बुर्के में मोदी जी का आभार ! जब भी कुछ ख़ास होता है, बुर्के वाली मुस्लिम महिलाएं जरूर सामने लाई जाती हैं?
हिदायत खान
जब भी कुछ ख़ास होता है, बुर्के वाली मुस्लिम महिलाएं जरूर सामने लाई जाती हैं।कल फिर दिखाई दी।इंदौर में सड़क किनारे खड़ी थी और नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा कर रहीं थी,क्योंकि उन्होंने राम मंदिर बनवा दिया है।चलिए,ठीक है...पर बुर्के में मुस्लिम महिलाएं ही थी,इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है। बुर्का है, इसलिए मान लेते हैं सब मुसलमान थी, लेकिन भाजपा तो मुस्लिम महिलाओं की आज़ादी की बात करती रही है।
तीन तलाक को उसने ज़ोर-शोर से आगे किया था और उस पर कानून बना दिया। क्या उसे लगता है, बुर्का पहनना ठीक है।क्या महिलाओं की आज़ादी पर हमला नही है, लेकिन जब भी उसे मुस्लिम महिलाओं की ज़रूरत पड़ती है, हमेशा बुर्के वाली महिलाएं ढूंढ कर लाई जाती हैं। ऐसा नहीं है, सारी मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनती हैं।
बड़ी तादाद है,जो नही पहनती हैं, उनको कोई कुछ नहीं कहता है, मुसलमान मानने से इंकार भी नहीं किया जाता है।वो वैसे ही हर जगह दिखती हैं,जैसे बुर्के वाली महिलाएं दिखती हैं,लेकिन जो भाजपा के लिए आती हैं,उसमें सिर्फ बुर्के वाली महिलाएं ही होती हैं। कभी बिना बुर्के वाली महिलाएं भी ले आइए,पता तो चले, कौन हैं, कहां से आई हैं, कौन लाया है और उनके क्या विचार हैं। कल जो बुर्का था,उसमें आंख के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था।
जब उनकी तरफ कैमरा जा रहा तो वो हाथ के पोस्टर को अपने चेहरे के आगे कर रही थी,मतलब कैमरे से बच रही थी,जबकि बचने की ज़रुरत नही है।अगर आप मंदिर बनने से ख़ुश हैं, कोई मसला नही है,आपकी आज़ादी है।मोदी का शुक्रिया अदा भी किया जा सकता है,प्रधानमंत्री हैं,लेकिन इस तरह सब 'काला-काला' क्यों ! हो सकता है, जो महिला आई,सब मुसलमान हो,पर सब बुर्के वाले घर से ही आई हैं, यहां गड़बड़ हो रही है।
तीन तलाक पर बुर्के वाली महिलाओं को आगे किया गया था, तब समझ आ रहा था,क्योंकि मामला महिलाओं का था,लेकिन यहां पकड़ा रहा है। सोशल मीडिया पर वो फ़ोटो भी खूब दौड़ रहा है,जिसमें बुर्के वाली महिलाएं राम आरती कर रही हैं।इस्लाम में महिलाओं के लिए पर्दा ज़रूरी है,जो महिलाएं आरती कर रही हैं,वो इस्लाम को समझती हैं,तभी तो बुर्क़ा पहने हुए हैं,लेकिन आरती कर रही हैं,जबकि इस्लाम खड़ा ही एकेश्वरवाद पर है।
अब समझा जा सकता है,कौन बुर्का पहना है और पहनाने की ज़रूरत भी नहीं बन रही है। चार-छह महिलाएं कहीं से लाई जाएं,बुर्का पहनाया जाएं और नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करवाई जाएं,इससे क्या हो जाएगा।क्या मोदी को भाड़े के बुरकों से निकली तारीफ़ की ज़रूरत हैं। क्या सिर्फ राम मंदिर से मुस्लिम महिलाएं खुश हैं, पुरुष नहीं हैं।
वो क्यों नहीं लाए गए, उनको भी टोपी पहनाकर लाया जा सकता था या उन्हें खुद ख़ुशी में लड्डू बांट देना थे।सिर्फ महिलाएं ख़ुश हैं और वो भी बुर्के वाली...कुछ ज़्यादा अजीब हो गया है।एक बात और... अदालत के फ़ैसले का सम्मान ज़रूरी है,पर उसके फ़ैसले पर ख़ुश होना या ख़ुशी का इज़हार करना ज़रूरी नही है।'जग्गा' बोला- बुर्के की सियासत बंद होना चाहिए, क्योंकि नकाब के बावजूद 'चेहरा' दिख जाता है।