याद-ए-राहत: आधे घंटे में मर्सिडीज बेंज से साइकिल के पहिये तक जीवन का सार उतर आया
शादाब सलीम
एक दफ़ा मरहूम शायर राहत इंदौरी किसी मुशायरे में गए थे। वहां उनके कोई धनाड्य फैन ने उन्हें अपनी कार से थोड़ी दूर छोड़ने का आग्रह किया। वह उस कार में बैठ गए। शायद कार मर्सडीज बेंज थी। थोड़ी दूर चले और स्टेशन के पहले उतर गए।
सड़क पर पैदल चलने लगे। मुशायरा सुनकर उनका कोई दूसरा फैन साइकिल से जा रहा था। वह राहत इंदौरी को देखकर रुक गया। राहत इंदौरी से उस दूसरे शख़्स ने आग्रह किया कि मैं आपको स्टेशन तक छोड़ सकता हूँ। राहत इंदौरी साइकिल पर बैठ गए। साइकिल चलती रही महफ़िल जमती रही। आधे घंटे में मर्सिडीज बेंज से साइकिल के पहिये तक जीवन का सार उतर आया। आदमी भी इस तरह अर्श से फर्श और फर्श से अर्श चलता रहता है।
फ़ैज़ और पाश से लेकर राहत तक हर शायर आम आदमी के दर्द और उसके इश्क़ को लिखता रहा है, वह हुक्मरानों के खिलाफ आम हाशिए पर खड़े आदमी की आवाज़ बनकर गरजता रहा है।
अभी कुछ दिनों पहले ही मुझे भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक एक पंजाबी महिला ने इंदौर सिर्फ इसलिए आने को कहा था कि वह राहत इंदौरी से मिलना चाहती है। किसी छोटे से शहर से निकले एक शायर को सारी दुनिया के हिंदी उर्दू जानने वाले लोगों ने ऐसा प्यार कम ही दिया है। सलमान खान, मक़बूल फ़िदा, लता मंगेशकर के बाद यदि इंदौर को विश्व में पहचाना गया तो राहत इंदौरी के नाम से जाना गया।
राहत इंदौरी जब मुशायरे के मंच पर नहीं होते तब उनके हाथ कांपते थे और जैसे ही मंच पर जाते थे गरजते थे, यह शायरी का अजीब जिन्नात था जो उन पर सारी उम्र सवार रहा।
राहत इंदौरी के घर तक जाने वाली ओल्ड पलासिया की सड़क को राहत का नाम दिया जाना चाहिए था पर सरकारे अंधी, बहरी और गूंगी होती है। उन्हें राहत की चिंघाड़ सुनाई ही नहीं दी जो आधी सदी तक हवाओं में गूंज रही थी। उस ही सड़क पर सलीम खान का भी घर है।
राहत इंदौरी ने अपने एक गीत में कहा है-
जी खोल कर जी
जी जान से जी
कुछ कम ही सही
पर शान से जी.....
दो सदी पहले मीर तकी मीर ने कहा है-
मत सहल हमे जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते है....
शायद मीर राहत के लिए ही हुक्मरानों को लिखकर गए थे। मीर को यह इल्म होगा दो सदी बाद उर्दू अपने किसी ऐसे बेटे को जन्म देगी जो उर्दू के पुष्प सारी धरती पर बिखेर देगा और जो मनुष्यता के गीत गाते हुए सारी धरती पर आम आदमी के शब्दों में हुक्मरानों के विरुद्ध दहाड़ता फिरेगा जो हिंदी और उर्दू के भेद को पाट कर रख देगा।