की प्याली या शरबत का गिलास से ज्यादा कुछ नहीं!
एक वेदाचार्य ने ऐसी खीर बनायी कि वृद्ध भी खाय तो दश प्रमदाओं का मान-मर्दन कर सके.. दूसरे आचार्य ने ऐसा चूर्ण बनाते हैं कि नपुंसक भी वह चूर्ण मधु के साथ चाट जाय तो कंदर्प बन कर सौ कामिनियों का दर्प चूर कर दे..
एक आचार्य ने गारंटी दी कि यदि प्रथम पुष्प के समय नवयौवना नस्ययोगपूर्वक चावल का मांड़ भी ले तो उसका यौवन कभी ढलेगा नहीं.. दूसरे आचार्य ने और भी जबरदस्त दावा किया कि श्रीपर्णी के स्वरस में सिद्ध तिल का तेल मर्दन करने से विगलित यौवनाओं के ढले हुए यौवन भी ऊपर उठ जाते हैं..
एक आचार्य का अनुसंधान है कि ब्राह्मणों की दातौन 12 अंगुल की, क्षत्रियों की नौ अंगुल की और स्त्रियों की चार अंगुल की होनी चाहिये..एक साहब ने तो स्त्रियों के स्नान पर ही रोक लगा दी-शतभिषा नक्षत्रों में अगर स्त्रियाँ स्नान कर लें तो सात जन्म विधवा हों..दूसरे फरमा गये-यदि स्त्री नवमी में स्नान करे तो पुत्र नाश हो, तृतीया में पति नाश हो, त्रयोदशी में अपना नाश हो..
इस देश में बाल विवाह की परम्परा इसलिये पड़ी क्योंकि जहां कन्या 12 वर्ष की हो रजस्वला हुई तो पितरों को हर महीने रज पीना पड़ेगा.. शास्त्रकारों को इस बात की बड़ी फिक्र थी कि कहीं कुमारी को रोमांकुर हो गया तो गजब हो जाएगा..सोमदेवता बिना भोग लगाए मानेंगे नहीं
..कुच देख कर अग्नि देवता और पुष्प देख कर गंधर्व देवता पहुंच जाएंगे..इसलिये कन्या का विवाह कर छुट्टी पाओ क्योंकि देवताओं को मनमानी करने से कोई रोकने वाला नहीं..
स्त्रियों को धमका कर रखने का एक बड़ा साधन इस देश में रहा है स्वर्ग और नरक की बेहद असरकारक अवधारणा और दोनों जगहों के लिये पुरुष की अनुशंसा जरूरी है..एक जगह कहा भी गया है कि भारतवर्ष में, जी हां केवल भारतवर्ष में जो स्त्री पति की सेवा करेगी उस स्वामी के साथ स्वर्गलोक का पासपोर्ट मिल जाएगा..और अगर स्त्री कहीं पति को धोखा दे कर और किसी की सेवा में चली जाए तो उसे कुम्भीपाक नरक में अनंतकाल तक रातदिन नुकीले दांत वाले भंयकर सांप सरीखे जंतु डंसते रहेंगे..
मजेदार बात यह है कि पर-स्त्रीगामी पति के लिये किसी भी शास्त्र में कहीं कोई विधान नहीं है।
कुछ और बानगियां—–ऋतुस्नान के बाद जो स्त्री पति की सेवा में उपस्थित नहीं होती वह मरने पर नरक-गामिनी होती है, बारंबार विधवा होती है।-जो स्त्री पति से पहले ही भोजन कर ले वह नरक में जा कर घोर कष्ट भोगती है..-स्त्री ने अगर पति को भूल चुपचाप किसी खाद्य पदार्थ का सेवन कर लिया तो या तो वह शूकरी हो कर जन्म लेगी या गधी हो कर या विष्ठा की कीड़ी हो कर..- जो पति से जुबानदराजी करे वह गांव में कुत्ती या जंगल में गीदड़नी हो कर जन्म लेगी..
ऋग्वेद में तो नारी शरीर की इस तरह मीमांसा की गयी है कि इस वेद के अंग्रेजी अनुवादक राल्फ टीएच ग्रिफिथ ने तो कुछ मन्त्रों का अनुवाद इसलिये नहीं किया कि वे बेहद वीभत्स थे.. वह कहते भी हैं कि मैं इन-इन मन्त्रों को छोड़ कर आगे बढ़ रहा हूं क्योंकि मैं शालीन अंग्रेजी में इनका अनुवाद नहीं कर सकता..
बहरहाल, हर साल दुर्गापूजा पर इस मन्त्र का जाप कीजिये और मग्न रहिये–या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिथा..नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमोनमः