देखो बूढ़े ने कैसा हाथ मारा है, इसकी तो लॉटरी लगी है?
शादाब सलीम
महेश भट्ट जवान लड़कियों की बगलों में हाथ डाल खड़े है। तस्वीरें इधर से उधर चलती रहती है। लोग कहते है- देखों बूढ़े ने कैसा हाथ मारा है, इसकी तो लॉटरी लगी है, ठरकी बूढ़ा।
लोग भी अंधे होकर ही देखते है, ख़ुदामालूम उन्हें क्या का क्या दिखाई देता है। ऐसी तस्वीरों में मुझे कुछ और दिखायी देता है। ज़रा आँख से देखों तो तुम्हें भी कुछ और नज़र आएगा।
हाथ महेश भट्ट ने थोड़ी मारा है हाथ तो उस लड़की ने मारा है। लड़की जानती है, जाना कहीं भी है पर आना तो छुरी के नीचे ही है, अब शहर में बदनाम हो ही गए है तो क्या है थोड़ी सी बदनामी और सही। कहीं भी जाएंगे कोई भी नोचेगा ही, प्रेम कौन करने वाला! कोई नंगा नोंचे इससे अच्छा कोई नवाब नोंच ले, कम से कम जीवन तो बन जाएगा। नंगा तो नोंच का नोंच लेगा और मिलेगा ठेंगा।
लड़की महेश भट्ट के हाथ में हाथ डालकर खड़ी है। बूढ़े ने कहीं दो चार फिल्मों में जुगाड़ करवा दी तो जीवन भर बैठकर खायेंगे, थोड़े बहुत विज्ञापन भी मिल जाएंगे। अरे अंधो लॉटरी तो उस लड़की की लगी है तुम्हें वह बूढ़े की लॉटरी लग रही, बूढ़ा तो नुकसान में है।
ज़रा बाज़ार में पैसा कमाकर देखों। चार पैसों के लिए लोग औंधे सीधे हुए जा रहे है। यहाँ लड़की कहाँ किसी कोठे पर नाच रही और किसी को क्या मालूम पड़ना है। और फिर संस्कारी लड़कियों को हमने दिया क्या? ज़रा धूर्तता तो देखों, ऐसी जमाल की धूर्तता कहीं देखें से नहीं मिलती। संस्कारी लड़की तो पिता पर बोझ है। बेचारी संस्कारी बनकर घर बैठे और तुम शादी के नाम पर सौदा करो जैसा उस पर अहसान कर रहे।
शादी करवाने वाले दलाल भी चल रहे है और वेबसाइट भी चल रही है। लड़की के पिता से बंगला और सोना मांगो। बाप कर्ज़ लेकर तुम्हे सोना दे और बेटी विदा करें। महात्माओं ने बहुत एहसान किया जो बेटी ब्याह ले गए। हमने दिया क्या संस्कारी औरतों को? दहेज़,घरेलू हिंसा, जूते! कोई क्यों तुम्हारे लिए संस्कारी बनी बैठी रहे। ताकी तुम आओ सौदा करो दहेज़ की बात खरी पक्की करो दावत उड़ाओ और फिर लेकर जाओ।
असल में मलाल है, बूढ़े को वह औरत मिल गयी हमे क्यों नहीं मिली। मित्र सलमान असीम एक कथा सुनाते है- एक मोहल्ले से एक प्रसिद्ध मुसलमान की लड़की हिन्दू युवक के साथ भागी। मोहल्ले के सारे लड़के उस लड़की के चक्कर में घूमा करते थे। फेसबुक से व्हाट्सएप तक अर्ज़ियाँ डाल रखी थी। इस टोह में घूमा करते थे कि कब मिले और कब दबा दें।
लड़की के पिता ने मुहल्ले के लोगों को भेला किया। पिता बोला- 'यह तो बहुत बुरी बात हो गई है, अगला दाढ़ी में हाथ डाल गया है' सारे लड़के लड़की के पिता के पास आए और सब ने एक स्वर में कहा- ' चाचाजान आप तो बस बोलों करना क्या है, उस नीच से तो हम निपट लेंगे, घर की बच्ची खा गया सुअर।