सुशान्त.. सुशान्त.. सुशान्त.., इन मुद्दों पर सब शांत है.. केवल एक ही मुद्दा दिखाई दे रहा है वो है ''सुशान्त सिंह राजपूत"
अंकुर मौर्य
इस महामारी में जहां चारों तरफ मौत ही दिख रही है , गरीब, मज़दूर, किसान सब परेशान है , हताश है, खाने के लाले पड़े है... बेरोज़गार नौकरी तलाश रहे हैं.. बाढ़ से तमाम लोगों के घर तबाह होगए... कोरोना बढ़ता चला जा रहा है, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का बुरा हाल है,.. मगर इन सब पर सब शांत है.. केवल एक ही मुद्दा दिखाई दे रहा है वो है ''सुशान्त सिंह राजपूत"...
सारा का सारा मीडिया रिया चक्रवर्ती के पीछे ज़मकर लग हुआ है.. मुझे तो डर है सारा केस ये मीडिया वाले ही सुलझा देंगे तो CBI की जरूरत ही क्या है..
हर कोई चाहता है कि सुशान्त सिंह को इंसाफ मिले.. जांच करने वाले जांच करेंगे.. सच सामने आएगा.. लेकिन पिछले डेढ़ महीने में जिस तरीके से कहानियां अलग-अलग तरीके से बनी उनके बारे में क्या ही कहना.. पहले पूरे बॉलीवुड को गाली दी गयी.. करण ज़ोहर को क्या कुछ नहीं बोला गया.. फिर आगे और कहानियां बनती गयी.. फिर इसमें कुछ दिनों बाद सियासी बयानबाज़ी भी शुरू हो गयी..
चिराग पासवान बोले, तेजस्वी बोले.. और फिर नीतीश कुमार भी बोले.. ये सब सुशान्त के लिए इंसाफ मांगने लगे और महाराष्ट्र पुलिस को जमकर कोसने लगे.. यानी अब आप समझीये "सुशान्त सिंह राजपूत" आखिर क्यों सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया मीडिया के लिए..
क्योंकि अब "सुशान्त सिंह" अब एक राजनीतिक टूल बन चुके है यानी बिहार चुनाव सिर पर है और सरकार के पास कुछ उपलब्धियां बताने को है नहीं, जिसको लेकर वोट मांगा जाया.. और सुशान्त को आगे रखकर उन तमाम सवालों पर पर्दा डाल देने की कोशिश पूरी हो रही है जो बिहार सरकार से पूछे जाने थे..
मसलन.. याद कीजिये वो पहला लोकडाऊन जब बिहार के मज़दूर मदद की गुहार लगा रहे थे.. धूप में भूखे-प्यासे पैदल चल रहे थे.. तब नीतीश कुमार की सरकार को इनके लिए फुर्सत नहीं थी.. इन सबसे बचने के लिए सुशान्त के मुद्दे को भुनाकर नीतीश कुमार ये बताना चाहते है कि हम बिहार के लड़के के साथ खड़े है..
बिहार के अस्पतालों के हालात राम भरोसे है, कोविड़ सेंटर की तस्वीरें आयी थी जो पानी मे डूबी हुई थी.. बाढ़ से परेशान गरीब, किसान सभी सरकार के नहीं "राम" भरोसे है.. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के 16 जिलों में बाढ़ का कहर जारी है और अब तक इससे 63.60 आबादी प्रभावित हो चुकी है.. तमाम जगहों पर राहत का कार्य नाम मात्र भी नहीं है.. लोग बस गुहार लगा रहे हैं..
ये सब "सुशान्त सिंह राजपूत" से ज़्यादा बड़ा मुद्दा थोड़ी है.. इसमें दोष इनका भी नहीं है.. क्या करिएगा साहब हमारी जनता ही बहुत भावुक है.. जिसको भावुकता में लीन कर कुछ भी करवाया जा सकता है..