फ्री सेक्स, लिव इन, सुशांत, महेश भट्ट, रिया चक्रवर्ती और मौजूदा भारत
शादाब सलीम
फ्री सेक्स के विचार का जन्म हुआ और इस ही विचार से स्त्री पुरुष संबंधों में लिव इन का जन्म हुआ है। भारतीय लिव इन की गलत अवधारणा प्रस्तुत कर रहे है। सारी व्यवस्था सार्वभौमिक नहीं होती, वह देश काल और परिवेश के हिसाब से होती है। कल मैंने कहा था लिव इन अर्जेंटीना वालो के लिए ठीक है भारतीयों से यह नहीं होना, इस बात के पीछे मर्म है।
जब भी हम अपने फायदे की आधुनिकता को उठा लाते है तब कुछ न कुछ तो भविष्य में गलत होगा। इस बात को मानिये की फ्री सेक्स भी एक विचार है और यह सार्वभौमिक कतई नहीं है, यदि आप फ्री सेक्स को आत्मसात नहीं करते तो लिव इन भी मत कीजिए क्योंकि फिर सर कटेंगे, यदि नहीं मानो तो कर के देख लो।
लिव इन का सबसे बड़ा नियम यह है कि पक्षकारों में कोई निर्बंधन नहीं होते है, वहाँ सब कुछ फ्री होता है। मौजूदा सुशांत सिंह प्रकरण में जनता का कहना है कि- रिया चक्रवर्ती सुशांत सिंह की प्रेमिका थी और महेश भट्ट जैसे एक बूढ़े शख्स ने अपनी पोती की उम्र की महिला रिया को फंसा लिया इसके परिणामस्वरूप सुशांत सिंह ने आत्महत्या कर ली।
ज़रा समझ कर देखिए। इस प्रकरण में कितनी मूर्खता है। भांग ऊपर से नीचे तक है। सुशांत आधुनिक पुरुष है। वह यही करते थे, एक स्त्री के साथ कुछ समय रहे और चल दिए। उनके अफेयर्स की लंबी लिस्ट उपलब्ध है। रिया के साथ भी वह लिव इन में थे। अब लिव इन का नियम तो फ्री है। जब आप लिव इन में रह रहे है तो भावुकता कैसी! आप फ्री सेक्स का समर्थन करते है तब ही तो आप लिव इन को भी स्वीकार करते है।
रिया को महेश भट्ट के साथ कुछ लाभ थे या महेश भट्ट पर आकर्षण था इस बारे में तो रिया ही जानती है। मेरे निकट बूढ़े आदमी पर क्या ही आकर्षण रहा होगा कहीं न कहीं कुछ लाभ ही होंगे।
रिया को जाने का अधिकार था, आप उसे रोक नहीं सकते है, यह उसकी स्वतंत्रता है। आप बल देकर रिया को सुशांत के साथ बने रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते, एक पत्नी को फिर भी बाध्य किया जा सकता है पर लिव इन पार्टनर को बाध्य कैसा करना?
जब हम लिव इन का समर्थन कर रहे है तो फिर यह भारतीय परिवेश की नैतिकता क्या? यह भावुकता और इमोशन कैसे! यह कैसे दोहरे मापदंड है। भावुक भी रहना चाहते हो और लिव इन भी कर रहे। आप चाहते है आपकी स्त्री महेश भट्ट के साथ नहीं जाए और आप लिव इन के भी झंडे उठाये हुए है। ऐसा नहीं होता। आप स्त्री को बाध्य नहीं कर सकते और न ही स्त्री आपको बाध्य कर सकती है।
कोई एक ट्रेक पकड़ लो तो अच्छी बात है। सब कुछ गडमड मत करो। जब हम सब कुछ गडमड करते है तो सब कुछ बिगड़ जाता है, कुछ भी ठीक नहीं रहता। आधुनिकता पश्चिम वालों जैसी चाहिए और भावुकता भारतीयों जैसी चाहिए यह कैसे होगा! गारे से बुनियाद खड़ी करके ताजमहल बनाना चाहते हो। पश्चिम की स्त्रियां विवाह होने पर बिदाई के वक़्त दहाड़े मार मार कर नहीं रोती क्योंकि वहां तो विवाह ही कभी कभार होते है, लड़की इधर जवान हुई और किसी पुरुष के साथ लिव इन कर लेती है, यहां औरतें ऐसी रोती है कि जैसे अंतिम यात्रा ही निकले जा रही है क्योंकि यहाँ भावुकता है, यहां आदमी दिल से जुड़ जाता है और इसका कारण देश, काल, परिस्थियां है जिसे हम कदापि नहीं बदल सकते।
कुछ लोग कहते है भारत में पहले फ्री सेक्स था, कामसुत्र पुस्तक है और खजुराहो की मूर्तियां है। भारत पहले क्या था इस बात को छोड़ो अभी क्या है यह जानों। भारत में तो पहले बहुत कुछ था और हर जगह बहुत कुछ अलग अलग था पर सब कुछ बदलता रहता है, बदलना ही यूनिवर्स का नियम है। धरती के पांच हजार करोड़ साल के इतिहास में हम नहीं जानते क्या क्या बदला है, हमे तो गिनती के चालीस पचास हज़ार साल का इतिहास मुश्किल से पता है। पता नहीं कितनी सभ्यताएं आकर पलट गई और हम भी कब पलट जाए। और यह दो चार किताबों और सौ पचास मूर्तियों से किसी समाज के संबंध में तुक्के लगाना तो कदापि औचित्यपूर्ण नहीं है।
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